विशाल सिंह/लखनऊ: पीलीभीत एनकाउंटर मामले में कोर्ट ने 43 पुलिसकर्मियों को सजा सुनाई है. जुलाई 1991 में तीर्थयात्रा को जा रहे 10 सिखों को आतंकी बताते हुए बस से उतर कर मार दिया गया था. पुलिस का दावा था मारे गए सभी लोग खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट से जुड़े थे. कोर्ट ने कहा कानून की ताकत का गलत इस्तेमाल किया गया. इससे पहले सीबीआई की विशेष अदालत ने पीलीभीत फर्जी मुठभेड़ कांड में दोषी ठहराए गए सभी 47 पुलिसवालों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इस पर गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उस सजा की जगह ये सजा सुनाई. 2016 में सीबीआई हत्या, अपहरण और षड्यंत्र समेत अन्य धाराओं में सुना चुकी है. आरोपियों को सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की गई थी. हाईकोर्ट में पुलिस की सेल्फ डिफेंस में सिखों को मारने की दलील को किया खारिज. 


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पुलिसकर्मियों को 7 साल की कठोर सजा और 10-10 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई गई है. कोर्ट ने सभी आरोपियों को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया है. कोर्ट ने 304 में ही दोषी माना है जबकि सीबीआई ने कई धारा लगाई थी.


178 गवाह सीबीआई ने बनाए थे 
सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन ने अपने आरोप पत्र में 178 गवाह बनाए थे. जांच के दौरान पुलिसकर्मियों के हथियार, कारतूसों समेत 101 सुबूत तलाशे गए थे. जांच एजेंसी ने 207 कागजातों को भी अपनी 58 पन्नों के आरोप पत्र में साक्ष्य के रूप में शामिल किया था.


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एक वकील ने सर्वोच्च न्यायालय में मामले को लेकर जनहित याचिका दाखिल की थी. सुनवाई के बाद कोर्ट ने 15 मई 1992 को मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी. सीबीआई ने मामले की जांच के बाद 57 पुलिस कर्मियों के विरुद्ध सुबूतों के आधार पर आरोप पत्र दायर किया. अदालत ने मामले में 47 को दोषी ठहराया था, जबकि 2016 तक 10 की मौत हो चुकी थी.