लखनऊ: उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की लगभग 20 विधानसभाओं का खेल बनाना और बिगाड़ना ददुआ के हाथ में था. ददुआ के इशारे पर यहां वोट पड़ते थे. ददुआ ने कभी चुनाव नहीं लड़ा, मगर कई नेताओं को विधायक और सांसद बनाया. बताया जाता है 32 सालों में ददुआ ने 200 से ज्यादा हत्याएं कीं. ददुआ को पकड़ने के लिए यूपी एसटीएफ की टीम लगाई गई. मायावती सरकार जिंदा या मुर्दा किसी भी हाल में ददुआ को पकड़ना चाहती थी. 22 जुलाई 2007 में ददुआ का एनकाउंटर हुआ. 


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एक दिन में किए नौ कत्ल
साल 1972 में ददुआ ने पिता की जमींदार ने कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी. पिता की मौत का बदला लेने के लिए ददुआ ने एक ही दिन में जमींदार समेत आठ लोगों की हत्या की थी. ददुआ ने सभी को कुल्हाड़ी से काटकर मौत के घाट उतार दिया. पुलिस के आने से पहले वह बीहड़ की तरफ भाग गया. वर्षों तक पुलिस ददुआ की तलाश करती रही, मगर उसका कुछ पता नहीं चला. बीहड़ में ददुआ की मुलाकात डकैत राजा रंगोली से हुई. राजा ने ही उसे ददुआ नाम दिया. यहीं पर गया कुर्मी ने ददुआ को बंदूक समेत अन्य हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी. ददुआ ने गया को अपना गुरू मान लिया और ट्रेनिंग लेकर उनकी गैंग में शामिल हो गया. 


राजा रंगोली की गैंग में हुआ शामिल
राजा रंगोली को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया और गया कुर्मी ने आत्म समर्पण कर दिया. ददुआ भागने में कामयाब हो गया और बाद में गैंग का सरदार बन गया. ददुआ गरीबों के लिए मसीहा था और मुखबिर और पुलिस के लिए जल्लाद. मुखबरी करने वालों को ददुआ मौत की सजा देता था. इसलिए किसी भी गांव के लोग उसकी मुखबरी करने के बारे में सोचते भी नहीं थे. साल 1994 में ददुआ धाता ताला क्षेत्र में धतई पुर गांव आया. यह गांव ददुआ की ससुराल थी. मुखबिर से सूचना मिलते ही पुलिस ने उसे घेरने की कोशिश की. पुलिस से बचने के लिए ददुआ एक किलोमीटर दूर कबराहा गांव में बने हनुमान मंदिर में छिप गया. इस वक्त ददुआ के पास हथियार भी कम थे और गैंग भी साथ नहीं थी, मगर जैसे-तैसे ददुआ यहां से बच निकला. इसके बाद ददुआ ने एक मंदिर भी बनवाया. 


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यूपी एसटीएफ लगातार ददुआ की तलाश कर रही है. आईपीएस अधिकारी अमिताभ यश को ददुआ को पकड़ने की जिम्मेदारी दी गई. 22 जुलाई 2007 को टीम को चित्रकूट के एक गांव के पास ददुआ की ददुआ की लोकेशन मिली. यहां एनकाउंटर में पुलिस की गोली लगने से ददुआ की मौत हो गई. 


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