Dangal: भारत का ऐसा खेल जहां युवाओं को मिलता है क्रिकेट से ज्यादा रोमांच
Wrestling: कई सालों से जिले की अलग-अलग ग्राम सभाओं में इस तरह के दंगल करवाते हैं. इस दंगल को देखने के लिए युवा वर्ग के लोग क्रिकेट छोड़कर इसे देखने आते हैं. यहां पहलवानों का हर दांव-पेंच उन्हें क्रिकेट के चौके छक्के से ज्यादा मजा देता है.
कौशांबी: आज क्रिकेट की दीवानगी लोगों के दिलों दिमाग पर चढ़ चुकी है. क्या बॉलीवुड स्टार, क्या आम जनता सभी क्रिकेट के डाई हार्ट फैन हैं. ऐसे में यूपी का एक ऐसा गांव है, जहां क्रिकेट के जुनून से ज्यादा आज भी युवा देश के पारंपरिक खेल कुश्ती से रोमांचित होते हैं. हम बात कर रहे हैं यूपी के कौशांबी जिले की, जहां से यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य आते हैं.
डिप्टी सीएम के गांव में जिंदा है भारत की परंपरा
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के गृह जनपद कौशांबी में क्रिकेट से ज्यादा रोमांच पहलवानों के दंगल में है. आज भी दंगल युवा पीढ़ी को ही नहीं, बच्चों और बुजुर्गों को भी आकर्षित कर रहा है. 115 साल पुरानी परंपरा की सबसे खास बात ये है कि यह बिना किसी सरकारी मदद के खेला जा रहा है. भारत की ये परंपरा ग्रामीण आपसी सहयोग से आगे बढ़ा रहे हैं. बता दें इस बार महिला पहवान का दांव-पेंच दंगल के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
एशिया कप नहीं इन युवाओं को दंगल का इंतजार
भले ही देश के युवा आज एशिया कप के फाइनल मैच के इंतजार में हो, लेकिन कौशांबी जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर दूर पश्चिम शरीरा इलाके में युवाओं का बहुत बड़ा धड़ा भारत के प्राचीन खेल मल्य युद्ध को देखने के लिए जमा है. यहां पहलवान का हर दाव युवाओं में गजब का जोश भर देता है. इस दंगल में हिस्सा लेने देश के कोने-कोने से पहलवान आते हैं. मुकाबले में अपने शरीर के पौरुष, दमखम और दांव-पेंच का हुनर दिखा कर सभी का मनोरंजन भी करते हैं. लोगों में इन पहलवानों का हुनर देखने का रोमांच ऐसा है कि लोग मीलों दूर से पैदल दंगल देखने पहुंचते हैं.
दर्शक रोमांच से भर उठते हैं
आपको बता दें कुश्ती में क्रिकेट से ज्यादा रोमांच ठीक उसी तरह आता है जैसे क्रिकेट में बैट्स मैन गेंद पर चौके और छक्के लगते हैं, उसी तरह वह खुद पहलवानी में धोबी पछाड़ मार कर अपने साथी पहलवान को हवा में उछाल देते है, जिसे देख दर्शक रोमांच से भर उठते हैं. दंगल के इस परंपरागत खेल में इस साल जिले में एक दर्जन पहलवान दिल्ली, राजस्थान, बिहार, तमिलनाडु, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों से हिस्सा लेने पहुंचे हैं.
यह खेल नैतिकता और चरित्र भरा है
जानकारी के मुताबिक कुश्ती की परंपरा देश से जमीदारी प्रथा के खत्म होने के बाद धीरे धीरे खो सी गई है. कुश्ती के जानकार बताते है कि यह खेल नैतिकता और चरित्र भरा है, जिसमें दो पहलवान अपने दमखम को नियमों के दायरे में रहकर खेलते हैं.
आज भी रोमांच के इस खेल को जीवित रखने वाले आयोजक बताते है कि वह पिछले कई सालों से जिले की अलग-अलग ग्राम सभाओं में इस तरह के दंगल करवाते हैं. कोरोना काल के बाद यह पहला वर्ष है जब यहां दंगल करवाया जा रहा है. इस दंगल को देखने के लिए युवा वर्ग के लोग क्रिकेट छोड़कर इसे देखने आते हैं. यहां पहलवानों का हर दांव-पेंच उन्हें क्रिकेट के चौके छक्के से ज्यादा मजा देता है.