अलीगढ़: उत्तर प्रदेश के हर जिले की अपनी एक अलग पहचान है. अगर आप भी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों से जुड़ी कुछ खासियत और ऐतिहासिक जानकारियों को पढ़ने में रूची रखते हैं, तो यह खबर आपके लिए खास हो सकती है. यूपी में हर जिले के ऐसे कई किस्से हैं, जिसके बारें में शायद ही आपको पता होगा. ये किस्से यूपी की ऐतिहासिक धरोहर हैं. ऐसे में इस खबर में हम यूपी में स्थित अलीगढ़ जिले की बात करेंगे. 


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अलीगढ़ के ताले तोड़ना आसान नहीं
अलीगढ़ उत्तर प्रदेश का एक जिला है. अलीगढ़ काफी चीजों के लिए प्रसिद्ध है. अलीगढ़ के ताले सिर्फ यूपी में ही नहीं बल्कि पूरे देश-विदश में मशहूर है. कहा जाता है कि अलीगढ़ के तालों की चाबी अगर खो जाए, तो फिर ताले को तोड़ना आसान नहीं होता है. अलीगढ़ के ताले की मजबूती की मिसाल हर तरफ दी जाती है. इसके अलावा अलीगढ़ जिला अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के लिए भी जाना जाता है. 


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पहले इस नाम से जाना जाता था अलीगढ़
अलीगढ़ का उल्लेख महाभारत और रामायण में भी किया गया है. उस वक्त अलीगढ़ को 'कोइल' या 'कोल' से नाम से जाना जाता है. अलीगढ़ का यह नाम 'नजफ़ खां' ने रखा है. हालांकि इससे पहले भी अलीगढ़ के कई नाम रखे गए थे. यह ऐतहिसिक शहर देश की राजधानी दिल्ली से करीब 140 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. अलीगढ़ प्रदेश के 50 प्रमुख शहरों में भी शामिल है. यह "नरोरा पावर प्लांट" से महज 50 किलोमीटर दुरी पर स्थित है.


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'ताला नगरी' के नाम से भी जाना जाता है
अलीगढ़ में तालों के बनने का इतिहास करीब 130 साल पहले शुरू हुआ था, जब जॉनसंस एंड कंपनी ने यहां से ताले बनाने की शुरुआत की थी. यह ताले इंग्लैंड से इम्पोर्ट कर अलीगढ़ में बेचे जाते हैं. यह कंपनी तालों के साथ-साथ पीतल की कलाकृतियां भी बनाती है. आज अलीगढ़ में ताला बनाने वाली करीब 5 हजार कंपनियां काम करती हैं. जिसमें लाखों लोग काम कर रहे हैं. जिससे रोजगार भी बढ़ रहा है. यही वजह है कि अलीगढ़ को 'ताला नगरी' के नाम से भी जाना जाता है.


आपको पता ही होगा कि तालों का प्रयोग घरों के दरवाजे, कीमती वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए लगाया जाता है. ताकि कोई कीमती सामान कोई भी व्यक्ति चुरा ना सके. अलीगढ़ एक ऐसा जिला हैं. जहां हिन्दू और मुसलमान एक साथ मिलकर तालों का कारोबार करते हैं. साथ मिल जुलकर काम करने के कारण ही ताला उद्योग का अलीगढ़ में कुटीर उद्योग ज्यादा है. 


जिले में 3 हजार कुटीर उद्योग हैं स्थापित 
बताते चले कि अलीगढ़ में ताला केवल लोहा का ही नहीं बल्कि पीतल, तांबा और एलमुनियम का उपयोग करके भी बनाया जाता है. अलीगढ़ में अंग्रेजों के समय से ही हर साल लगभग पांच लाख ताले बनाए जाते थे. अंग्रेजों ने 1926 में एक वर्कशॉप स्थापित किया था. जिसमें शिल्पकारों को ताला बनाने की ट्रेनिंग भी दी जाती थी. आज अलीगढ़ में 6000 से ज्यादा मध्यम ताला बनाने के कारखाने हैं, जबकि 3000 कुटीर उद्योग स्थापित है.


एक ताला को बनाने के लिए करीब 500 लोगों की लगती है मदद
अलीगढ़ के ताले का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में एक ही बात आती है क‍ि ये सबसे मजबूत ताले हैं. अब बताते हैं आपको कि ये ताले बनते कैसे हैं. ताला बनाने के लिए इसे करीब 90 तरह के प्रोसेस से गुजरना पड़ता है. इसमें करीब 200 से ज्यादा कारीगर अलग-अलग प्रक्रिया में ताले पर हाथ आजमाते हैं. इसके बाद ताले के छोटे-छोटे पार्ट्स को असेम्बल किया जाता है.  एक ताला को बनाने के लिए करीब 500 लोगों की मदद लगती है. 


अगर बात सिर्फ अलीगढ़ की करें, तो साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, अलीगढ़ की जनसंख्या 36,73,889 है. इसमें पुरुषों की संख्या लगभग 19,51,996 है.  वहीं महिलाओं की जनसंख्या 17,21,893 है.  इनमें हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों की आबादी 4 लाख के करीब है जबकि मुस्लिम धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या लगभग 3 लाख है. इसके साथ ही ईसाई और सिख धर्म को मानने वाले लोगों की आबादी 3 से 4 हजार के बीच है. 


दो नदियों के बीच बसा है अलीगढ़
बता दें, अलीगढ़ को दोआब का क्षेत्र माना जाता है. दरअसल ये दो नदियों गंगा और यमुना के बीच में स्थित है. यहां सेंगर, रुतबा, सिरसा, छोइया, नीम, बड़गंगा, रद और काली नदियों का भी अस्तित्व मिलता है. हालांकि वर्तमान समय में गंगा, यमुना और काली नदी को छोड़कर बाकी सारी नदियां विलुप्त हो चुकी हैं.


पर्यटक के तौर पर अगर देखा जाए, तो इस जिले में अलीगढ़ का किला, मुगलकाल का जामा मस्जिद प्रसिद्ध है. साथ ही अलीगढ़ का खेरेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. जिले में मौलाना आजाद लाईब्रेरी है. जो 4.75 एकड़ में फैली हुई है. बता दें, यह लाईब्रेरी एशिया की दूसरी सबसे बड़ी लाइब्रेरी है. 


अलीगढ़ में विश्व का सबसे बड़ा ताला
अलीगढ़ में विश्व का सबसे बड़ा ताला बनाया गया है. यहां के कारीगर सत्य प्रकाश शर्मा ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर 300 किलो वजन का एक बड़ा ताला बनाया है.  जो 6 फीट 2 इंच लंबा और 2 फीट साडे 9 इंच चौड़ा है. इस ताले की चाबी का वजन ही सिर्प 25 किलो है. इस ताले में 60 किलो पीतल लगा हुआ है. बता दें, इस ताले को बनाने में दंपत्ति ने एक लाख रुपये खर्च किए हैं. आज यह ताला पूरे विश्व में एक चर्चा का विषय है.  इस ताले की वजह से आज अलीगढ़ का नाम पहले से भी ज्यादा मशहूर हो गया है. 


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