देहरादून: उत्तराखंड के लक्ष्य सेन ने कॉमनवेल्थ गेम (Commonwealth Games 2022) में 8 जुलाई को गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम रौशन किया है. अल्मोड़ा के लक्ष्य सेन (Lakshya Sen) ने मेंस सिंगल्स के फाइनल में मलेशिया के एनजी टी योंग को हराकर गोल्ड मेडल जीता. लक्ष्य की इस कामयाबी पर पूरे उत्तराखंड में जश्न का माहौल है. लक्ष्य सेन बेटमिंटन में गोल्ड मैडल जीतकर हर देशवासी का दिल जीत लिया है.


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खेल संघ ने जाहिर की खुशी


शूटिंग के चैंपियन जसपाल राणा के बाद दूसरे ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने कॉमनवेल्थ गेम में गोल्ड मेडल जीता है. उत्तराखण्ड बैडमिंटन एसोसिएशन के महासचिव बीएस मनकोटि ने कहा कि आज पूरे उत्तराखंड के लोगों को लक्ष्य सेन पर गर्व है.


अल्मोड़ा के रहने वाले हैं


भारतीय बैडमिंटन के नये सितारे लक्ष्य सेन अल्मोड़ा के रहने वाले हैं. लक्ष्य सेन को बैडमिंटन की प्रतिभा विरासत में मिली है. दरअसल उनके दादा सीएल सेन को उत्तराखंड में बैडमिंटन को स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है. यही नहीं लक्ष्य के पिता भी एथलीट रहे हैं. बताया जाता है कि लक्ष्य ने पिता डीके सेन की देखरेख में 4 साल की उम्र में ही बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था.


20 साल की उम्र में बड़ी कामयाबी


लक्ष्य सेन की इस कामयाबी से अल्मोड़ा के लोगों ने भी खास अंदाज में जश्न मनाया. अल्मोड़ा में लक्ष्य के फूफा भारतेंदु पंत व उनकी बुआ गीता पंत रहते हैं. यहां लोगों ने एक दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशी मनाई. वहीं उत्तराखण्ड बैडमिंटन एसोशिएशन ने चौघानपाटा में आतिशबाजी कर मिठाईयां बांटी और जश्न मनाया. लक्ष्य को भारत के भविष्य के रूप में देखा जा रहा है. महज 20 साल की उम्र के छोटे से करियर में लक्ष्य देश-विदेश में अपनी धाक जमा चुके हैं.


थ़ॉमस कप में गोल्ड मेडल जीत चुके हैं


लक्ष्य सेन ने इसी साल थॉमस कप (thomas cup) में भी टीम इंडिया को गोल्ड मेडल दिलाया था. लक्ष्य सेन के माता-पिता वर्तमान में बंगलुरू में रहते है. इसी तरह हल्द्वानी स्थित लक्ष्य सेन के मौसेरे भाई और उनके मामा के घर पर बधाई देने वालों का तांता लगा है. कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय खिलाड़ियों का लगातार बेहतरीन प्रदर्शन जारी है. उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के एथलीट भी राष्ट्रमंडल खेलों में अपनी प्रतिभा का लोहा दुनिया भर के खिलाड़ियों से मनवा रहे हैं. उनकी इस उपलब्धि से खिलाड़ियों में खास जश्न का माहौल है.


लक्ष्य सेन अंडर-19 चैंपियन बने तो उनकी उम्र सिर्फ 15 साल थी. अगले ही साल उन्होंने एक और कामयाबी हासिल करते हुए एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर भारत का मान बढ़ाया. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. इंडिया इंटरनेशनल सीरीज (बीडब्ल्यूएफ) प्रतिस्पर्धा भी वह जीत चुके हैं.