नितिन श्रीवास्तव/बाराबंकी: किसी के भी हुनर को आप बंदिशों में कैद नहीं रख सकते. चाहे जितने भी विपरीत हालात हों, उस दौरान भी किसी का हुनर और काबिलियत निखरकर सामने ही आ जाती है. कुछ ऐसा ही तस्वीर सामने आई है बाराबंकी जिला कारागार से, जहां की महिला कैदी जूट के अलग-अलग आइटम बना रही हैं. महिला कैदियों के बनाए इन आइटम्स की मांग अब कई दूसरे जिलों में भी बढ़ रही है. अपने इस हुनर से महिला कैदी न केवल स्वावलंबी बन ही है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी अपना अमूल्य योगदान कर रही हैं. इन महिला कैदियों के हुनर की चारों ओर जमकर तारीफ भी हो रही है.


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लखनऊ, कानपुर सहित जिलों में बढ़ी डिमांड 
बाराबंकी जिला कारागार में महिला कैदियों की ओर से बनाए गए जूट के बैग अब लखनऊ, कानपुर सहित कई दूसरे जिलों के लोगों को भी पसंद आ रहे हैं. कारागार प्रशासन इन महिला कैदियों की ओर से बनाए गए बैगों की मार्केटिंग भी करवा रहा है. जिससे इनके द्वारा बनाये गए बैगों को आसानी से बाहर बेचा जा सके. इनमें से कई महिलाएं जूट के बैग बनाने में निपुण हो चुकी थीं और अब वह सजा खत्म करके रिहा भी हो चुकी हैं. साथ ही अपनी आजीविका भी अच्छे से चला रही हैं.


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जेल प्रशासन जूट के थैलों की कर रहा मार्केटिग 
इस समय जिला कारागार में बंद महिला कैदियों में रजनी, राजलक्ष्मी सिंह, नगमा, रूकसार, मंजू देवी, रेशमा, और गुड़िया समेत कई दूसरी कैदी जूट के सामान्य थैलै, ऑफिस बैग, बोतल रखने वाले थैले, स्कूल बैग, मोबाइल रखने के लिए पॉकेट बैग बना रही हैं. कैदियों का मेहनताना भी उनके खाते में जेल प्रशासन भेज रहा है. थैला बनाने के लिए उन्हें जूट भी जेल प्रशासन ही उपलब्ध करा रहा है. जेल प्रशासन जूट के थैलों की मार्केटिग भी कर रहा है. इन बैगों की कीमत 100 रुपये से लेकर पांच सौ रुपये तक निर्धारित की गई है. जेल प्रशासन बकायदा महिला कैदियों की ओर से बनाए गए जूट के बैगों को विभिन्न प्रदर्शनियों में प्रदर्शित कराने की भी कोशिश कर रहा है.


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क्या कहना है जेल अधीक्षक का? 
बाराबंकी जिला कारागार के जेल अधीक्षक हरिबक्श सिंह ने बताया कि जलों को सुधार गृह भी कहा जाता है. हमारा उद्देश्य यह होता है कि चाहे वह पुरुष कैदी हो या महिला कैदी. इनको समाज अच्छे ढंग से अपनाए और यह कैदी भी समाज में अच्छे इंसाम के तौर पर शामिल हो सकें. इसी क्रम में महिला कैदियों को सिलाई, कढ़ाई, बुनाई और शिक्षा में इतना प्रशिक्षित किया जा रहा है. जिससे जब यह जेल से बाहर निकलें तो अपना जीवन अच्छे से चला सकें. जेल में महिला कैदियों की ओर से जूट के थैलों का निर्माण किया जा रहा है. इन थैलों की मार्केटिग भी कराई जाएगी. कैदियों को मेहनताना उनके खाते में दिया जा रहा है. रोजाना महिला कैदी 20 के करीब थैले तैयार करती हैं. अब कर 50 से 60 महिला कैदी इसका फायदा उठा सकी हैं और इनमें से कई महिला कैदी बाहर भी जा चुकी हैं.


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