1st Loksabha Election: जब लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) की तैयारियां देश की अलग अलग पार्टियों के द्वारा शुरू कर दी गई हैं. एक तरफ तो पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) योजनाओं का शिलान्यास व उद्धघाटन करने में लगे हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस (Congress) सहित विपक्षी पार्टियां चुनाव में टिके रहने का पूरा प्रयास कर रही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव के समय माहैल कैसा था. दरअसल, 1951-52 में देश का पहला लोकसभा चुनाव हुआ जिसमें कई इतिहास रचे गए. आइए जानते हैं देश में हुए पहले लोकसभा चुनाव से जुड़ी रोचक बातों को. इस चुनाव में चुनाव आयोग के सामने एक सबसे बड़ी चुनौती थी और वो ये थी कि कैसे वोट देने के लिए लोगों को जागरुक किया जाए.


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पार्टिया, प्रत्याशी और वोट 
1950 में जब देश का संविधान लागू हो गया तो उसके बाद साल 1951-52 में देश में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ.
25 अक्टूबर 1951 तो आम चुनाव की प्रक्रिया शुरू की गई और 21 फरवरी 1952 को इसका समापन हुआ. 
पहला आम चुनाव कुल 4 महीने तक चला जिसमें 14 राष्ट्रीय पार्टियां और 39 क्षेत्रीय पार्टियां शामिल हुई. 
489 लोकसभा सीट के लिए हुए इस चुनाव में 17.3 करोड़ वोटर थे, हालांकि वोट केवल 44 प्रतिशत ही पड़े. 
राष्ट्रीय पार्टियों में मुख्य रूप से सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस रही, राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर सीपीआई, भारतीय जनसंघ जैसी पार्टियां भी मैदान में थीं.


निर्दलियों ने सबसे अधिक सीटें जीती 
लोकसभा की 489 सीट में से 364 सीट कांग्रेस को मिली, यानी पार्टी पूर्ण बहुमत में थी. 
सीपीआई दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी 16 सीटें उसकी झोली में गई. 
वहीं एसपी को 12 सीटें मिली और भारतीय जनसंघ ने केवल 3 सीटें ही जीती थीं. 
कांग्रेस के बाद निर्दलियों ने सबसे अधिक सीटें अपने नाम कर ली थी. 


जागरूक करने के लिए नुक्कड़ नाटक 
विशेष ये है कि तब वोट करने की आयु 18 नहीं बल्कि 21 साल थी. 
पहले आम चुनाव में देश के मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन थे. चुनाव बैलेट पर हुआ था. 
चुनाव आयोग ने तब ढाई लाख मतदान केंद्र बनवाए गए थे. 
लोगों को मतदान के प्रति जागरूक करने के लिए नुक्कड़ नाटक कराए गए थे. . 


डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को मिली हार 
देश के संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को पहले आम चुनाव में हार मिली. 
आंबेडकर की आरक्षित सीट बॉम्बे से कांग्रेस के प्रत्याशी नारायण सदोबा कजरोलकर की जीत हुई थी . 
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को 16 सीटें मिला. हालांकि, सीपीआई को 3.29 फीसदी वोट ही मिले. 
सोशलिस्ट पार्टी के खाते में 12 सीटें आईं, उनका वोट प्रतिशत वामपंथी पार्टी से ज्यादा रहा.