नीना जैन/सहारनपुर: उत्तर प्रदेश भूमि ने एक से बढ़कर एक स्वतंत्रता सेनानियों को जन्म दिया है. ये आजादी के दीवाने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए कई बार जेल गए और अंग्रेजी हुकूमत की कड़ी से कड़ी यातनाओं को हंसकर सहन किया. इसमें में सहारनपुर भी पीछे नहीं है.


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यहां कि माटी ने भी कई आजादी के दीवानों को पैदा किया है. ऐसे ही बहादुर वीरों में एक नाम भावसी रायपुर निवासी ठाकुर अर्जुन सिंह का है, जिनकी चर्चा किए बिना स्वतंत्रता संग्राम की बात अधूरी होगी.आज हम यहां आजादी की लड़ाई में उनकी भागीदारी से जुड़ी कुछ खास बातें आपको बता रहे हैं. 


अंग्रेजी हुकूमत की यातनाएं सही
भावसी रायपुर गांव के जमीदार परिवार में साल 1892 में  ठाकुर अर्जुन सिंह का जन्म हुआ था. वह बचपन से ही देश के प्रति समर्पित थे और स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे थे, जिसके चलते कई बार जेल गए और अंग्रेजी हुकूमत की यातनाएं सही. बावजूद इसके उन्हें अंग्रेज अपने उद्देश्य डिगा न सके.  8 मार्च 1930 को मोरा गांव में कांग्रेस की कॉन्फ्रेंस हुई, जिसमें ठाकुर अर्जुन सिंह के आह्वान पर लोगों ने नमक कानून तोड़ा गया. जिस पर अंग्रेजी हुकूमत द्वारा राजद्रोह का आरोप लगाते हुए जिले में पहली गिरफ्तारी की गई. 


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जेल में हुई थी अर्जुन सिंह के मुकदमे की सुनवाई 
उनकी गिरफ्तारी की खबर मिलते ही देवबंद, रुड़की, नानौता और सरसावा आदि कई जगहों पर सभाएं होनी लगी थी. इन सभाओं में लोगों द्वारा कौमी सप्ताह मनाते हुए विदेशी कपड़ों की होली जलाई जाने लगी. इससे अंग्रेजी हुकूमत बहुत डर गई थी.


इसके बाद ठाकुर अर्जुन सिंह के मुकदमे की सुनवाई जेल में ही की गई और उन्हें एक साल की सख्त सजा सुनाई गई. इसके बाद 4 मार्च 1931 को गांधी-इरविन समझौते के तहत ठाकुर अर्जुन सिंह को  रिहा किया गया था. साल 1932 में आंदोलन दोबारा शुरू होने पर अंग्रेजों ने उन्हें फिर छह माह के लिए कारागार में डाल दिया. 


आजाद भारत के जिला पंचायत के प्रथम बोर्ड के अध्यक्ष बने
इसके बाद ठाकुर अर्जुन सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम के अनेक आंदोलनों का नेतृत्व किया. जिसके कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा, लेकिन इससे उनके मजबूत इरादों पर बिल्कुल भी आंच नहीं आई. वहीं, ठाकुर अर्जुन सिंह ने देश की आजादी का जश्न भी बनाया. वह आजाद भारत के जिला पंचायत के प्रथम बोर्ड के अध्यक्ष बने.


आपको बता दें कि लगातार दस वर्ष तक उन्होंने अध्यक्ष पद की गरिमा बढ़ाई. स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने पर केंद्र सरकार ने उनका सम्मान किया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा उन्हें ताम्रपत्र प्रदान किया गया और नानौता ब्लॉक कार्यालय में शिलापट्ट पर नाम अंकित किया गया था.


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