कानपुर में 100 साल पहले शुरू किया छोटा सा बिजनेस, आज टाटा बिरला जैसा कारोबार, 35 हजार करोड़ का टर्नओवर
Kanpur News in Hindi: कानपुर में जुग्गीलाल कमलापत सिंघानिया की कारोबारी सफलता की कहानी आज के समय में भी लोगों के दिलों में ताजा है. कैसे मामूली से कारोबार की शुरुआत के बाद बड़ा साम्राज्य पारिवारिक समूह ने खड़ा किया. आज यह समूह 140 साल पूरे कर चुका है.
Kamplapat Singhania Business Family History: कमलापत सिंघानिया उस जमाने के उद्योगपतियों में थे, जब ब्रिटिश हुकूमत के दौरान कारोबार करना आसान नहीं था. वर्ष 1915 में 31 साल की उम्र ने कानपुर में कपास की खरीद बिक्री से बिजनेस शुरू किया,लेकिन थोड़े वक्त में ही कॉटन मिल ही खरीद ली.देश में सिंघानिया ग्रुप का साम्राज्य एक समय टाटा और बिरला जैसा ही था.कानपुर के मारवाड़ी परिवार में जन्मे कमलापति सिंहानिया ने जेके समूह की स्थापना की, जिसका आज टर्नओवर 33 से 35 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा है. सिंघानिया परिवार आज इस कानपुर में इस कारोबारी समूह की स्थापना की 140वीं वर्षगांठ मना रहा है.
सिंघाना गांव से ताल्लुक
कमलापत सिंघानिया 7 नवंबर 1984 को कानपुर में जुग्गीलाल सिंघानिया के घर हुआ था. उनके पिता जुग्गीलाल कमलापत सिंघानिया भी राजस्थान के सिंघाना के सिंघानिया परिवार से थे. उनके परिवार में बैंकर, व्यापार, साहूकार से भरा पड़ा था. उन्होंने दाल, कपास गन्ना की बिक्री जैसे पारंपरिक व्यवसाय से बाहर बड़ा कारोबार करने का जोखिम लिया.
जेके कॉटन मिल्स की स्थापना
1921 में उन्होंने जुग्गीलाल कमलापत कॉटन मिल्स (JK Cotton Mills) नाम से कई मिलों की नींव रखी. जेके जूट मिल, जेके कॉटन मिल कानपुर की शान थी. तब कानपुर भारत का मैनचेस्टर कहलाता था. कमला आइस फैक्ट्री (1921), जेके ऑयल मिल्स (1924), जेके होजरी (1929), जेके जूट मिल्स (1931) शुगर मिल्स, जेके कॉटन मिल (1933) और जेके ऑयरन एंड स्टील कंपनी (1934) स्थापित की. 1934 में कमला टॉवर भी कानपुर में बनवाया, जो लंदन की बिग बेन स्टाइल में बनी थी. यहां आज भी जेके सीमेंट का मुख्यालय है.
गंगा कुटीर नाम से आलीशान बंगला
कमलापत सिंघानिया की फैमिली ने 1935 में गंगा नदी के किनारे 20 एकड़ से बड़े इलाके में आलीशान बंगला (Ganga Kuteer) बनवाया, जिसे गंगा कुटीर नाम दिया गया. यहां ऐशोआराम की सारी सुविधाए हैं. कमलापत के तीन बेटे पदमपत, कैलाशपत और लक्ष्मीपत सिंघानिया थी. कानपुर का प्रसिद्ध जेके टेंपल (JK Temple) भी उन्होंने बनवाया.
फर्रुखाबाद में आकर बसे
कमलापत सिंघानिया के पूर्वज राजस्थान के झूंझनू जिले के सिंघाना इलाके से निकलकर फर्रुखाबाद में आकर बस गए. उन्हीं में एक बलदेवदास के छह बेटों में एक जुग्गीलाल थे. जब भाइयों में परिवार में कारोबार का बंटवारा हुआ तो 1915 में जुग्गीलाल कानपुर आ गए. उनके पास सिर्फ आटा मिल ही थीं. साथ ही एल्गिन मिल्स, कानपुर कॉटन मिल्स और विक्टोरिया मिल्स में कपास की खरीद बिक्री के बड़े एजेंट थे.
जेके ग्रुप की नींव
कमलापत सिंघानिया ने जिस कारोबारी समूह जेके ग्रुप (JK Group) की नींव रखी थी, आज उसका टर्नओवर 50 हजार करोड़ रुपये से ऊपर का है. जेके टॉयर, जेके सीमेंट(JK Cement) , जेके लक्ष्मी सीमेंट, जेके इंटरप्राइजेज, रेमंड ग्रुप (Raymond) समेत 25 से ज्यादा क्षेत्रों में जेके समूह का कारोबार फैला है. मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, राजस्थान और कर्नाटक के शहरों तक समूह का कारोबार फैला है.
कानपुर में मर्चेंट चैंबर
दूरदर्शी कमलापत ने 1932 में कारोबारियों के संगठन उत्तर प्रदेश मर्चेंट्स चैंबर का भी गठन किया था. शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में भी सामाजिक योगदान किया. जेके लक्ष्मीपत विश्वविद्यालय, जेके कैंसर रिसर्च हॉस्पिटल, कानपुर में लाला कमलापत मेमोरियल हॉस्पिटल के अलावा लखनऊ और इलाहाबाद में कई संस्थानों का निर्माण कराया.
स्वदेशी आंदोलन में योगदान
स्वदेशी आंदोलन में भी परिवार ने योगदान दिया. कमलापत सिंघानिया और उनके बेटे लक्ष्मीपत सिंघानिया ने मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय जैसे नेताओं के साथ स्वदेशी आंदोलन में सक्रिय सहयोग किया.
पहला स्वदेशी टीवी सेट बनाया
1968 में पहली जेके समूह ने ही देश में पहले स्वदेशी टीवी सेट का निर्माण किया. 1977 में पहले स्टील बेल्टेड रेडियल टायर बनाया. 1984 में देश की पहली कंपनी जिसने व्हाइट सीमेंट बनाया. छह महाद्वीपों में कारोबार के साथ समूह के 46 विनिर्माण संयंत्र हैं.
कारोबार का बंटवारा
कारोबार के बंटवारे को लेकर परिवार लंबी लड़ाई से जूझता रहा है. जेके समूह अब तीन बड़े हिस्सों में बंट चुका है. इनमें कानपुर में गौर हरि सिंघानिया की फैमिली, मुंबई में विजयपत सिंघानिया और दिल्ली में हरि शंकर सिंघानिया का परिवार समूह से जुड़ी व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन करता है. 140 साल पूरे होने पर जेके मंदिर में विशेष आयोजन किया या था.
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