अतीक अहमद को 119 मुकदमों में पहली सजा, 17 साल की उम्र में पहली हत्या करने वाले माफिया के आपराधिक साम्राज्य का अंत
Atique Ahmed Guilty in Umesh Pal Case : अतीक अहमद पर 1979 में पहली बार हत्या का दर्ज हुआ. इसके बाद अतीक ने अपनी एक गैंग बनाई, जिसे IS-227 नाम दिया. आज इस गैंग के 34 शूटर नामजद हैं.
Atique Ahmed Guilty in Umesh Pal Case : माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को उमेश पाल अपहरण मामले में कोर्ट ने दोषी करार दे दिया है. हालांकि, कोर्ट को अभी सजा सुनाना बाकी है. अतीक अहमद पर 119 मुकदमें दर्ज हैं. पहली बार उसे दोषी करार देते हुए सजा सुनाई जाएगी. 17 साल की उम्र में ही अतीक अहमद ने पहली बार हत्या कर आपराधिक दुनिया में कदम रखा था. तो आइये जानते हैं अतीक अहमद का आपराधिक साम्राज्य का कैसे हुआ अंत...
ऐसा आया सुर्खियों में
एक दौर था जब प्रयागराज का नाम इलाहाबाद हुआ करता था. ये कहानी अस्सी के दशक की है जब तत्कालीन इलाहाबाद में माहौल तेजी से बदल रहा था. इलाहाबाद की पहचान शिक्षा के गढ़ के रूप में बन रही थी. तब इलाके के लड़कों में अमीर बनने खूब होड़ थी. इसके लिए वो कुछ भी कर सकते थे. इन सबके बीच चकिया मोहल्ले का तांगेवाले का लड़का अचानक सुर्खियों में आ गया.
पुलिस और नेता दोनों का शह मिला
महज 17 साल की उम्र में फिरोज तांगेवाले का लड़का अतीक अहमद की जरायम के दुनिया में एंट्री हुई. 1979 में अतीक पर हत्या का आरोप लगा था. इसके बाद अतीक के डर और आतंक इलाके में फैलने लगा. डर की आड़ में अतीक अहमद का रंगदारी का धंधा बड़ी तेजी से चल निकला. उस समय अतीक के अलावा एक और नाम 'चांद बाबा' काफी चर्चीत था. पुराने शहर के इस गुंडे का खौफ ऐसा था कि चौक और रानीमंडी में पुलिस तक जाने से डरती थी. तब अतीक लगभग 22 साल का था. अतीक को पुलिस नेता दोनों का शह मिलने लगा.
सियासी गलियारों में मजबूती से दखल
पुलिस और नेता दोनों का शह मिलने पर अतीक गुंडागर्दी में अपना पैर जमाना शुरू कर दिया, जो लोग चांद बाबा से परेशान थे, उन्होंने अतीक को बढ़ावा देना शुरू कर दिया. फिर क्या था अतीक ने अपना गिरोह तैयार कर लिया. देखते ही देखते ये गिरोह चांद बाबा के गैंग से ज्यादा अतीक का गैंग खतरनाक हो चला. उसके बाद वीर बहादुर सिंह का समय आया. तब देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे. साल 1986 के आसपास यूपी में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी. इसी दौरान एक दिन अचानक पुलिस अतीक को उठा ले गई, लेकिन दिल्ली से एक कॉल आई और अतीक छूट गया. माना जाता है कि इसके बाद अतीक ने सियासत गलियारों में पैठ बनाना और दखल देना शुरू कर दिया.
जरायम की दुनिया का नहीं छोड़ पाया रास्ता
मामला धीरे-धीरे बढ़ता ही गया, जो आगे चलकर अतीक के लिए बाहुबली और अपराध की दुनिया के लिए संजीवनी बनने वाला था. अतीक को समझ आ चुका था कि सियासत में मजबूत पकड़ बहुत जरूरी है. इसके बाद अतीक ने गुनाहों के रास्ते पर चलकर सियासत में मजबूत पकड़ बना ली. सवाल ये था कि सियासत में ऊंचाई पाने और सफेद पोश बनने के बाबजूद जरायम की दुनिया का काला रास्ता नहीं छोड़ पाया.
अतीक पर 100 से ज्यादा मुकदमे लेकिन सजा नहीं किसी में नहीं
अतीक अहमद पर सौ ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं, लेकिन अभी तक किसी मामले में सजा नहीं सुनाई गई है. उमेश पाल अपहरण मामले में पहली बार अतीक को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई जा रही है.
कई मामलों में साक्ष्य न मिलने पर दोषमुक्त हुआ
आपको बता दें अतीक के अपराध की कहानी 1979 से शुरू होती है. इसके बाद उसके खिलाफ हत्या, डकैती, अवैध वसूली, अपहरण, जानलेवा हमला, गैंगस्टर, गुंडा एक्ट जैसे गंभीर अपराधिक मुकदमों की संख्या बढ़ती चली गई. डकैती के दौरान हत्या, एससी एसटी एक्ट, बलवा, अवैध वसूली, गैंगस्टर एक्ट समेत गंभीर धाराओं में दर्ज मुकदमे साल 2001, 2003 और 2004 में सरकार ने वापस ले लिए. इसके अलावा 14 मामलों में गवाहों के मुकरने या साक्ष्य नहीं मिलने के चलते अतीक अहमद को दोषमुक्त कर दिया गया.
योगी सरकार आते ही अतीक पर कसा शिकंजा
यूपी में योगी की सरकार आते ही अतीक पर शिकंजा कसना शुरू हुआ. योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद अतीक के खिलाफ 5 मामले दर्ज हुए. इन मुकदमों में अभी सुनवाई चल रही है. वहीं, व्यापारी को अगवा कर उसकी कंपनी अपने नाम लिखवाने के मामले की जांच भी सीबीआई कर रही है. अतीक से जुड़े 25 मुकदमों में कोर्ट में हाजिरी हो रही है.
1168 करोड़ की संपत्तियों पर हुई कार्रवाई
योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद से अभी तक अतीक अहमद और उसके गैंग की 1168 करोड़ की संपत्तियों को या तो गैंगस्टर एक्ट के तहत सीज किया गया है या उसके अवैध कब्जों को ध्वस्त किया गया है. गैंगस्टर एक्ट के तहत करीब 417 करोड़ की संपत्तियां जब्त की गई हैं. 751.52 करोड़ की संपत्तियों को उसके अवैध कब्जे से मुक्त कराया गया है.
राजू पाल हत्याकांड की पूरी कहानी
बताया जाता है कि एक जमाने में अतीक अहमद और राजू पाल काफी करीब थे. हालांकि किसी बात पर दोनों में विवाद हो गया. इसके बाद 2002 में राजू पाल राजनीति में आ गए. अतीक अहमद 2004 में सांसद बना तो इलाहाबाद की विधानसभा सीट से भाई अशरफ को चुनाव लड़ाया. इस चुनाव में बसपा ने राजू पाल को टिकट दिया और वो जीत भी गए. 25 जनवरी 2005 को राजू पाल की गाड़ी पर अंधाधुंध फायरिंग की गई. इसमें उन्हें 19 गोली लगी. राजू पाल पर अस्पताल पहुंचने तक दो बार हमला किया गया था और उनकी मौत हो गई. इस मामले में अतीक अहमद, उसके भाई अशरफ समेत अन्य लोगों पर केस दर्ज किया गया. इसी मामले में उमेश पाल गवाह थे, जिनकी हाल में हत्या कर दी गई.
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