अरविंद मिश्रा/लखनऊ : 23 जुलाई को देश में श्रमिकों के सबसे बड़े संगठन भारतीय मजदूर संघ का स्थापना दिवस है. आज ही के दिन 1955 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक दत्तापंत ठेंगड़ी ने संगठन की स्थापना की थी. देश में श्रमिक आंदोलन को दिशा देने में बीएमएस की बड़ी भूमिका मानी जाती है. दरअसल बीएमएस की स्थापना से पहले देश के श्रमिक आंदोलन में लेफ्ट यूनियनों का दबदबा था. अक्सर अपनी ताकत की वजह से लेफ्ट समर्थित संगठन कई दिनों तक हड़ताल पर चले जाते थे. इससे फैक्ट्रियों में उत्पादन ठप पड़ जाता है. इसका नतीजा इकोनॉमी को होने वाले नुकसान के रूप में सामने आता था. यहां तक की लेफ्ट यूनियनों पर राजनीतिक दलों के समर्थन का आरोप लगता रहा. ऐसे में भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक दत्तोपंत ठेंगड़ी ने जब नारा दिया कि ''देश के हित में करेंगे काम, काम के लेगें पूरे दाम'' तो इसका बड़ा असर हुआ. भामसंघ का ध्येय वाक्य राष्ट्र हित, उद्योग हित और श्रमिक हित है. पिछले कुछ सालों के श्रमिक आंदोलन को देखें तो यह अहम बदलाव देखने को मिले हैं.


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1. हड़ताल की जगह संवाद पर जोर
ट्रेड यूनियनों के कामकाज में जो सबसे बड़ा बदलाव देखने को मिला है वह हड़ताल की जगह संवाद को प्राथमिकता देने के रूप में सामने आया है. 


2. सामाजिक कार्यों में जुटे श्रमिक संगठन
श्रमिक संगठनों का चूंकि दायरा काफी बड़ा होता है. ऐसे में उन्हें अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के तहत समाजसेवा के कार्यों में भी जुटना चाहिए. भारतीय मजदूर संघ ने पर्यावरण तथा सामाजिक समरसता के लिए समादर मंच का गठन किया है. इसी तरह कोरोना संकट के दौरान श्रमिक संगठनों ने समाज सेवा की नई मिसाल पेश की.


3. कौशल विकास को गति देनी होगी
तकनीक और विज्ञान के इस युग में जिस तरह पुराने जॉब रोल बदल रहे हैं, उसे देखते हुए श्रमिक संगठनों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है. ट्रेड यूनिनय मजदूरों और कार्यबल से सीधे संपर्क में रहते हैं. ऐसे में स्किलिंग (नया हुनर), रीस्किलिंग (कौशन उन्ननय) और अपस्किलिंग (अतिरिक्त हुनर) देने में यह बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.


4. निजीकरण रोकने के लिए प्रासंगिक
केंद्र सरकार जिस तेजी से निजीकरण की ओर बढ़ रही है, उसका समय-समय पर श्रमिक संगठनों द्वारा विरोध किया जाता रहा है. ऐसा माना जाता है कि प्राइवेटाइजेशन की आक्रामक रफ्तार में रोक लगाने में श्रमिक संगठनों की बड़ी भूमिका है. 


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जी-20 के जरिए एक मंच पर आए श्रमिक संगठन
श्रमिक संगठनों के बीच वैचारिक टकराव के मुद्दे अक्सर देखने को मिलते हैं लेकिन भारत की अध्यक्षता में आयोजित जी-20 सम्मेलन ने श्रमिक संगठनों को एकजुट करने का भी काम किया है. इसके एक प्रमुख कार्यसमूह एल-20 (लेबर-20) के आयोजन में बीएमएस,इंटक, एनएफआईटीयू,टीयूसीसी,एचएमकेपी,एनएलओ जैसे संगठन देशहित में एक मंच पर नजर आए. बताया जाता है कि एल-20 में 23 देशों के 56 प्रतिनिधियों ने शिरकत किया. लेबर-20 की अध्यक्षता जिम्मा सबसे अधिक सदस्यता के आधार पर भारतीय मजदूर संघ को प्रदान की गई है.


जी-20 के जरिए श्रमिकों के मुद्दों पर वैश्विक एकजुटता


भारत की पहल जी-20 के प्रमुख वर्किंग ग्रुप लेबर-20 के जरिए पांच बड़े मुद्दे उठाए गए. इनमें श्रमिकों के घरेलू प्रवासन ( इंटरनेशनल पोर्टेबिलिटी ऑफ सोशल सिक्यूरिटी फंड), स्किल गैप को कम करने, गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर के लिए सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा लिए वित्त पोषण, वेज और महिलाएं तथा भविष्य का रोजगार प्रमुख मद्दा रहा. इस दौरान कॉमन क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क का सुझाव दिया गया है.


बताया जाता है कि 1980, 1989 और फिर 2002 में केंद्र सरकार के वेरिफिकेशन में बीएमएस श्रमिक सदस्यता के मामले में पहले पायदान पर रहा है. देश में तेजी से बदल रहे श्रमिक आंदोलन के स्वरुप पर जब हमने भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष हिरण्यमय पंड्या से बात की तो उन्होंने कहा कि ''कुछ संगठनों की सदस्यता घट रही है. लेकिन भारतीय मजदूर संघ की सदस्यता लगातार बढ़ रही है. कार्यसमितियों में 70 नये संगठनों को संबद्धता मिल रही है. कोयला जैसे क्षेत्र में बीएमएस की मौजूदगी बढ़ी है. असगंठित क्षेत्र जो कि भारत में लगभग 94 प्रतिशत है, उनके बीच ट्रेड यूनियन का ध्यान नहीं गया. अब वह प्राथमिकता में हैं. 


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