Jitiya Vrat 2022: कहा जाता है कि जो दंपति काफी समय से संतान की कामना कर रहे हैं, उनके लिए जितिया का व्रत संजीवनी बूटी से कम नहीं है. इसे जीवित्पु्त्रिका और जितियाव्रत भी कहा जाता है. यह व्रत उत्तर प्रदेश समेत बिहार, झारखंड और वेस्ट बंगाल में पर्व के तौर पर मनाया जाता है. क्योंकि यह व्रत रखने से संतान प्राप्ति जैसा बड़ा वरदान मिलने की मान्यता है, इसलिए जाहिर है कि यह व्रत इतना आसान नहीं. नहाय-खाय से शुरू होकर पारण तक जितिया तीन दिन का व्रत है. 


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3 दिन तक निर्जला उपवास रखती हैं महिलाएं
यह व्रत संतान की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए रखा जाता है. माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और उसकी रक्षा के लिए निर्जला उपवास रखती हैं. तीन दिन तक चलने वाले इस उपवास में महिलाएं जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करतीं.


पंचांग के मुताबिक जितिया व्रत की तिथि
हिन्दू पंचांग के अनुसार, जितिया व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से लेकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है. इस बार यह उपवास 18 सितंबर की रात से शुरू होगा और 19 सितंबर तक चलेगा. व्रत का पारण 19 सितंबर को ही किया जाएगा. 


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पंचांग के मुताबिक जीवित्पुत्रिका व्रत का शुभ मुहूर्त
बता दें, 17 सितंबर को जितिया व्रत की शुरुआत नहाय खाय के साथ की जाएगी. उसके बाद 18 सितंबर को व्रत रखा जाएगा. ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से 17 सितंबर को दोपहर 2.14 पर अष्टमी तिथि प्रारंभ होगी और 18 सितंबर दोपहर 4.32 पर अष्टमी तिथि समाप्त हो जाएगी. 
इसके बाद, जितिया का व्रत 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा और इसका पारण 19 सितंबर 2022 को किया जाएगा. 19 सितंबर की सुबह 6.10 पर सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जा सकता है.


जितिया व्रत की पूजा विधि
व्रत के लिए भोर में उठकर स्नान करना चाहिए और फिर साफ वस्त्र धारण करना चाहिए. इसके बाद व्रत रखने वाली महिलाओं को प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल साफ करना चाहिए. व्रत के नियमों के अनुसार, एक छोटा सा तालाब बनाया जाता है और उसके पास एक पाकड़ की डाल खड़ी की जाती है. फिर, शालीवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की मूर्ति को जल के पात्र में स्थापित किया जाता है. 


जीमूत वाहन देवता की होती है पूजा
अष्टमी तिथि के दिन स्नान करके जीमूत वाहन देवता को पूजा जाता है. उस दिन प्रदोष काल में जीमूत वाहन देवता की भी पूजा होती है. बताया जाता है कि देव को दीप, धूप, अक्षत, रोली, लाल और पीली रूई से सजाया जाता है और फिर उन्हें भोग लगाते हैं. 


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मिट्टी और गाय के गोबर से बनाई जाती है मूर्ति
इसके अलावा, मिट्टी और गाय के गोबर से चील और सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है और उन्हें लाल सिंदूर लगाया जाता है. इस दौरान जीवित्पुत्रिका की कथा पढ़ी जाती है. वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए बांस के पत्रों से भगवान की पूजा की जाती है.


ऐसे किया जाता है पारण
जितिया व्रत के तीसरे दिन इसका पारण किया जाता है. इस दिन नहाए खाए वाले दिन ग्रहण किया गया भोजन ही खाया जाता है. जैसे- मडुआ की रोटी, नोनी का साग, दही-चूरा, आदि.


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