जितेन्द्र सोनी/उत्तरप्रदेश:  जालौन के डकोर ब्लॉक की ग्राम पंचायत सैदनगर में रक्तदंतिका नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. गांव से निकली बेतवा नदी किनारे एक ओर पहाड़ों पर बसी रक्तदंतिका शक्तिपीठ का वर्णन मां दुर्गा सप्तशती पाठ के दो श्लोकों में मिलता है. पहाड़ पर देवी रक्तदंतिका विराजमान हैं. यह मंदिर सदियों पुराना है. इनकी प्राचीनता का अनुमान लगाना बेहद ही मुश्किल हैं. श्रद्धालुओं का इनके प्रति अटूट विश्वास बना हुआ है.


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वास्तिवक पूजा दंत शिलाओं की होती है.
पहाड़ में देवी के मंदिर के साथ ही दूसरी तरफ एक हनुमान जी का मंदिर भी बना हुआ है. इस मंदिर की विशेषता यह है कि देवी मंदिर में दो शिलाएं रखी हुई हैं. यह शिलाएं रक्तिम हैं. मां सती के दांत यहां पर गिरे थे. ऐसे कहा जाता है, कि अगर शिलाओं को पानी से धो दिया जाए तो कुछ ही देर में यह शिलाएं फिर से रक्तिम हो जाती हैं. अब इस मंदिर में एक देवी प्रतिमा की स्थापना कर दी गई है. वास्तिवक पूजा यहां दंत शिलाओं की ही होती है. नवरात्रि के मौके पर दूर-दराज से भारी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में अपना मत्था टेकने के लिए आते हैं.


शक्तिपीठ तंत्र साधना का केंद्र
देवी रक्तदंतिका स्फटिक के पहाड़ पर विराजमान हैं. पहले यह शक्तिपीठ तंत्र साधना का केंद्र हुआ करता था. यहां बलि भी चढ़ाई जाती थी. फिलहाल अब इस पर रोक लगा दी गई है. नवरात्रि में मैया के मंदिर में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश ,राजस्थान, दिल्ली सहित कई अन्य राज्यों से आने वाले भक्तों की भीड़ माता के दर्शनों के लिए उमड़ती है.


कोई माँ के दरबार से खाली हाथ नही लौटता.
मंदिर के गर्भ गृह में किसी को जाने की अनुमति नहीं है. यह मंदिर सृष्टि के निर्माण के समय का है. दूर-दूर से श्रदालु यहाँ पहुचते है और जो एक बार भी यहाँ आता है उसकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है. कोई भी माँ के दरबार से खाली हाथ नही लौटता.


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