श्याम तिवारी/कानपुर: नवरात्रि के आगाज के साथ ही देशभर में रामलीला का मंचन शुरू हो गया है. देश भर में मशहूर कानपुर शहर में होने वाली परेड ग्राउंड की रामलीला भी शुरू हो गई है. सन् 1877 में शुरू हुई इस रामलीला मंचन के अंग्रेज भी दीवाने हुआ करते थे. आजादी के पहले से यहां इसी ग्राउंड में रामलीला की जाती है. तब से लेकर आज तक वही एक संस्था इसका इंतजाम देखती है. यहां आस-पास के जिले के लोग भी रामलीला और आतिशबाजी देखने आते हैं. हालांकि, पहले से रामलीला मंचन में अब तक कई तरह के बदलाव हुए हैं. 


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145 साल पहले शुरू हुई थी रामलीला 
145 साल पहले श्री रामलीला सोसाइटी रजिस्टर्ड परेड के नाम से यहां पर रामलीला का मंचन शुरू हुआ. जिसकी शुरुआत  महाराज प्रयाग नारायण तिवारी ने की थी. जब पहली बार रामलीला का मंचन किया गया, तो यहां पर लोगों का हुजूम जमा हुआ था. इस हुजूम में अंग्रेजी शासन के तत्कालीन अधिकारी और अंग्रेज भी शामिल हुए थे. 


तब और आज के रामलीला मंचन में हुए कई बदलाव 
1877 में इस कमेटी में केवल 5 सदस्य थे. आज की बात की जाए तो कमेटी में 600 से अधिक सदस्य हैं.आज के दौर में रामलीला की तैयारी में कई दिन पहले से लगना पड़ता है. बड़ा भारी मंच और टेंट के साथ हजारों लोगों की बैठने व्यवस्था की जाती है. लेकिन जब इसकी शुरुआत हुई थी, तब ना टेंट लगता था, ना लाइट थी. मगर लोगों का उत्साह चरम पर रहता था. दिनभर बैटरी की चार्जिंग की जाती थी. फिर रात में रोशनी कर रामलीला का मंचन किया जाता था. पहले जहां रामलीला कमेटी के सदस्य भगवान की मूर्तियों को कंधे पर रखकर शोभायात्रा निकालते थे. वहीं, अब पैसों के रथ से भगवान की लंबी शोभायात्रा शहर के कई इलाकों से होकर गुजरती है. 


अयोध्या से आते हैं कलाकार 
इस रामलीला में भगवान राम, सीता और लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले कलाकार अयोध्या से आते हैं. यहां तक कि रामायण कथा और रामलीला के संवाद के लिए आचार्य भी अयोध्या से ही आते हैं. हर बार की तरह इस बार भी अयोध्या, चित्रकूट, मथुरा और अन्य जिलों से कलाकार शहर आएंगे. 10 दिनों तक यहां रहकर रामलीला का मंचन करेंगे. 


किरदारों को पहनाए जाते हैं सोने के आभूषण
बता दें कि इस संस्था के कलाकारों को मंचन के दौरान असली सोने के आभूषण पहनाए जाते हैं. यह सिलसिला आज तक उसी तरह बरकरार है. कानपुर की परेड रामलीला शुरू होने के बाद शहर के 70 से अधिक स्थानों पर रामलीला का मंचन होता है.