Meerut ka Itihaas: मेरठ...एक ऐसा शहर जो धर्म से लेकर इतिहास तक और प्रकृति से लेकर शौर्य गाथाओं तक के लिए बेहद खास है. आप एक बार मेरठ घूमकर देखिए, यहां आपको पांडवों का मंदिर और 1857 की क्रांति के इतिहास से साक्षात्कार होगा. इनके पास से गुजरे तो इनकी गाथा, कथा सुनाई देगी. साफ शब्दों में कहें तो मेरठ का इतिहास बेहद समृद्ध है. इस शहर का संबंध रामायण और महाभारत काल से रहा है. त्रेतायुग में यह रावण का ससुराल था तो द्वापरयुग यानी महाभारत काल में यह हस्तिनापुर हुआ करता था. मौजूदा वक्त में यह शहर यूपी की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देता है.  


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मेरठ भारत के खेल शहर के रूप में भी जाना जाता है. यह देश में खेल के सामान के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है. इतना ही नहीं यह देश में संगीत वाद्ययंत्रों के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में भी जाना जाता है, साथ ही यह एशिया के सबसे बड़े सोने के बाजारों में से एक है. 


क्या है शहर का इतिहास?
मेरठ का पुराना नाम मयराष्ट्र था, जो मय के प्रदेश का मतलब होता है. किवंदती है कि रावण के ससुर मय दानव के नाम पर यहां का नाम मयराष्ट्र पड़ा, जैसा की रामायण में वर्णित है. रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका यहीं था. इसलिए, मेरठ को रावण की ससुराल भी कहा जाता है. वहीं महाभारत में जिस हस्तिनापुर का जिक्र होता है वह मेरठ का ही क्षेत्र है. विदुर का टीला की पुरातात्विक खुदाई के दौरान द्वापर युग यानी महाभारत काल के अवशेष मिला है. जो उस दौर में कौरव राज्य की राजधानी थी. 


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महाभारत काल के अवशेष
रिपोर्ट्स की मानें तो बहुत पहले गंगा नदी की बाढ़ में यह बह गई थी. आज भी यहां पांडव टीला, बरनावा में लाक्षागृह की गुफाएं, कर्ण मंदिर, द्रोपदी तालाब, पांडवेश्वर महादेव मंदिर और विदुर कुटी मौजूद हैं. बता दें कि लाक्षागृह यानी लाह के महल में पांडवों को जिंदा जलाकर मारने की साजिश रची गई थी. हालांकि, पांडव सुरक्षित बच गए थे.  


बौद्ध धर्म का केंद्र 
मौर्य सम्राट अशोक के शासन काल में मेरठ बौद्ध धर्म का केंद्र रहा. शहर की जामा मस्जिद में बौद्ध संरचनाओं के अवशेष मिले हैं. यहीं से दिल्ली के बाड़ा हिन्दू राव अस्पताल, दिल्ली विश्वविद्यालय के निकट अशोक स्तंभ, फिरोज शाह तुगलक द्वारा दिल्ली लाया गया था. बाद में यह 1713 में, एक बम धमाके में ध्वंस हो गया और 1867 में जीर्णोद्धार किया गया. इसके अलावा बादशाह अकबर के शासन काल में मेरठ में तांबे के सिक्के चला करते थे.  


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मोहम्मद गौरी का आक्रमण
ग्यारहवीं शताब्दी में जिले का दक्षिण-पश्चिमी हिस्से पर बुलंदशहर के दोर राजा हर दत्त का शासन था, जिसने एक किला बनवाया, जिसका आइन-ए-अकबरी में भी जिक्र है. बाद में वह महमूद गजनवी से 1018 में हार गया. हालांकि, शहर पर पहला बड़ा आक्रमण मोहम्मद गौरी ने 1192 में किया, लेकिन इस शहर का इससे बुरा भाग्य अभी आगे खड़ा था. 


तैमूर लंग का हमला
जब 1398 में तैमूर लंग ने आक्रमण किया, उसे राजपूतों ने कड़ी टक्कर दी. यह लोनी के किले पर हुआ, जहां उन्होंने दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक से भी युद्ध किया, लेकिन वे सब हार गए. इसका जिक्र तैमूर लंग के तुजुक-ए-तैमूरी में मिलता है. उसके बाद वह दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ गया. फिर दोबारा मेरठ पर हमला बोल दिया. जहां तब एक अफगान मुख्य का शासन था. उसने नगर पर दो दिनों में कब्जा कर लिया.


स्वतंत्रता की लड़ाई में योगदान
मेरठ का नाम ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के लिए भी मशहूर है. 10 मई, 1857 को मेरठ की छावनी में ब्रिटिश सेना के भारतीय जवानों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. इस विद्रोह को अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का पहला कदम और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली चिंगारी माना जाता है. इस विद्रोह में शामिल जवानों ने एक दिन में ही मेरठ पर कब्जा कर लिया था और दिल्ली के लाल किले की ओर बढ़ चले थे. 


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