Nuh Violence: नूंह जिले में हुई हिंसा ने हरियाणा के सुरक्षा हालातों को किया उजागर
Nuh Violence: हरियाणा के नूंह में 31 जुलाई को शोभायात्रा के दौरान हुई हिंसा की आग राज्य के कई जिलों में पहुंच गई है. वहीं इस हिंसा को रोकने में खट्टर सरकार पूरी तरह फेल नजर आ रही है.
Nuh Violence: हरियाणा के नूंह जिले में हाल ही में भड़की हिंसा ने राज्य में व्याप्त सुरक्षा कमजोरियों को उजागर कर दिया है. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने खुले तौर पर प्रदेश के हर व्यक्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने की असफलता को स्वीकार किया है. उन्होंने कहा कि सरकार हर आदमी को सुरक्षा नहीं दे सकती. इसके लिए हमें माहौल को सुधारना पड़ेगा, हर व्यक्ति की सुरक्षा ना पुलिस कर सकती है, ना ही सेना कर सकती है. इसके लिए सामाजिक सद्भाव ठीक करना पड़ेगा. वहीं, सीएम की टिप्पणियों ने जनता की चिंता बढ़ा दी है. सीएम के बयान का साफ मतलब था कि हरियाणा की आबादी की सुरक्षा की गारंटी देना राज्य के सुरक्षा तंत्र की क्षमताओं से परे है.
जनता की सुरक्षा उन्हीं के कंधे पर
नूह हिंसा को लेकर हरियाणा के लोग मुख्यमंत्री खट्टर से आश्वासन और ठोस कार्रवाई की उम्मीद कर रहे थे. हालांकि, सीएम के बयान ने उन्हें निराश कर दिया कि राज्य के 2.8 करोड़ निवासियों की सुरक्षा की गारंटी केवल 50 से 60 हजार पुलिस कर्मियों की उपस्थिति से नहीं दी जा सकती. ऐसे में जनता को लग रहा है कि व्यक्तिगत सुरक्षा की जिम्मेदारी अब उनके कंधों पर आ गई है.
खट्टर सरकार के कार्यकाल पर उठ रहे सवाल
नूह हिंसा में मुख्यमंत्री खट्टर की प्रतिक्रिया के बाद उनके नौ साल के कार्यकाल और प्रशासन पर सवाल उठने लगे हैं. दरअसल., खट्टर सरकार के कार्यकाल के दौरान कई घटनाओं ने राज्य के कानून व्यवस्था को चुनौती दी. नूंह हिंसा समेत कई ऐसी घटनाएं हुई, जिसे नियंत्रित करने में सरकार फेल रही. खट्टर सरकार 2014 में राम रहीम की गिरफ्तारी के दौरान फैली हिंसा को रोकने में नाकाम रही. इसके बाद साल 2016 की जाट आरक्षण हिंसा को नियंत्रित करने में भी असमर्थ रही. वहीं, 2017 में राम रहीम को सजा सुनाए जाने के दौरान हिंसा रोकने में भी सरकार फेल रही. ये सभी घटनाएं प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान खट्टर के बयानों से मेल खाती हैं. साथ ही सरकार की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े कर रही है. फिलहाल सीएम के बयान ने जनता के असंतोष को और बढ़ा दिया है.
जनता का टूटा भरोसा!
खास बात यह है कि एक ओर जहां सीएम खट्टर ने व्यक्तिगत रूप से सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में अपनी असमर्थता स्वीकार की. वहीं उन्होंने हिंसा के पीड़ितों के लिए मुआवजे का आश्वासन भी दिया है. विडंबना यह है कि मुआवज़े के लिए धन उन्हीं नागरिकों के जेब से आता है जिनकी सुरक्षा को लेकर सरकार ने असमर्थता जताई है. वहीं जनता अब ऐसे मुख्यमंत्री को लेकर सवाल उठा रही है, जो उनकी रक्षा करने में राज्य की अक्षमता को स्वीकार करता है इसके बावजूद उनके नुकसान के लिए मुआवजे का वादा करता है. ऐसे में जनता का मुख्यमंत्री से भरोसा उठता नजर आ रहा है.
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