Harela Festival 2023: हर साल हरेला पर्व कर्क संक्रांति को श्रावण मास के पहले दिन मनाया जाता है. इस बार हरेला पर्व 16 जुलाई दिन रविवार को मनाया जाएगा. मान्यता के अनुसार त्योहार के ठीक 10 दिन पहले हरेला बोया जाता है. लेकिन, कुछ लोग 11 दिन का हरेला बोते हैं. यह त्यौहार उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में विशेष रूप से मनाया जाता है. पहला- चैत्र मास, दूसरा- सावन मास और तीसरा- आश्विन (क्वार) मास में मनाया जाता है. आइए जानते हैं किस तरह हरेला पर्व मनाया जाता है.


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सावन में हरेला पर्व का महत्व
हरेला पर्व हरयाली का त्योहार माना जाता है. उत्तराखंड में हरेला पर्व से ही सावन की शुरुआत होती है. सावन महीने के हरेला पर्व का विशेष महत्व है. सावन भगवान शिव का प्रिय महीना माना जाता है और उत्तराखंड को शिव भूमि भी कहा जाता है. हरेला पर्व के समय शिव परिवार की पूजा अर्चना की जाती है और धन्यवाद किया जाता है. इस पर्व को शिव पार्वती के विवाह के रूप में भी मनाया जाता है. कहा जाता है की हरेला जितना ज्यादा बड़ा होगा फसल उतनी ही होगी. हरेला को हर घर में बोया जाता है लेकिन, कुछ गांव में सामूहिक रूप से स्थानीय ग्राम देवता के मंदिर में भी हरेला बोई जाती है.


7 किस्म का अनाज उगाया जाता है
हरेला पर्व पर 12 से 15 दिन पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं. साथ ही 7 किस्म का अनाज उगाया जाता जिसके लिए मिट्टि भी घर के पास निकालकर सुखाई जाती है. साथ ही उगाने के लिए धान, मक्की, उड़द, गहत, तिल और भट्ट के अनाज शामिल होते हैं. इसे उगाने और देखभाल का काम घर की महिलाओं द्वारा किया जाता हैं. इस दिन कई तरह के पकवान भी बनाये जाते हैं. इसी के साथ काटे हुए हरेले को छत पर रखा जाता है. घर में छोटों को बड़े लोग हरेले के आशीष गीत के साथ हरेला लगाते हैं. इसे बहुत शुभ माना जाता है. इसके बाद हरेला की शुभकामनाएं देकर बुजुर्ग, बच्चों को आशीर्वाद देते हैं और लोग पौधे लगाते हैं.