पांडवों से लेकर महाराणा प्रताप तक जुड़ा है पीलीभीत का इतिहास, नेपाल सीमा पर बसा तराई का ये इलाका
Pilibhit History: मुगल काल में पीली दीवारों के चलते इस जगह को पीलीभीत के नाम से पुकारा जाने लगा. इसका इतिहास द्वापर से जुड़ा हुआ भी बताया जाता है. यहां पर कुछ मंदिर और ऐतिहासिक इमारतें भी है जो नगर की खूबसूरती को बढ़ाती हैं
Pilibhit News: यूपी के पुराने शहरों में पीलीभीत का नाम भी लिया जाता था, जिसका इतिहास द्वापर से जुड़ा हुआ भी बताया जाता है. यहां पर कुछ मंदिर और ऐतिहासिक इमारतें भी है जो नगर की खूबसूरती को बढ़ाती हैं. मुगल काल में पीली दीवारों के चलते इस जगह को पीलीभीत के नाम से पुकारा जाने लगा. वहीं राजस्थान और नेपाल के राजाओं का भी इतिहास जुड़ा है. इस जगह से 28 सालों से इस क्षेत्र पर मेनका गांधी परिवार राज कर रहा है.
राजा पांडव काल में यहां शासन करता था
वेणु नाम का राजा पांडव काल में यहां शासन करता था, जो भगवान कृष्ण का परम शिष्य और अर्जुन का अच्छा दोस्त भी था. मुगल काल में महाराणा प्रताप की मृत्य के बाद उनके वंशजों ने यहीं पर आकर शरण ली थी, राजपूतों का थार से संबंध होने के चलते उन्हें थार राजपूत के नाम से पुकारा जाने लगा.इसकी सीमा पड़ोसी देश नेपाल से भी लगती है और कहा जाता है कि नेपाल के एक राजा ने युद्ध के दौरान इसी क्षेत्र में छिपकर अपनी जान बचाई थी.
जगह का नाम पीलीभीत पड़ा
यहां की दीवारें पीली होने के चलते 18वीं सदी में जगह का नाम पीली भीत पड़ गया. क्षेत्र की शिल्प कला की बात की जाए तो उसका इतिहास काफी फैला हुआ है . यहां के गौरी शंकर मंदिर में लोग दूर दूर से पूजा के लिए आते है, श्रावण के सोमवार को तो यहां भारी भीड़ देखने को मिलती है. इसके अतीत के बारे में कहा जाता है कि एक संत के सपने में भगवान शिव दिखाई दिए थे. इसके बाद इस मंदिर का निर्माण किया गया. दिल्ली की तर्ज़ पर ही यहां एक खूबसूरत मस्जिद बनाई गई है. इसे जामा मस्जिद के नाम से जाना जाता है. इसका निर्माण 1769 में मुगल शासक हाफिज रहमत खान ने करवाया था. वहीं शहर के चार दरवाजे भी किसी समय में यहां की रौनक बढ़ाते थे, इसमें तीन अब ध्वस्त हो चुके हैं और चौथा ढहने की काग़ार पर है.
देश की आजादी के बाद क्षेत्र में बड़े उतार चढ़ाव देखने को मिले भारत पाक विभाजन के समय पाकिस्तान से काफी तादाद में आकर लोग यहां बस गए और यहीं के होकर रह गए. आजादी के बाद यहां की राजनीतिक स्थिति की बात की जाए तो कांग्रेस को इस सीट के लिए नेहरू के समय से ही संघर्ष करना पड़ा है . वहीं पिछले अट्ठाइस सालों से इस क्षेत्र पर मेनका गांधी परिवार का दबदबा कायम है.
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