कौन थे शचींद्रनाथ सान्याल, जिन्हें सीएम योगी ने स्मारक बनाकर दिया सम्मान
गोरखपुर में महान क्रांतिकारी सपूत शचींद्रनाथ सान्याल का स्मारक जल्द ही गोरखपुर में बनकर तैयार होगा. सीएम योगी आदित्यनाथ ने 28 मार्च को इसका शिलान्यास किया है. आइए जानते हैं गोरखपुर से शचींद्रनाथ सान्याल का क्या नाता रहा है.
विनय सिंह/गोरखपुर : देश के आंदोलन में काकोरी ट्रेन लूट व बनारस षडयंत्र की योजना बनाने वाले सरदार भगत सिंह के गुरू शचींद्रनाथ सान्याल का गोरखपुर का स्मारक बनाया जाएगा.सीएम योगी आदित्यनाथ ने 28 मार्च को स्मारक के शिलान्यास किया. इस मौके पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ''देश की आजादी में शचींद्रनाथ सन्याल की स्मृतियों को जीवंत बनाए रखने के लिए पीएम मोदी जी के विजन पर प्रदेश में सभी क्रांतिकारियों के स्मारक बनाए जा रहे हैं. पं. रामप्रसाद बिस्मिल का भव्य स्मारक हमने बनाया है. गोरखपुर में चिड़ियाघर का नाम अशफाकउल्लाखान के नाम पर रखा गया है.'' स्मारक के साथ अतिथि भवन और भव्य मूर्ति लगाई जाएगी.
महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे सचींद्रनाथ सांन्याल
शचींद्र सान्याल एक महान क्रांतिकारी थे. तीन जून 1893 को वाराणसी में जन्मे सान्याल ने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि बनाया था.15 वर्ष के थे तभी उनकी मां का निधन हो गया. उस वक्त देश गुलाम था, देश की आजादी के लिए उन्हें दो बार कालापानी की सजा हुई थी. उनका का ज्यादातर जीवन जेल में ही बीता, इसलिए उनके बेटे रंजीत और बेटी अंजलि की पढ़ाई की जिम्मेदारी उनके भाई रवींद्र नाथ सान्याल ने उठा रखी थी. चूंकि रवींद्र सेंट एंड्रयूज कॉलेज में शिक्षक थे, इसलिए उनके साथ रहकर सचींद्र के बेटे व बेटी गोरखपुर में ही पढ़े. अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में शामिल होने की वजह से सान्याल कोलकाता जेल में कैद कर दिया गया था. जहां 50 की उम्र में टीबी हो गई थी.
देश की आजादी के लिए गए जेल
डाक्टरों की सलाह पर वह अपने भाई के पास गोरखपुर आ गए, जहां सात फरवरी 1942 में उन्होंने दाउदपुर स्थित अपने आवास में आखिरी सांसें लीं. रवींद्र व सचींद्र के परिवार का फिलहाल कोई भी गोरखपुर में नहीं रहता. उनकी कुछ संपत्ति 1998 को भारत सेवाश्रम को दान में दे दी गई. जहां आज की तारीख में स्वामी प्रणवानंद आश्रम है. सचिंद्रनाथ सन्याल अपने भाईयों के साथ देश के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था. 1913 में फ्रेंच बस्ती चंदननगर में प्रसिद्ध क्रांतिकारी रासविहारी बोस से उनकी मुलाकात हुई. कुछ ही दिनों में काशी केंद्र का चंदननगर दल में विलय हो गया ओर रासबिहारी काशी आकर रहने लगे.
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