प्रमोद कुमार/अलीगढ़: उत्तर प्रदेश का अलीगढ़ शहर ताला और तालीम के लिए विश्व में विख्यात होने के साथ घुंगरू - घंटा उद्योग के लिए भी अपनी देश विदेश तक अलग ही पहचान रखता है. यहां अगले माह शुरू होने वाली कावड़ यात्रा को लेकर कावड़ियों के लिए घुंगरू और घंटी बनाने का काम जोरों पर है. 


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हिंदू-मुस्लिम कारीगर मिलकर करते हैं तैयार
बता दें, कावड़ यात्रा में कावड़िया पैरों में घुंघरू बांधे और हाथ में घंटी बजाकर भोले के जयकारे लगाते हुए, घुंघरू और घंटी बनाने का काम मुस्लिम और हिंदू कारीगर मिलकर करते हैं, यानी हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल भी है, कहा जाता है कि घुंघरू और घंटी कांवड़ मार्ग पर कांवड़ियों को सांप और बिच्छू से सुरक्षित रखता है.


दूर-दूर तक होती है सप्लाई
दूर-दूर तक यहां बने घुंगरू- घंटे और पीतल के अन्य उत्पादों की सप्लाई भेजी जाती है. अगले माह शुरू होने वाली कावड़ यात्रा को लेकर इस बार ऑर्डरों में भी अच्छा-खासा बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. अलीगढ़ में करीब 1000 छोटे बड़े कारखाने हैं, यहां कच्चे माल की गलाई के बाद ढलाई, घिसाई, पॉलिश, पैकिंग आदि काम किए जाते हैं, इन कारखानों में हजारों श्रमिकों और कारीगरों को रोजगार मिलता है.


फैक्ट्री मालिक हरिशंकर शर्मा का कहना है कि यहां तैयार हो रहे घुंगरू और घंटियां देश के अलग-अलग शहरों में जाती हैं, इसमें हमारे हिंदू -मुस्लिम सब कारीगर यहां पर लगे हुए हैं, सभी लोग अपने अलग-अलग कार्य के लिए एक्सपर्ट हैं जो सभी लोग मिलजुल कर काम करते हैं. इससे सभी को रोजगार मिल रहा है और सभी लोग खुश हैं. 


उन्होंने आगे बताया कि पहले कुछ ताले और हार्डवेयर के काम में कमी आई थी. उसको पूरा करने के लिए इस उद्योग ने हमको बहुत बड़ा सहारा दिया है. यहां बन रही घंटियों का प्रयोग ज्यादातर मंदिरों को सजाने में कावड़ को सजाने में इसके साथ ही एनिमल प्रदर्शनी में भी जाती हैं, जैसे महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश व कर्नाटक में बहुत बड़ा चलन है, वहां दिवाली से पहले अपने जानवरों को सजाते हैं, उस सजाने में भी इस उद्योग का बहुत बड़ा काम है. सावन के महीने को लेकर और ऑर्डरों में बढ़ोतरी हुई है.