आजादी की विजयगाथा: UP के इन 18 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अंग्रेज अफसर हार्डी को पहनाई थी जूतों की माला
Independence Day 2022: ग्रामीणों ने अंग्रेज अफसर को पहले अपने गांव में बुलाया. इसके बाद उसको जूतों की माला पहना दिए, जिससे अंग्रेज नाराज हो गया और उसने ग्रामीणों पर जमकर अत्याचार किया.
नितिन श्रीवास्तव/बाराबंकी: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के ऐसे तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए हैं, जो देश को आजादी दिलाने के लिए कुर्बान हो गये. इनमें से कई क्रांतिकारियों को अंग्रेजी हुकूमत से टकराने के चलते जेल और जुर्माना भी झेलना पड़ा. दरअसल, देश को मिली आजादी से पूर्व बाराबंकी जिले के दरियाबाद में सुभाष चन्द्र बोस का एक प्रशिक्षण हुआ था, जिसके बाद देश की आजादी को लेकर क्रान्ति फैली थी. बाराबंकी जिले में दो बार महात्मा गांधी भी आये थे. उसी के बाद बाराबंकी जिले में आजादी को लेकर लोगों में क्रांति की आग धधक उठी थी.
बाराबंकी का यह इलाका क्रांतिकारियों के नाम से है प्रसिद्द
बाराबंकी जिले का हरख क्षेत्र भी आज उन्ही क्रांतिकारियों के नाम से प्रसिद्ध है, जिन्होंने देश की आजादी को लेकर काफी संघर्ष किया. हरख से ऐसे सैकड़ों लोग हुए, जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया. उन सैकड़ों क्रांतिकारियों में से 18 ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जो अंग्रेजी हुकूमत के दौरान जेल भी गए, क्योंकि इन्होंने अंग्रेजी अफसर को न सिर्फ जूतों की माला पहनाई बल्कि अंग्रेजी डाक और रेलवे स्टेशन को भी लूटा, जिसके बदले उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. ऐसे क्रांतिकारियों में हरख के शिव नारायण, रामचंदर, श्रीकृष्ण, श्रीराम, मक्का लाल, सर्वजीत सिंह, रामचंदर रामेश्वर, कामता प्रसाद, सर्वजीत, कल्लूदास, कालीचरण, द्वारिका प्रसाद मास्टर सहित 18 लोग शामिल थे. इन सभी का नाम हरख में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के रूप में अंकित करवाया गया है, जिन्हें पूर्व की भारत सरकार द्वारा तांब्र पात्र से सम्मानित करवाया गया.
अंग्रेज अफसर को पहना दी जूतों का माला
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे रामचन्द्र के बेटे उपेंद्र ने बताया कि उन्हें गर्व है कि उनके पिता अंग्रेजों के समय में आजादी के लिए जेल गए. उन्होंने बताया कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान हार्डी नाम के एक अंग्रेज अफसर को गांव वालों ने स्वागत के लिए बुलाया, फिर उन लोगों ने उसके सामने अवधी भाषा में एक नाटक खेला. उसी बीच गांव वालों ने उस अंग्रेज अफसर को जूतों की माला पहना दी. अंग्रेज अफसर अवधी भाषा से अनजान था, लिहाजा उसे जूतों की माला पहनाने की जब असलियत मालूम हुई तो उसने गांव में अंग्रेजी पुलिस को बुलाकर जमकर तांडव करवाया. लोगों के घरों में रखे अनाज को उस अंग्रेज अफसर ने कुवें में फिंकवा दिया. जानवरों को खुलवा दिया. इतना ही नहीं कुओं में टॉयलेट भी करवाया, जिससे कोई वहां का पानी न पी सके.
गांव में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम पर बन रहे अमृत सरोवर
सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप सारंग ने बताया कि इस घटना में अंग्रेजी अफसर ने 18 लोगों के खिलाफ नामजद मुकदमा करवा उन्हें जेल भिजवाया. उनपर जुर्माना लगाया गया. बाद में जब देश आजाद हुआ तो जुर्माने की 5 हजार रुपये की रकम वापस हुई. उस रकम से हरख में चिकित्सालय बनाया गया, जो आज भी मौजूद है. उन्होंने कहा कि आज बड़ा दुख भी होता है कि जिन महापुरुषों ने देश की आजादी के लिए इतना संघर्ष किया. आज उनकी समाधि पर फूल चढ़ाने वाला कोई नहीं है. सेनानी रहे बाबू पुत्तुलाल वर्मा की समाधि स्थल का हाल देखा, तो जंगल झाड़ियों के बीच खंडहर में तब्दील होती दिखी. बाबू पुत्तुलाल वर्मा आजादी के बाद एमएलसी हुए थे. वहीं गांव के प्रधान पति निधि चट्टान सिंह वर्मा का कहना है जो भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए उनकी याद में वह अमृत सरोवर बना रहे हैं.
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