लखनऊ : लोकसभा चुनाव से पहले सभी पार्टियां दलित वोटबैंक आकर्षित करने में जुट गई हैं. दलित वोटरों को साधने के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) 3 अप्रैल को रायबरेली (Raebareli) में कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करेंगे. इस दौरान वह रायबरेली में जनसभा को भी संबोधित करेंगे. इसे बीजेपी (BJP) की दलित वोट बैंक को जोड़ने की कवायद की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है.सपा प्रवक्ता अमीक जामेई का कहना है कि सपा प्रमुख ने संविधान और लोकतंत्र के अधिकार के लिए डॉक्टर अम्बेडकर और लोहिया का रास्ता चुना है. 2022 में दलित सपा से जुड़ रहे है, आरक्षण संविधान को मिलके बचाएंगे.


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दरअसल उत्तर प्रदेश के कौशांबी (Kaushambi) जिले में 7 अप्रैल को दो दिवसीय कौशांबी महोत्सव का आगाज हो रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) कौशांबी महोत्सव के उद्घाटन, सांसद खेल स्पर्धा के समापन और दलित सम्मेलन में शामिल होंगे. कौशांबी महोत्सव का आयोजन यहां के सांसद विनोद सोनकर द्वारा किया जा रहा है. जानकारों का मानना है कि कौशांबी में दलित सम्मेलन ऐसे समय पर हो रहा है जहां प्रदेश में समाजवादी पार्टी भी दलित और ओबीसी मतदाताओं को साधने में लगी है तो वहीं बीजेपी दलित सम्मेलन के जरिए यूपी में बीएसपी और सपा के वोटों में सेंध मारने का काम करेगी. यूपी में दलित बहुजन समाज पार्टी यानी बीएसपी का वोट बैंक माना जाता रहा है लेकिन पिछले कुछ चुनाव में उसने भाजपा का साथ दिया है.


दलित वोट को लेकर सपा बसपा की बढ़ सकती हैं मुश्किलें
भाजपा में दलित वोटरों को जाता देख सपा ने भी दलित और पिछड़ा वर्ग को साधने में जुटा नजर आ रहा है. बीते कुछ बैठकों में सपा ने दलित चेहरों को आगे किया है तो वहीं ओबीसी और दलित कार्ड भी खेलते हुए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नजर आए हैं. अब भारतीय जनता पार्टी ने अपनी रणनीति को दुरुस्त करने की तैयारी भी शुरू कर दी है माना जा रहा है कि यूपी में अखिलेश यादव और मायावती की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. जब अमित शाह कौशांबी में दलित सम्मेलन में शामिल होकर दलितों को भाजपा की ओर लाएंगे. उत्तर प्रदेश में दलित वोटर का अनुपात 20 फीसदी है. पिछली बार 80 में 17 लोकसभा सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित रहीं. इनमें 14 में बीजेपी को जीत मिली थी. बीएसपी ने दो और अपना दल ने एक सीट जीती थी.


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