Mathura Shri Krishna Janmabhoomi: शाही ईदगाह मस्जिद का सच! 160 साल पूर्व सर्वे ने खोली थी मुस्लिम पक्ष के दावों पोल
Mathura Shri Krishna Janmabhoomi: हरिशंकर जैन कहते हैं कि कल को नौकर को अगर घर की जिम्मेदारी दी जाए तो मालिक की अनुपस्थिति में पड़ोसी के साथ नौकर मकान का समझौता कर दे तो नौकर के समझौते के आधार पर क्या मकान पड़ोसी का हो जाएगा.
Mathura Shri Krishna Janmabhoomi Shahi Idgah Masjid Dispute: मथुरा में पिछले लगभग दो सौ वर्ष से शाही ईदगाह मस्जिद के नीचे मंदिर होने का दावा हिंदू पक्ष की ओर से किया जा रहा है. हालांकि, अब हिंदू पक्ष द्वारा उठाई गई शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे की मांग को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी स्वीकृति दे दी है. साथ ही कोर्ट की ओर से आदेश जारी किया गया है कि मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि से सटी शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वेक्षण भी करवाया जाए. इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष ने चुनौती दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वेक्षण के आदेश पर रोक लगाने से साफ इनकार किया जिससे मुस्लिम पक्ष को झटका लगा है. हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह की भूमि विवाद में Court Commissioner के द्वारा शाही ईदगाह परिसर का सर्वेक्षण किया जाएगा.
कोर्ट कमिश्नर करेंगे मस्जिद का सर्वे
शाही ईदगाह परिसर में Court Commissioner की एक टीम जाकर उसके नीचे मंदिर होने के दावे को लेकर जांच करेगी, साथ ही इस संबंध में सबूत भी जुटाएगी. सर्वे के तरीके, सर्वे का समय और इससे जुड़ी अन्य बातों को हाईकोर्ट में होने वाली अगली सुनवाई में तय किया जाएगा. अगली सुनवाई 18 दिसंबर को होनी है. होगा.
हालांकि यह बात बहुत कम लोगों को पता होगी कि आज से 160 वर्ष पूर्व Archeological Survey of India के द्वारा पुष्टि की गई थी कि मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद प्राचीन मंदिर के अवशेषों पर बनी है. अंग्रेजों के जमाने में यानी 1832 से 1935 तक मथुरा की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से लेकर इलाहाबाद हाइकोर्ट तक ने हर बार पूरी भूमि का मालिक हिंदुओं को मानता रहा और आज भी मथुरा के राजस्व रिकॉर्ड में मस्जिद वाली जगह यानी जहां पर यह ढांचा बनी है, उसके मालिक के रूप में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट ही लिखा हुआ है.
5 बड़े सबूत
आज से 160 वर्ष पुरानी Archeological Survey of India की रिपोर्ट , मुस्लिम आक्रांता औरंगजेब का फरमान जो 27 जनवरी 1670 को दिया गया और समझौते की वो Original Copy, जो श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह इंतजामिया कमेटी के बीच वर्ष 1968 में हुआ था. वर्ष 1935 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय की Copy, जिसमें इस विवाद को लेकर फैसला हिंदुओं के पक्ष में सुनाया गया. यूपी सरकार के राजस्व विभाग का एक दस्तावेज जिसमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम शाही ईदगाह मस्जिद की भूमि का मालिकाना हक दर्ज है. इन सबूतों के आधार पर हिंदू पक्ष की ओर से दावा किया जाता है कि प्राचीन कृष्ण मंदिर को तोड़कर मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद खड़ी की गई. ध्यान देने वाली बात ये है कि इन दस्तावेजों में दर्ज सच को समझने के लिए यह आवश्यक है कि विवाद का इतिहास जान लिया जाए.
इतने एकड़ भूमि को पर विवाद
पूरा विवाद 13.37 एकड़ भूमि का है, इसमें श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास 10.9 एकड़ भूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के पास 2.5 एकड़ भूमि है. 1968 के समझौते को आधार बनाकर यह बंटवारा किया गया. हालांकि खुद समझौता भी विवादों में ही है. दरअसल, हिंदू हमेशा से दावा करते हैं कि ईदगाह मस्जिद जिस भूमि पर है वहां पर पहले मंदिर था और औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाकर उस जगह पर मस्जिद बनवाई थी.
हिंदू पक्ष दावा करता है कि जहां कंस की कारागार में माता देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया ईदगाह मस्जिद वही जगह है यानी श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर ही ईदगाह मस्जिद बनाई गई है. हिंदू पक्ष ये चाहता है कि पूरी 13.37 एकड़ भूमि पर उसको मालिकाना हक मिले जिसके लिए 25 सितंबर 2020 में मथुरा कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. तब Places Of Worship Act 1991 के आधार कोर्ट ने याचिका को खारिज किया था. हालांकि इस संबंध में साल 2020 के ही 12 अक्टूबर को पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी. अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसी केस में शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वेक्षण करने का आदेश दिया है.
औरंगजेब के आदेश पर मंदिर तोड़ा गया
ऐतिहासिक प्रमाणों और सबूतों के बारे में आइए जानते हैं, तो इसकी शुरुआत 27 जनवरी 1670 को औरंगजेब के द्वारा दिए उस फरमान से करते हैं जिसकी मूल प्रति फारसी भाषा में है. जिसका अंग्रेजी अनुवाद.. पुस्तक Masir A alamgiri में किया गया है जोकि औरंगजेब के फरमानों के अनुवाद पर लिखी पुस्तक है. इस फरमान में लिखा है कि मथुरा स्थित केशव देव मन्दिर को तोड़ने का फरमान रमज़ान के पाक महीने में बादशाह ने दिया है. मन्दिर को तोड़ने के बाद आगरा स्थित बेगम साहिब मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे उसकी मूर्तियों को दफना दिया जाना है और अब से मथुरा का नाम बदल कर इस्लामाबाद कर दिया गया है. इतिहासकारों की माने तो मन्दिर को विध्वंस करने के फरमान पर अमल होने के बाद शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण वर्ष 1670 में ही ध्वस्त मन्दिर के अवशेषों किया गया था.
विदेशियों की तारीफ
विध्वंस से पहले मन्दिर कितना सुंदर था इस संबंध में अपनी किताब Travels in the Mogul Empire 1656-1666 में डॉक्टर Francois Bernier (बेर्नियर) करता है. Francois Bernier ने लिखा- लिखता है कि दिल्ली से आगरा के बीच यानी 50 से 60 मील (277 से 330 किलोमीटर) की दूरी के बीच में देखने लायक कुछ भी नहीं है. सब बेकार है सिवाए मथुरा के, एक प्राचीन व सुंदर मंदिर यहां पर अभी भी खड़ा है. इतिहासकारों का मानना है कि ये मथुरा का केशव राय मन्दिर है, बेर्नियर जिसका जिक्र कर रहा है और जिसको औरंगजेब ने तुड़वाया और फिर उस पर शाही ईदगाह मस्जिद बनवाया.
मथुरा में स्थिति मस्जिद की दीवारों पर मंदिर के चिह्ननों की पहचानने के लिए कोई पारखी आंखों की आवश्यकता नहीं. हिंदू निशानों और प्रतीक चिह्नों को मिटाने में मुस्लिम आक्रांताओं ने मेहनत तो की लेकिन दीवारें सच को नहीं दबा पाएं. पूरी 13.37 एकड़ भूमि का मालिकाना हक राय पटनीमल से होकर खुद भगवान श्रीकृष्ण के पास ही आ गया पर 2.5 एकड़ भूमि के लिए सैकड़ों साल से खुद अपनी जन्मभूमि के मालिकाना हक की लड़ाई भगवान श्रीकृष्ण कोर्ट में लड़ रहे हैं. महेंद्र प्रताप सिंह पैरवीकारों में शामिल हैं .
मस्जिद कमेटी को ASI पर भरोसा नहीं
ऐतिहासिक तथ्यों से लेकर ASI की रिपोर्ट तक मस्जिद के हिन्दू मन्दिर को तोड़ कर बनाने पर गवाही दे रही है लेकिन ASI की रिपोर्ट को ही शाही ईदगाह मस्जिद इंतजामिया कमेटी मनगढंत बता रही है. वकील हरिशंकर जैन कोर्ट में 30 वर्ष से आराध्यों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. हरिशंकर जैन कहते हैं कि कल को नौकर को अगर घर की जिम्मेदारी दी जाए तो मालिक की अनुपस्थिति में पड़ोसी के साथ नौकर मकान का समझौता कर दे तो नौकर के समझौते के आधार पर क्या मकान पड़ोसी का हो जाएगा. मथुरा जन्मभूमि व शाही ईदगाह के विवाद पर मथुरा की अलग अलग अदालतों में कई मुकदमे चल रहे हैं. लेकिन प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती .
सरकारी कागज
शाही ईदगाह मस्जिद की इंतजामिया कमेटी साल 1976 में इसी कथित समझौते को लेकर मथुरा नगर पालिका के पास अगर जाती है, 2.5 एकड़ भूमि जहां पर मस्जिद है, उसे मस्जिद इंतजामिया कमेटी के नाम करने का आवेदन करती है पर इस समझौते को ही मथुरा नगरपालिका खारिज कर देती है. मथुरा नगर निगम का Document भी है इसमें खेवत संख्या 255...जहां पर शाही ईदगाह मस्जिद खड़ी है उस भूमि का मालिक..श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट..लिखा है.
इसके अलावा वर्ष 2015 का यूपी सरकार द्वारा verified खतौनी की भी Copy मौजूद है. खेवत संख्या 255 का मालिक भगवान श्रीकृष्ण को ही यहां पर भी बताया गया है. इसके अलाव शाही ईदगाह मस्जिद की दीवारों पर भी सच्चाई साफ दिखाई दे रही है. हालांकि अब इलाहाबाद हाईकोर्ट के द्वारा शाही मस्जिद परिसर के सर्वे का आदेश दे दिया गया है, इसमें अब क्या निकलकर आएगा ये देखना होगा.