UP Election 2022: देश का सबसे बड़ा सूबा विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. एक बार फिर सियासतदां अपने वादों से जनता को लुभाने की कोशिश में जुट गए हैं. इस खबर में हम बात करेंगे हाथरस जिले में आने वाली सिकंदराराऊ विधानसभा सीट की. क्षत्रिय बाहुल्य इस सीट से फिलहाल बीजेपी के वीरेंद्र सिंह राणा विधायक हैं. कभी यह क्षेत्र पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह के प्रभाव वाला था, लेकिन अब राष्ट्रीय लोकदल मजबूत स्थिति में नहीं है. भाजपा के अलावा सपा और बसपा भी यहां जड़ें जमा चुकी हैं. यहां क्षत्रिय मतदाता निर्णायक स्थिति में रहते हैं. अधिक बार इस जाति का ही विधायक बना है. 


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फूलों की खेती होती है पहचान
सिकंदराराऊ शहर पर कृषि आबादी का प्रभुत्व है. यह एक ऐतिहासिक शहर है, जिसमें प्राचीन काल की कई ऐतिहासिक वस्तुओं को दिखाया गया था. हसायन, सिकंदराराऊ विधानसभा क्षेत्र का खास इलाका है. यहां बड़े पैमाने पर फूलों की खेती होती है. उनसे इत्र बनाया जाता है, लेकिन सुविधाओं के अभाव में यहां का इत्र कन्नौज की टक्कर नहीं ले सका है.


पिछले चुनाव का हाल
साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी ने कब्जा किया था. बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले वीरेंद्र सिंह राणा चुनाव लड़े थे. सिकंद्राराऊ में जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां ठाकुर मतदाता प्रत्याशियों की हार-जीत का फैसला करता है. इस विधानसभा में एक लाख से ज्यादा ठाकुर वोट हैं. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि क्षत्रिय मतदाता जिस पार्टी को समर्थन दे देते हैं वो पार्टी यहां से जीत दर्ज करती है. यही वजह रही है कि पिछले चुनाव में यहां से वीरेंद्र सिंह राणा चुनाव जीते थे.


  • कुल मतदाता : 3,42,366

  • पुरुष मतदाता : 1,89,363

  • महिला मतदाता : 1,52,992


जातीय समीकरण
सिकन्दराराऊ विधान सभा सीट में सर्वाधिक क्षत्रिय मतदाता हैं. उसके बाद ठाकुर, यादव, मुस्लिम, बघेल, ब्राह्रमण, वैश्य, लोधी और फिर जाटव मतदाता हैं. समाजवादी पार्टी यहां यादव व मुस्लिम समीकरण के चलते मुख्य मुकाबले में रहती है. सन् 1993 में सपा ने यह सीट जीती थी.


चौधरी चरण सिंह से रही थी प्रभावित सीट
1977 में  जनता पार्टी के गठन के बाद यह सीट पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह की राजनीति से प्रभावित रही है और उन्हीं के कोटे से 1977 में जनता पार्टी 1985 में लोक दल और 1889 और 1991 में जनता दल के प्रत्याशी चुनाव जीतते रहे हैं. 1991 में आई राम लहर में भी यह सीट भाजपा के पक्ष में नहीं रही, यहां भाजपा को पहली जीत 1996 में और उसके बाद 2007 में मिली है। निर्दलीय प्रत्याशी भी इस सीट पर समय समय पर विधायक चुने जाते रहे हैं. 2012 में जब प्रदेश में सपा ने स्पष्ट बहुमत पा कर अपनी सरकार बनाई तब भी सपा प्रत्याशी यहां से अपनी जीत दर्ज नहीं करा पाए.  इस साल यहां बसपा के कद्दावर नेता और पूर्व मन्त्री रामवीर उपाध्याय विजयी रहे. इसके बाद 2017 में यह सीट बीजेपी के खाते में चली गई. यहां से वीरेंद्र सिंह राणा विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे.


ये रह हैं विधायक


1952-मलखान सिंह-कांग्रेस
1957-मलखान सिंह-कांग्रेस
1962-नेकराम शर्मा-निर्दलीय
1967-नेकराम शर्मा-निर्दलीय
1969-जगदीश गांधी-निर्दलीय
1974-फाजांद अली-भारतीय क्रांति दल
1977-नेम सिंह चौहान-जनता पार्टी
1980-पुष्पा चौहान-कांग्रेस
1985-सुरेश प्रताप -दमकिपा
1989-सुरेश प्रताप गांधी-जनता दल
1991-सुरेश प्रताप गांधी-जनता दल
1993-अमर सिंह- सपा
1996-यशपाल सिंह चौहान-भाजपा
2002-अमर सिंह यादव-निर्दलीय
2007-यशपाल सिंह चौहान-भाजपा
2012-रामवीर उपाध्याय-बसपा
2017-वीरेंद्र सिंह राणा-भाजपा


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