राघवेंद्र सिंह/बस्ती: कुछ कर गुजरने का जज्बा और जोश हो तो किसी भी परिस्थिति से आप मुकाबला कर सकते हैं. आज छोटी- छोटी समस्याओं से परेशान होकर जहां लोग आत्महत्या तक कर रहे हैं, वहीं, दोनों हाथों से दिव्यांग कक्षा 6 के 11 साल के छात्र आलोक उन हजारों दिव्यांगों को जीने और कुछ कर जाने की रोशनी दिखा रहे हैं. महज 11 साल के आलोक में जो हौसला है, उस को देख कर कोई भी काम ना मुमकिन नहीं लगता.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

हम बात कर रहें रामनगर ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय के कक्षा 6 के छात्र आलोक कुमार की, जो पैदाइशी दोनों हाथों से दिव्यांग है, लेकिन उस बच्चे के जज्बे को देख कर हर कोई दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाता है. दिव्यांग होने के बावजूद आलोक ने अपने हौसले को कभी कम नहीं होने दिया. वह सामान्य बच्चों की तरह बिना हाथ के अपना पूरा काम खुद करता है. खुद से साइकिल चला कर स्कूल जाता है और पैर से फर्राटेदार कॉपी पर लिखता है.


आलोक बचपन से होनहार है. चार बहनों में एकलौता भाई है. वह जब धीरे-धीरे बड़ा होने लगा और उस की उम्र स्कूल जाने की हो गई तो गांव के अन्य बच्चों को स्कूल जाते देख उस का भी मन स्कूल जाने को करने लगा, उसी के बाद आलोक ने स्कूल जा कर पढ़ने की जिद ठानी और अपने पैरों से लिखना सीखना शुरू किया.


उसकी राइटिंग देख कर कोई यह नहीं कह सकता है कि बच्चे से अपने पैर की उंगलियों के सहारे इतनी अच्छी राइटिंग में लिखा है, बच्चे की ख्वाहिश है की एक दिन पढ़ लिख कर वह डॉक्टर बने लेकिन उस के इस सपने को साकार होने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. पिता की दोनों किडनी खराब हैं, खेत बेच कर पिता का इलाज चल रहा है. बच्चे ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपनी पढ़ाई में मदद की गुहार लगाई है. जिससे वह पढ़ लिख कर डॉक्टर बन सके और अपने सपने को साकार कर सके.