चंदौली: उत्तर प्रदेश के चंदौली में काशीराम आवास आवंटन मामले में बड़ा एक्शन किया गया है. इस योजना में घरों के आवंटन घोटाले के मामले में कोर्ट के आदेश पर चंदौली पुलिस ने बलिया में तैनात अधिशासी अभियंता और अंबेडकर नगर में तैनात एसडीएम को गिरफ्तार कर लिया है. इसके बाद पुलिस ने उन्हें चंदौली सीजेएम कोर्ट में पेश किया. जहां कोर्ट ने आवश्यक कार्रवाई करते हुए दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. आइए बताते हैं पूरा मामला.


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अपात्रों को आवास हुए आवंटित
दरअसल, साल 2011 में हुए इस आवंटन घोटाले को लेकर शिकायतकर्ता द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा था. साल 2015 में जब शिकायतकर्ता जनहित याचिका लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा, तो इस मामले में कार्रवाई शुरू हुई. करोना काल के बाद जब कोर्ट ने एसपी चंदौली को तलब किया, तो इस मामले में गिरफ्तारियां भी शुरू हुई. आरोप है कि इस आवंटन घोटाला में तत्कालीन नगर पंचायत अध्यक्ष चंदौली ने भी अपने करीबियों को आवास आवंटित कराए. इतना ही नहीं पैसे लेकर अपात्रों को भी आवास आवंटित किए.


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काशीराम आवास आवंटन में हुई धांधली
जानकारी के मुताबिक प्रदेश में साल 2004 से 2012 तक बसपा की सरकार थी. इस दौरान गरीबों, वंचितों विधवा असहाय लोगों के आवास की समस्या को दूर करने के लिए बसपा सरकार द्वारा काशीराम आवास योजना चलाया. चंदौली जिले के नगर पंचायत चंदौली के अधिकार क्षेत्र में काशीराम आवास बनाया गया. इसमें अपात्रों को पात्र बताकर आवास आवंटित किया गया. वहीं, आवास आवंटन में घोटाले से जनता में आक्रोश फैलने लगा. इस मामले को लेकर लोग डीएम के पास पहुंचे. उन्होंने एप्लीकेशन देकर मामले में जांच कराने की मांग की. हालांकि, जांच में यह तथ्य सामने आया कि काशीराम आवास आवंटन में धांधली की गई है, अधिशासी अभियंता दोषी है.


तब लगभग 41 लोगों के काशीराम आवास का आवंटन हुआ था रद्द 
इसके बावजूद मामले में कोई कार्यवाही नहीं की गई. दरअसल, नगर पंचायत चंदौली इलाके के चंद्रमोहन सिंह ने इस मामले में पहल की. उनकी शिकायत पर जांच हुई, जिसमें लगभग 41 लोगों के काशीराम आवास का आवंटन रद्द कर दिया गया, लेकिन वह फिर भी कब्जेदार बने रहे. मामले में जब कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो शिकायतकर्ता ने तत्कालीन पुलिस अधीक्षक को कार्रवाई के लिए डाक के माध्यम से पत्र भेजा. इतना ही नहीं शिकायतकर्ता ने सदर कोतवाली पहुंचकर मुकदमा दर्ज करने के लिए तहरीर भी दी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. 


ठंडे बस्ते में चला गया था मामला
इसके बाद उन्होंने कोर्ट के माध्यम से मामला दर्ज कराया, फिर भी मामला ठंडे बस्ते में चला गया. इस दौरान उत्तर प्रदेश में 2012 में सपा की सरकार आ गई. शिकायतकर्ता लगातार पैरवी करता रहा, लेकिन इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई. शिकायतकर्ता की मानें तो इस मामले में 2013-2014 में तत्कालीन सीओ ने दोषियों को बचाते हुए मामले में एफआर लगा दिया. जबकि डीएम के आदेश पर हुई जांच रिपोर्ट में तत्कालीन अधिशासी अभियंता नगर पंचायत चंदौली राजेंद्र प्रसाद और तहसीलदार सदर सुनील कुमार वर्णवाल दोषी पाए गए थे. अंत में थक हारकर शिकायतकर्ता ने साल 2015 में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने इस मामले में जनहित याचिका दायर की. 


सीजेएम कोर्ट में हुए पेश
इसके बाद कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई और मामला आगे बढ़ा, लेकिन कोर्ट के आदेश पर भी ध्यान नहीं दिया गया. न इस मामले में पुलिस ने कोई कार्रवाई की. कोरोना काल के बाद मामले में हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार किया और चंदौली पुलिस अधीक्षक को तलब किया. कोर्ट की फटकार के बाद एसपी ने तत्काल टीम गठित की. मामले के आरोपी तत्कालीन अधिशासी अभियंता जो वर्तमान में बलिया के रसड़ा नगर पंचायत में अधिशासी अभियंता के पद पर तैनात राजेंद्र प्रसाद और अंबेडकर नगर के भीटी में एसडीएम के पद पर तैनात तत्कालीन तहसीलदार सुनील कुमार वर्णवाल को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. दोनो को चंदौली लाया गया. जहां मेडिकल के बाद दोनों को सीजेएम कोर्ट में देर शाम पेश किया गया. 


जहां आवश्यक कार्रवाई कर कोर्ट ने दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. वहीं, शिकायतकर्ता की मानें तो, इस मामले में तीन लोग पहले गिरफ्तार हो चुके हैं, लेकिन जांच न होने कारण यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया था, लेकिन कोरोना काल के बाद कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया. इसमें कार्रवाई शुरू हुई है. हालांकि इस मामले में चंदौली पुलिस ने कोई बयान जारी नहीं किया है. मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण पुलिस चुप्पी साधे हुए है. कोर्ट के आदेश पर पुलिस कार्रवाई में जुटी हुई है.