Mirza Ghalib Death Anniversary: मशहूर शायर मिर्जा गालिब का इंतकाल 15 फरवरी 1869 को हो गया. उनको दुनिया छोड़े भले ही 155 साल हो गए हों लेकिन उनकी यादें आज भी ताजा हैं. वह अपनी हाजिर जवाबी के लिए मशहूर हैं.  मिर्जा गालिब का जन्म आगरा में हुआ था. उनके कहे शेर लोगों की जुबां पर आज भी रहते हैं. पढ़िए उनके कुछ ऐसे ही बेहतरीन शेर.


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उमर भर ग़ालिब यही भूल करता रहा ,
धूल चहेरे पे थी और आयना साफ करता रहा


हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले


हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है


उन के देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है


हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है 
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या 


इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब',
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे


हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है 


यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो


इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब',
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे


इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा 
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं 


उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ 
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है 


तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता


तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई
मेरा नाला सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई


हम वहां हैं जहां से हम को भी 
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती 


आईना क्यूं न दूं कि तमाशा कहें जिसे
आईना क्यूं न दूं कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहां से लाऊं कि तुझ-सा कहें जिसे