देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के आईआईपी के परिसर में प्लास्टिक वेस्ट से डीजल बनाने का प्लांट बनाया गया है. दुनिया का यह चौथा प्लांट है जहां प्लास्टिक से डीजल-पेट्रोल के साथ कई तरह के केमिकल तैयार होंगे. वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे आसानी से डीजल बनाया जा सकेगा, जो वाहनों के साथ औद्योगिक क्षेत्रों में भी इस्तेमाल किया जाएगा. सबसे बड़ी बात यह है कि प्लास्टिक वेस्ट एक चुनौती बन गया है. यह पर्यावरण को जहां नुकसान पहुंचा रहा है. वहीं, जीव जंतुओं के लिए भी काफी खतरनाक बना हुआ है. जिसके चलते आईआईपी में एक ऐसे प्लांट को लगाया गया है, जिससे प्लास्टिक वेस्ट से डीजल बनाया जा रहा है.


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प्लास्टिक से डीजल बनाने का दुनिया का चौथा देश बना भारत
देहरादून में प्लास्टिक वेस्ट से डीजल बनाने के इस प्लांट को आईआईपी के वैज्ञानिकों ने 10 साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया है. वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक वेस्ट से डीजल बनाने के लिए कई सालों तक रिसर्च किया है. केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने इस प्लांट का शुभारंभ किया. प्लांट अभी 1 टन की क्षमता का बनाया गया है. जिससे 800 लीटर डीजल बनाने का काम शुरू हो गया है. केंद्रीय डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि अब इस तरह के प्लांट को देश के कई राज्यों में भी लगाया जाएगा. 


 



डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि जब दिल्ली में भाजपा की सरकार बनेगी तो, इस तरह के प्लांट को दिल्ली में भी लगाया जाएगा. उन्होंने कहा कि दिल्ली में बड़े पैमाने पर प्लास्टिक वेस्ट से डीजल तैयार किया जा सकता है. बता दें कि उत्तराखंड राज्य में यह पहला मौका है, जब इस तरह का प्लांट तैयार हुआ है. जहां 1 टन प्लास्टिक वेस्ट को डीजल-पेट्रोल या दूसरे केमिकल में बदला जा सकता है. आज देश के सामने प्लास्टिक वेस्ट किसी चुनौती से कम नहीं है. केंद्र सरकार बीट द प्लास्टिक अभियान चला रही है, जिसके तहत प्लास्टिक के कम इस्तेमाल पर फोकस करने की बात कही जा रही है.  


देश के कई बड़े राज्यों में लगेगा प्लास्टिक वेस्ट प्लांट
आईआईटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्लांट को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया है. अब इसे कमर्शियल लेवल पर शुरू किया जाएगा. प्लांट की पूरी लागत को 3 साल के अंदर निकाला जा सकता है. प्लांट से निकलने वाले तेल का इस्तेमाल सरकारी और सेना के वाहनों और संस्थान के अधिकारियों-कर्मचारियों के वाहनों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.


प्लांट के निदेशक डॉ. अंजन रे का कहना है कि जिस तरह से आज के दौर में तेल की खपत हो रही है, ऐसे में नए प्लांट लगाने से तेल की सप्लाई भी बढ़ सकती है. साथ ही पर्यावरण को भी शुद्ध रखा जा सकता है. दूसरी तरफ पर्यावरण संरक्षण के लिए प्लास्टिक वेस्ट को रोजगार के तौर पर भी देखा जा सकता है. इससे बड़े पैमाने पर युवाओं को रोजगार भी मिल सकता है. फिलहाल देश में पेट्रोलियम पदार्थों की मांग और प्लास्टिक वेस्ट से पर्यावरण को हो रहे नुकसान को देखते हुए वैज्ञानिकों की यह कोशिश पर्यावरण के साथ-साथ इंसान के लिए भी लाभदायक हो सकती है.