मोहित गोमत/बुलंदशहर: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है. इसके साथ ही राष्ट्रपति चुनने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है. देश भर से राष्ट्रपति पद के लिए योग्य उम्मीदवारों का चयन अलग-अलग पार्टियां कर रही हैं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि देश को 16वें राष्ट्रपति के रूप में कौन महामहिम की गद्दी पर बैठा हुआ मिलेगा, लेकिन बात की जाए तो इस समय सोशल मीडिया पर राष्ट्रपति पद के लिए योग्य उम्मीदवारों के नामों को लेकर जबरदस्त ट्रेंड बना हुआ है. टि्वटर ट्रेंड में केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान का नाम सबसे ऊपर है, आरिफ मोहम्मद खान मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जनपद बुलंदशहर के फल पट्टी इलाके स्याना विधानसभा के रहने वाले हैं.


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वालिद चाहते थे बेटा बने डॉक्टर 
आरिफ मोहम्मद खान को बुलंदशहर की आवाम प्यार से आरिफ चचा के नाम से जानती है, आरिफ मोहम्मद खान का जन्म 18 नवंबर 1951 को स्याना विधानसभा क्षेत्र के गांव मोहम्मदपुर बरनाला में हुआ था. आरिफ मोहम्मद खान ने गांव मोहम्मदपुर बरनाला के किसान अशफाक मोहम्मद खां के यहां जन्म लिया था, आरिफ मोहम्मद खान के पिता अशफाक मोहम्मद खान स्याना फल पट्टी क्षेत्र के जाने-माने किसान थे. उनके वालिद साहब अशफाक मोहम्मद खान को लोग बाबू खान के नाम से भी जानते थे.पिता अशफाक मोहम्मद खान चाहते थे कि उनका बड़ा बेटा आरिफ अच्छी तालीम लेकर रुतबे दार नौकरी करें, इसी ख्वाहिश को लेकर उनके ने अच्छी तालीम देने के लिए दिल्ली के जामिया स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा के लिए एडमिशन दिला दिया.


आरिफ मोहम्मद खान ने जमात 1 से लेकर पांचवी तक की प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली स्थित जामिया स्कूल से ग्रहण की. इसके बाद उन्होंने अपने मूल जनपद की ओर रुख करते हुए नर्सेना स्थित गणेश स्मारक आदर्श स्कूल में आगे की शिक्षा लेने के लिए पहुंचे. यहां से उन्होंने  ने 6 क्लास से लेकर हाईस्कूल तक की शिक्षा ग्रहण की, आगे की शिक्षा के लिए एक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का रुख किया और मुस्लिम यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस मेडिकल की पढ़ाई में दाखिला ले लिया. 


पहले साल ही बन गए जनरल सेक्रेटरी 
आरिफ मोहम्मद खान के घर में खानदानी चाचा मुमताज मोहम्मद खान समेत बड़े-बड़े नेता राजनीति करते रहते थे और आरिफ मोहम्मद खान का बचपन इस राजनीतिक अखाड़े में दांव पेच खेलते खेलते बड़ा हुआ था. जैसे ही उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया तो उनके  रगों में राजनीतिक खून जोर देना शुरू कर दिया और वे मुस्लिम यूनिवर्सिटी के राजनीतिक अखाड़े में कूद पड़े. नतीजा यह निकला कि अलीगढ़ मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन ने आरिफ मोहम्मद खान को मेडिकल कोर्स के दौरान पहले साल में ही जनरल सेक्रेटरी के खिताब से नवाज कर पलकों पर बिठा लिया, क्योंकि अक्सर आरिफ मोहम्मद खान स्टूडेंट और युवाओं की आवाज बनकर पुरजोर सरकारों का विरोध करते थे.


राजनीति के लिए छोड़ दी MBBS की पढ़ाई 
इसी बीच सन 71-72 के बीच अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट का चुनाव हुआ और एक बार फिर से आरिफ मोहम्मद खान विपक्षी को ढेर करते हुए अलीगढ़ मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन की प्रेसिडेंट की कुर्सी पर काबिज हो गए. स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट की कुर्सी पर काबिज होने के बाद उन्होंने अपना ज्यादा समय राजनीति और युवाओं से संबंधित मुद्दों को लेकर जमकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार के विरोध में नजर आते थे. एक तरफ मेडिकल की पढ़ाई तो एक तरफ राजनीति दोनों के बीच एक दूसरे को पूरा समय दे पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा था, जिसके चलते आरिफ मोहम्मद खान ने मेडिकल की पढ़ाई छोड़ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में B.A. करने का फैसला लिया.


इमरजेंसी के आग में खुद को झोंक दिया 
आरिफ मोहम्मद खान ने जब तक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरा किया, तब तक लगातार आरिफ मोहम्मद खान कांग्रेस सरकार और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ युवाओं के साथ कैंपेन चलाते रहते थे, लगातार सरकार के विरोध में कैंपेन चलाने का नतीजा यह निकला कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने आरिफ मोहम्मद खान को बीए पूरा करने के बाद आगे की पढ़ाई अपने यहां न करने के लिए यूनिवर्सिटी से निष्कासित कर दिया, जिसके बाद आरिफ मोहम्मद खान ने लखनऊ के शिया कॉलेज से लॉ करने का फैसला लिया और लखनऊ के शिया कॉलेज में एडमिशन लिया. लखनऊ के शिया कॉलेज से लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद पूरे तरीके से इमरजेंसी के दौरान खुद को राजनीति की आग में झोंक दिया था.


कांग्रेस के कद्दवार नेता को हरा बने विधायक 
इसी बीच इंदिरा गांधी के द्वारा देश में इमरजेंसी लागू कर दी गई और इस इमरजेंसी में लाखों युवाओं नेताओं को इमरजेंसी के नाम पर जेलों में बंद कर दिया गया था. इन्हीं नेताओं में से एक आरिफ मोहम्मद खान भी थे, जिनको 19 महीने इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी के दौरान जेल में बंद रखा. 19 महीने जेल में बंद रहने के बाद जब आरिफ मोहम्मद खान वापस अपने घर लौटे तो इसी बीच उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का समय आ चुका था और आरिफ मोहम्मद खान ने जनता पार्टी से टिकट मिलने के बाद राजनीतिक अखाड़े में कांग्रेस के खिलाफ ताल ठोक दी. सन 78 के विधानसभा चुनावों में आरिफ मोहम्मद खान मात्र 26 साल की उम्र में कांग्रेस के कद्दावर और एनडी तिवारी के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मिनिस्टर मुमताज मोहम्मद खान के सामने चुनावी अखाड़े में जंग लड़ने के लिए तैयार थे और परिणाम यह निकला कि आरिफ मोहम्मद खान को 26 साल की उम्र में ही स्याना की जनता ने चुनाव में ही जीत दिलाकर विधानसभा भेजने का काम किया.


चुनाव जीतते ही इंदिरा के नजर में आए आरिफ खान 
स्याना विधानसभा से विधायक मुमताज मोहम्मद खान कांग्रेस में कैबिनेट मिनिस्टर थे और इंदिरा गांधी सरकार ने उनके ही क्षेत्र के युवा नेता आरिफ मोहम्मद खान को 19 महीने इमरजेंसी के नाम पर जेल में बंद रखा था और मोहम्मद खान को 19 महीने जेल में बंद रहने पर स्याना की जनता मुमताज मोहम्मद खान के खिलाफ हो चुकी थी और मुमताज मोहम्मद खान को इसी खिलाफत का खामियाजा उठाना पड़ा और उनके सामने मात्र 26 साल उम्र का जवान लड़का चुनाव हराकर विधानसभा पहुंच गया. इसी चुनाव के साथ ही उनका पोलिटिकल कैरियर पूरी तरीके से शुरु हो चुका था, क्योंकि आरिफ मोहम्मद खान पिछले 6 सालों से लगातार इंदिरा गांधी सरकार के विरोध में जमकर दिल्ली, मेरठ, गोरखपुर और अलीगढ़ जैसे बड़े शहरों में युवाओं का नेतृत्व करते नजर आ रहे थे तो लाजमी है कि कांग्रेस सरकार की नजर भी उनके ऊपर भरपूर थी.


कांग्रेस से इसलिए तोड़ लिया नाता 
पहली बार विधानसभा पहुंचने के बाद इंदिरा गांधी की नजर आरिफ खान के ऊपर लग चुकी थी और इंदिरा गांधी को ऐसे ही एक कद्दावर नेता की तलाश थी जिसका परिणाम यह हुआ कि विधानसभा में एमएलए बनने के 1 साल के अंदर ही इंदिरा गांधी ने आरिफ मोहम्मद खान को कांग्रेस में शामिल कर लिया. कांग्रेस में शामिल होते ही सन 80 में आरिफ मोहम्मद खान ने कांग्रेस के निशान पर कानपुर से मेंबर ऑफ पार्लियामेंट का इलेक्शन लड़ा और जीत भी हासिल की. इसके बाद इंदिरा गांधी ने उन्हें स्टेट मिनिस्टर बना दिया था. इसके बाद सन 84 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी के नेतृत्व में एक बार फिर से आरिफ मोहम्मद खान ने बहराइच जिले से एमपी का इलेक्शन लड़ा और जीत हासिल कर राजीव गांधी की कैबिनेट में मिनिस्टर का दर्जा भी हासिल किया, लेकिन यहां पर उन दिनों का चर्चित मामला शाहबानो प्रकरण को लेकर राजीव गांधी और आरिफ मोहम्मद खान के ख्यालात एक नहीं थे और जिसके बाद आरिफ मोहम्मद खान ने कैबिनेट मिनिस्टर से इस्तीफा देते हुए कांग्रेस से भी इस्तीफा दे दिया.


उन दिनों शाहबानो नाम की मुस्लिम महिला को उनके पति ने 3 तलाक दे दिया था और शाहबानो अपने और 5 बच्चों के जीवन यापन के लिए अपने पति से सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ रही थी, सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के पक्ष में फैसला देते हुए कहां कि शाहबानो को अपने पति से, खुद अपने लिये और 5 बच्चों के लिए गुजाराभत्ता लेने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का मुस्लिम धर्मगुरुओं में जमकर विरोध करना शुरू कर दिया था. मुस्लिम धर्म गुरुओं के दबाब में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करते हुए उस समय राजीव गांधी सरकार ने नया कानून बनाया, जिसमें कि मुस्लिम महिलाओं को तलाक के बाद अपने पति से गुजाराभत्ता मांगने की अनुमति नहीं दी गई और इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया, जबकि आरिफ मोहम्मद खान मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिलाना चाहते थे. बस यही से आरिफ मोहम्मद खान सिर्फ मुस्लिम वोट की राजनीति के लिए राजीव गांधी सरकार के द्वारा बनाये गए नए कानून से सहमत नहीं थे और आरिफ मोहम्मद खान ने सच्चा मुस्लिम नेता होने के नाते कांग्रेस और राजीव गांधी से अपना नाता हमेशा के लिए तोड़ लिया. जो कि आज तक कायम है.


हार के बाद सक्रिय राजनीति से हो गए दूर 
इसके बाद आरिफ मोहम्मद खान ने वीपी सिंह, रामधन और अरुण नेहरू के साथ मिलकर जनता दल बनाया और आगामी चुनावों में जनता दल ने जीत हासिल की और एक बार फिर से वीपी सिंह ने आरिफ मोहम्मद खान को कैबिनेट मिनिस्टर का दर्जा दिया. इसके बाद आरिफ मोहम्मद खान 98 में बहुजन समाज पार्टी के निशान पर बहराइच से एमपी बनकर पार्लियामेंट पहुंचे, लेकिन कुछ दिनों बाद ही सरकार को समर्थन नहीं मिला और सरकार गिर गई जिससे एक बार फिर से आरिफ मोहम्मद खान सन 2002 में बीजेपी के निशान पर फिर से बहराइच जनपद से एमपी के इलेक्शन में खड़े हुए, लेकिन इस बार आरिफ मोहम्मद खान को हार का मुंह देखना पड़ा. लगातार चार बार सांसद रहने के बाद आरिफ मोहम्मद खान को हार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. 


इसके बाद आरिफ मोहम्मद खान ने कभी भी सक्रिय राजनीति की ओर मुड़ कर नहीं देखा और आरिफ मोहम्मद खान यहां से एक दार्शनिक राजनीतिज्ञ के रूप में सामने आए. सक्रिय राजनीति से इस्तीफा देने के बाद आरिफ मोहम्मद खान मेडिकल कॉलेज समेत बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स को इंडियन पॉलिटिक्स और समाजशास्त्र के ऊपर अक्सर लेक्चर देते हुए नजर आते थे. आरिफ मोहम्मद खान को बेहद सुलझा हुआ राजनीतिज्ञ माना जाता है. आरिफ मोहम्मद खान एक ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जिन्होंने भले ही अलग-अलग पार्टी के निशानों पर चुनाव जीता हो, लेकिन हमेशा आरिफ मोहम्मद खान नसों में सबसे पहले देश प्रेम का जज्बा दौड़ता हुआ नजर आता है.


आरिफ मोहम्मद खान की पत्नी रेशमा लड़ चुकी हैं चुनाव 
आरिफ खान की धर्मपत्नी रेशमा आरिफ भी एक बार कानपुर शहर से जनता दल के निशान पर विधायक बनकर विधानसभा पहुंच चुकी हैं, लेकिन आरिफ मोहम्मद खान के बेटे मुस्तफा मोहम्मद खान और कबीर आरिफ खान दोनों का राजनीतिक से दूर-दूर तक का वास्ता नहीं है. केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान के बड़े बेटे मुस्तफा खान पेशे से दिल्ली हाईकोर्ट में वकील हैं और दिल्ली के जाने-माने सोशल वर्कर भी हैं. मुस्तफा मोहम्मद खान को हमेशा उस जगह खड़ा हुआ देखा जा सकता है जहां पर देश दो हिस्सों में बांटने पर नजर आता है तो मुस्तफा मोहम्मद खान उस बीच की दरार को हमेशा भरने का काम करते हैं.


आरिफ मोहम्मद खान के छोटे बेटे हैं कमर्शियल पायलट
 वहीं, आरिफ मोहम्मद खान के छोटे बेटे कबीर आरिफ खान पेशे से कमर्शियल पायलट हैं, लेकिन कबीर को अपने पैतृक धरती पर ऑर्गेनिक खेती करते हुए अक्सर स्याना के लोग देखते हैं, आरिफ मोहम्मद खान का नाम जब से देश की राष्ट्रपति बनने की लिस्ट में सामने आया है तब से स्याना की जनता परवरदिगार से दुआ मांग रही है कि आरिफ मोहम्मद खान जैसी नायाब देश प्रेमी को राष्ट्रपति के पद पर बैठना चाहिए ताकि इस देश की आवाम का भला हो सके.


स्याना विधानसभा के लोगों का मानना है कि स्याना क्षेत्र को फल पट्टी के नाम से जाना जाता है. स्याना फल पट्टी में पैदा होने वाला दशहरी आम की मिठास इस कदर महक से भरी होती है कि खाने वाले का मन और तन दोनों महक उठते है और केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान की नसों में इसी मिठास भरी फल पट्टी की मिट्टी की महक दौड़ती है अगर आरिफ मोहम्मद खान देश के प्रधानमंत्री बने तो देश की गंगा जमुनी तहजीब वाली अवाम को महकने का मौका भरपूर मिल सकता है.


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