शिव कुमार/शाहजहांपुर : सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है, यह लाइनें उन अमर शहीदों की जुबान से निकली हुई है जिन्होंने देश की आजादी के खातिर फांसी के फंदे को चूम हमें आजादी दिलाई. हम बात कर रहे हैं शाहजहांपुर के रहने वाले शहीदे वतन अशफाक उल्ला खां और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती की, जो पूरे देश में गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करती है. अशफाक उल्ला खान का परिवार और शाहजहांपुर के वाशिंदे इस अमर शहीद की कुर्बानी पर फक्र महसूस करते हैं.


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शाहजहांपुर ने अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह जैसे अमर वीर सपूतों को जन्म दिया है. ये आजादी के वे दीवाने थे जिन्होंने हमें आजादी दिलाने के खातिर खुद को कुर्बान कर दिया और हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए.


हिन्‍दू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की 
अशफाक उल्ला खां एक ऐसे अमर शहीद थे, जिन्होंने पूरे देश में हिन्‍दू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की है. अशफाक उल्‍ला खां और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती की आज भी कसमें खाई जाती हैं. अमर शहीद अशफाक उल्ला खां का जन्म मोहल्ला एमन जई जलाल नगर में 22 अक्टूबर 1900 में हुआ था.


जेल में लिखी थी डायरी 
वहीं, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म शहर के खिरनीबाग मोहल्ले में 11 जून 1897 को हुआ था. अशफाक उल्ला खां से जुड़ी तमाम यादें आज भी उनके परिवार के पास एक धरोहर के रूप में रखी हुई हैं. जेल में उनके हाथों से लिखी गई एक डायरी और अपनी मां को लिखी गई कई चिट्ठियां इस बात को भी बयां करती हैं कि वह अपनी मां और देश को बहुत प्यार करते थे. 


सरकार ने सुंदरीकरण करवाया 
घर के पास में ही अशफाक उल्ला की मजार बनी हुई है. इसका उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बार सुंदरीकरण करवाया है. अशफाक उल्ला खां के मजार को सुंदर ढंग से सजाया गया है. इसके अलावा शहीदों के नाम पर एक खास संग्रहालय बनाया गया है. यहां पर पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह से जुड़ी स्मृतियां और काकोरी कांड में इस्तेमाल हुआ रिवॉल्वर भी संग्रहित कर के रखा गया है. 


एक ही क्‍लास में की थी पढ़ाई 
शहर के बीचो-बीच में अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और शहीद ठाकुर रोशन सिंह की प्रतिमा है जो हर वक्त देश के लिए उनकी कुर्बानी को याद दिलाती है. एवीरिच इंटर कॉलेज में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल एक ही क्लास में पढ़ाई करते थे. 


काकोरी कांड में दी गई थी फांसी की सजा 
आजादी के लिए दोनों को काकोरी कांड में 17 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई थी. आज शाहजहांपुर को इन्हीं शहीदों के नाम से एक पहचान मिली है. यही वजह है कि शहीदों के नगरी के लोग ऐसे अमर शहीदों पर गर्व महसूस कर रहे हैं और उनके नक्शे कदम पर चलने की बात कर रहे हैं. यहां के लोगों को यह तमन्ना रहती है कि उनके घर में भी अशफाक उल्ला खां और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जैसे लोग जन्म लें.


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