प्रेमेंद्र कुमार/फिरोजाबाद: फिरोजाबाद शहर को खूबसूरत बारीक नक्काशीदार चूड़ियों के शहर के नाम से भी जाना जाता है. यहां के चूड़ी उद्योग की कला ने सिर्फ देश की सुहागिनों की कलाइयों को ही नहीं सजाया बल्कि कांच की कलात्मक कारीगरी से विदेशों में भी नाम रोशन किया है. इन चूड़ियों का इतिहास भी बेहद दिलचस्प रहा रहा है. 


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जसराना से फिरोजाबाद आकर बसे रुस्तम उस्ताद ने हिन्दुस्तान में कांच की चूड़ियों के निर्माण के लिए बेलन भट्टी का कामयाब तजुर्बा कर चूड़ियों का निर्माण शुरू किया. नयी-नयी तकनीक को सीखने के लिए वह मुंबई भी गए. रुस्तम उस्ताद ने फिरोजाबाद में पहली चूड़ी की बेलनपॉट भट्टी की फैक्ट्री स्थापित की. लेकिन कला के इस बेमिसाल हुनर और इस चमकती दुनिया के पीछे के अंधेरे को कोई भी नहीं देखना चाहता.


फिरोजाबाद के कांच उद्योग को गैस मिलने की वजह से यहां के कारखानों का काला धुआं जरूर छंट गया लेकिन आज़ादी के बाद अभी तक यहां के मजदूरों की ज़िंदगियों से धुआं नहीं छंटा. कारखानों में लाखों मजदूर दिन-रात इन चूड़ियों को बनाने में लगे हुए हैं. अंदर पहुंचते ही एक अलग ही दुनिया नज़र आती है. यहां काम कर रहा मज़दूर कारीगर मशीन की तरह अपने काम को अंजाम देता दिखता है. 


फिरोजाबाद के चूड़ी उद्योग से राज्य को एक अच्छा खासा राजस्व मिल रहा है. यहां आधुनिक चूड़ी बनाने का काम तकरीबन मशीन रहित है लेकिन ये मुश्किल एक्सरसाइज है जिसे बेहद सलीके और हुनरमंदी के साथ पूरा किया जाता है. चूड़ी जब काटकर तराशकर फैक्ट्री से बनकर बाहर निकलती है तो कई तरह का काम इस पर किया जाना बाकी होता है. 


इलाके का बात करें तो यहां दो सौ से ज़्यादा चूड़ी बनाने के कारखाने हैं. इस काम से जुड़े कारीगरों की समस्याएं बेहिसाब हैं. नई पीढ़ी का इस काम से जुड़ने में गिरता रुझान और इनकी ज़िन्दगी में बुनियादी ज़रूरतों का लगातार हाशिये पर सिमटते जाना चिंता का सबब है. 
बहुत से सुधारों के बीच 1998 से इस इंडस्ट्री को गैस मिलनी शुरू हुई. जब गैस के दाम चार रूपए प्रति घन मीटर था. आज ये बाइस रुपए घन मीटर की दर से मिल रही है.


लिहाजा चूड़ी पर लागत का खर्चा बढ़ गया. जिसकी वजह से ये महंगी हुई और साथ ही इस से जुड़े कारीगरों की जेब पर भी असर पड़ा  फीरोजाबाद चूड़ी उद्योग लेकर सरकारी प्रयास जारी हैं. जिस में कारखानों को गैस पहुंचाने से लेकर उनकी कार्यशैली तक को अपग्रेड किये जाने की कवायद ज़ोरों पर है. 


फिरोजाबाद के कांच उद्योग को चीन से सीधी टक्कर भी झेलनी पड़ रही है. इस वजह से और बहुत सी मुश्किलों का सामना इस कला को करना पड़ रहा है. चूड़ी बनाने वाले अपना खून पसीना जलाकर कांच को खूबसूरत चूड़ियों की शक्ल में ढालते हैं जो फिर कलाइयों पर सजती है.