साध्वी प्राची और संजीव बालियान के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस ले सकती है योगी सरकार!
इसी साल 17 जनवरी को उत्तर प्रदेश के न्याय विभाग में विशेष सचिव राज सिंह ने मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने 13 बिंदुओं पर जवाब मांगे थे.
नई दिल्ली/लखनऊ: उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार मुजफ्फरनगर और शामली में साल 2013 में हुए दंगों को लेकर बीजेपी नेताओं के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने में जुटी है. सरकार ने इस बारे में मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी से इन संभावनाओं पर रिपोर्ट तलब की है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अब राज्य सरकार बीजेपी के दो सांसद और तीन बीजेपी विधायकों के खिलाफ भड़काऊ भाषण और आपराधिक आरोपों में दर्ज मामलों को वापस लेने की प्रक्रिया में जुटी है. इन नेताओं में बीजेपी की फायरब्रांड प्रचारक साध्वी प्राची भी शामिल हैं.
दो संसाद और तीन विधायक को मिल सकती है राहत
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इनमें दो केस मुजफ्फरनगर साम्प्रदायिक दंगों से पहले महापंचायत में दिए भड़काऊ भाषण के भी है. आपको बता दें कि इस महापंचायत बीजेपी नेता साध्वी प्राची, बिजनौर के सांसद कुंवर भारतेंद्र सिंह और मुजफ्फरनगर के सांसद संजीव बालियान के साथ बीजेपी के तीन विधायक संगीत सोम, सुरेश राणा और उमेश मलिक भी शामिल थे.
7 सिंतबर 2013 को भड़की थी हिंसा
महापंचायत के बाद इस मामले में दो केस सिकेरा पुलिस स्टेशन में दर्ज किए गए थे. इसमें शाहनवाज की हत्या के मामले में आरोपी सचिन और गौरव की हत्या के बाद 7 सिंतबर 2013 को जिलें में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे. आरोप है कि आरोपियों ने अगस्त 2013 में एक महापंचायत का आयोजन कर अपने भाषणों से लोगों को हिंसा के लिए भड़काया था. इसके बाद मुजफ्फरनगर और आसपास के इलाके में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे. इन दंगों में 60 लोग मारे गए थे और 40 हजार से ज्यादा लोग बेघर हुए थे.
न्याय विभाग ने 13 बिंदुओं पर मांगा था जवाब
जानकारी के मुताबिक, इसी साल 17 जनवरी को उत्तर प्रदेश के न्याय विभाग में विशेष सचिव राज सिंह ने मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने 13 बिंदुओं पर जवाब मांगे थे. इनमें जनहित में मामलों को वापस लिया जाना भी शामिल है. पत्र में मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का विचार भी मांगा गया.
अभी नहीं दिया कोई भी जबाव
खबर के मुताबिक, इस मामले में अभी तक मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी ने उत्तर प्रदेश के न्याय विभाग को जवाब नहीं दिया है. अखबार के मुताबिक, मुजफ्फरनगर पुलिस ने इस मामले में अभी कोई विचार नहीं दिया गया.
पत्र में नहीं था किसी नेता का नाम
जानकारी के मुताबिक, पत्र में मुजफ्फरनगर के एसएसपी यानी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की राय भी मांगी गई है. हालांकि पत्र में किसी नेता का नाम नहीं है, लेकिन उनके खिलाफ दर्ज मामलों की फाइल संख्या का जिक्र है. इन सभी पर निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने, सरकारी अफसरों के काम में बाधा डालने और उनको गलत तरीके से रोकने के लिए भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत आरोपी हैं.