प्रमोद कुमार/कुशीनगर: हिंदी फिल्म 'कागज' में पंकज त्रिपाठी का किरदार 'लाल बिहारी' आपको याद होगा. कुछ ऐसा ही मामला उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में सामने आया है. जहां एक बूढ़ी महिला खुद को जिंदा साबित करने के लिए जद्दोजहद करती नजर आ रही है. दरअसल, प्रशासनिक लापरवाही ने एक जिंदा वृद्ध महिला को मृत घोषित कर दिया. इसके पीछे वजह क्या थी ये तो जांच का विषय है. आइए बताते हैं पूरा मामला.


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आपको बता दें कि कुशीनगर के दुदही ब्लाक का अमही गांव का मामला है. वहीं, तस्वीर में दिखने वाली बुजुर्ग महिला का नाम मोती रानी है, जो आपको तो जिंदा नजर आ रही, लेकिन प्रशासन को नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि कागजों में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है. वहीं, ये महिला खुद को जिंदा साबित करने के लिए पिछले कई महीनों से सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रही हैं. अब बुजुर्ग महिला मोती रानी की एक ही तमन्ना है, खुद को जिंदा साबित करना. बाकी का खेल तो कागजों का है.


मोती रानी को साल 2001 में कागजों मृत घोषित
आपको बता दें कि पीड़ित महिला के पति की मौत साल 2017 में हो हुई थी. जानकारी के मुताबिक जब साल 2022 में खेत की वरासत कराने के लिए पीड़ित महिला के पोते ब्लाक पर पहुंचे, तो पता चला कि मोती रानी को साल 2001 में ही उन्हें कागजों में मार दिया गया है. घरवालों को जब मामले की जानकारी हुई, तो सभी आनन-फानन में ब्लाक पहुंचे. वहां भी कुछ नहीं हुआ, मिला तो सिर्फ आश्वासन.


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खैर पंकज त्रिपाठी की कागज फिल्म में भले आजमगढ़ के लाल बिहारी खुद के जिंदा होने का सबूत देने में दो दशक लगा दिए हों, पर कुशीनगर की पीड़ित मोती रानी को कितना वक्त लगेगा ये तो भगवान ही जानें. हां ये जरूर है कि ऐसे मामलों से अफसरशाही के गिरेबान पर लगा दाग को और गहरा करते जा रहे हैं. अब देखना है कि मोती रानी कागजों में कब तक जिंदा होती हैं. किसी ने ठीक ही कहा है- कागजी मौत का शिकार है वो, दर दर भटकती और बेजार है वो...