अमित अग्रवाल/बदायूं : मकबरों के शहर के नाम से मशहूर बदायूं में कई ऐसे मकबरे और किले हैं जो बदायूं की पहचान को देश भर में चर्चा ए आम पर लाते हैं. ऐसे में बदायूं का ताजमहल कहे जाने वाले परवन बानो खानम का मकबरा बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है. रखरखाव के अभाव में यह खंडहर में तब्दील हो गया है. शाहजहां की बेगम मुमताज की बहन के मकबरे में आज भी मुगलिया यादें जिंदा हैं. 


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कई दशक तक आबाद रहा मकबरा 
बदायूं में मुगलकाल और गुलाम वंश के इतिहास की शौर्य गाथा लिए मशहूर ये मकबरे जमींदोज होने के मुहाने पर हैं. बदायूं शहर से तीन किलोमीटर दूर सोत नदी के किनारे बने परवर बानो खानम का मकबरा आगरा के मशहूर ताजमहल के बराबर दर्जे का है, क्योंकि वहां शाहजहां की मोहब्बत मुमताज दफन है तो बदायूं में मुमताज की सगी छोटी बहन और नवाब फरीद की पत्नी परवर बानो. कई दशक तक यह मकबरा आबाद रहा यहां तक कि खुद दिल्ली की सल्तनत के सुल्तान शाहजहां 1660 ईस्वी में बने इस मकबरे को देखने के लिए बदायूं आए थे. 


रखरखाव के अभाव में खंडहर में तब्‍दील मकबरा 
इतिहासकार स्वर्गीय फूलखान की बेटी हिबा फूल खान बताती हैं कि इस मकबरे के बराबर से अमरोहा जनपद से शाहजहांपुर जनपद तक जाने वाली लगभग 260 किलोमीटर लंबी सोत नदी बहती थी. इसका जल इतना निर्मल था कि सभी उसको पीते थे. जल की मछलियां साफ दिखाई देती थीं, वो अक्सर अपने पिता के साथ मकबरे पर घूमने जाती थीं, लेकिन रखरखाव के अभाव में मकबरा खंडहर हो गया है. रास्ता भी कच्चा है. इसलिए सूरज ढलने के साथ साथ मकबरे की तरफ कोई पर्यटक नहीं जाता है. 


कोई उस तरफ जाने से भी बचता है 
पुरातत्व विभाग की लापरवाही के चलते जिले की यह अनमोल धरोहर समाप्त होने वाली है. किले पर गुरुवार के दिन भिखारी आकार बैठ जाते हैं और हर आने जाने वाले से पैसे मांगते हैं इससे कोई भी उस तरफ जाने से बचता है. 


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