यूपी सरकार ने सीआरपीसी में संशोधन के लिए एंटीसिपेटरी बिल (Anticipatory Bail) 2019 को दोबारा विधानसभा में पेश किया है. इसके तहत महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के मामले में अग्रिम जमानत के लिए नियमों को कठोर बनाया गया है. गालीबाज नेता श्रीकांत त्यागी जैसे मामलों के बाद प्री अरेस्ट बेल (Pre Arrest Bail ) जैसे सीआरपीसी प्रावधानों को कठोर करने की मांग की जा रही थी.  इसी के तहत, कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर ( Code of Criminal Procedure Uttar Pradesh Amendment Bill 2022) विधानसभा में पेश किया गया है.


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इस बिल के पास होने के बाद रेप, छेड़छाड़, बदसलूकी, यौन उत्पीड़न जैसे मामलों में सीधी गिरफ्तारी के साथ अग्रिम जमानत न देने की बात कही गई है. गैंगस्टर एक्ट, नशीले पदार्थों से जुड़े एनडीपीएस एक्ट, गोपनीयता अधिनियम के मामले में भी एंटिसिपेटरी बेल नहीं दीजाएगी. इसमें बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामलों में सुरक्षा के लिए पॉक्सो एक्ट 


(Protection of Children from Sexual Offenses (POCSO) Act) और दुष्कर्म से जुड़े मामलों में भी जमानत न देने का प्रावधान किया गया है.दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न (sexual offences) के मामले में आरोपी के तुरंत ही डीएनए औऱ अन्य जैविक साक्ष्य लिए जाने के प्रावधानों को भी मजबूत बनाया गया है, ताकि आरोपी साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ कर बच न सके. साथ ही पीड़ित औऱ गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की भी बात है.


इस विधेयक के तहत सीआरपीसी उत्तर प्रदेश के सेक्शन 438 में बदलाव कियाजाएगा. इसमें अग्रिम जमानत के मामले में यौन उत्पीड़न, दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट को भी जोड़ा जाएगा.  यह 43 साल बाद 1976 के सीआरपीएस एक्ट के सेक्शन 9 में बदलाव के बाद हो रहा है, जिसमें सेक्शन 438 को खत्म कर दिया गया है.


गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में महिला अपराधों की रोकथाम के लिए सरकार ने थानों में महिला हेल्प डेस्क, एंटी रोमियो स्क्वायड, 112 की हेल्पलाइन नंबर जैसे कई प्रावधान किए हैं, लेकिन तमाम जिलों में ऐसी घटनाएं लगातार सामने आती रहती हैं. नोएडा के श्रीकांत त्यागी (Shrikant Tyagi)  का मामला इसका ताजा उदाहरण था,