मुरादाबाद की बहू ने घूंघट छोड़ लिख दी आत्मनिर्भरता की इबारत, कम रही हजारों रुपये
Moradabad News: अब से करीब 20 साल पहले जब पूनम शादी करके इस गांव में आईं थी तो इस गांव के ऐसी स्थिति थी कि लोग अपनी बेटियों का रिश्ता इस गांव में करने से कतराते थे. उस गांव की बहू कई महिलाओं को रोजगार दे रही है.
आकाश शर्मा/मुरादाबाद: यूपी के मुरादाबाद जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाली महिला ने कमाल कर दिया है. उसने मशहूर शायर अकबर हैदराबादी की शायरी 'हिम्मत वाले पल में बदल देते हैं दुनिया को सोचने वाला दिल तो बैठा सोचा करता है..' को सच साबित कर दिया है. इस महिला ने अपने गांव और परिवार को एक नई पहचान दी है. हम बात कर रहे है राम गंगा नदी के पार स्थित बमनिया पट्टी गांव की रहने वाली पूनम की.
घूंघट छोड़ आत्मनिर्भरता की इबारत लिखी
अब से करीब 20 साल पहले जब पूनम शादी करके इस गांव में आईं थी तो इस गांव के ऐसी स्थिति थी कि लोग अपनी बेटियों का रिश्ता इस गांव में करने से कतराते थे और बामुश्किल रिश्ते आ पाते थे और स्थितियां बिल्कुल प्रतिकूल नहीं थीं. किसी की तरफ से स्थितियों को बदलने के लिए कदम उठाने की जहमत नहीं की गई और ऐसे में ठाकुरद्वारा के सूरजनगर से आई पूनम की शादी इस गांव में हुई. इस स्थिति को देखा तो रामगंगा नदी के शांत पानी में पत्थर मारकर हलचल पैदा करने की ठान ली. रास्ते में रुकावटे तो बहुत आईं, लेकिन रुकावटों की परवाह कहां थी. घूंघट छोड़ा और आत्मनिर्भरता की इबारत लिख डाली.
तीन साल पहले शुरू किया यह काम
पूनम ने 2019 में 10 साथियों के साथ मिलकर सहारा अश्व कल्याण स्वयं सहायता समूह का गठन किया और इस सेल्फ हेल्प ग्रुप से 15 हजार रुपये की लागत से आचार बनाने का काम शुरू किया. इस समूहू का आज के समय में इस एसएचजी का टर्नओवर 75 हजार रुपये पहुंच गया है. उन्होंने अपने आचार की कीमत 200 रुपये किलो रखी है. इससे करीब 25 हजार रुपये की आमदनी उन्हें हो जाती है. इस पूरे काम में पूनम के पति खिलेंद्र सिंह भी पूनम का हर कदम पर साथ दे रहे हैं.
कोरोना महामारी में नहीं हारी हिम्मत
पूनम ने यह व्यवसाय महज 15 हजार रुपये से शुरू किया. धीरे-धीरे ऑर्डर आने लगे, जिसके बाद काम को आगे भी बढ़ाना था. लेकिन, लागत राशि कम पड़ रही थी. इस परिस्थिति में बैंक से एक लाख रुपये का लोन लेना पड़ा, लेकिन एक साल के भीतर ही देश में कोरोना महामारी ने पैर पसारे तो देश के अन्य व्यवसाय की तरह उनके स्वरोजगार को भी खासा नुकसान पहुंचा. साथ ही काम भी चौपट हो गया. इसके बाद भी पूनम ने हिम्मत नहीं हारा.महामारी की लहर गुजरी तो उन्होंने अपने व्यवसाय को ऑनलाइन शुरू किया और आज धीरे-धीरे चीजें पटरी पर आने लगी हैं. पूनम और उनके पति ने व्हाट्सएप ग्रुप बना रखे हैं जिनमें बाजारों के दुकानदारों के नंबर ऐड कर रखे हैं और वहीं से अब बेहतर ऑर्डर मिल भी रहे हैं.
हर माह कमाती है 25 हजार रुपये
पूनम का कहना है कि हर माह करीब 25 हजार रुपये का कारोबार हो जाता है. इसमें से 10 हजार रुपये समान और मजदूरी में निकालते है और 15 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है. स्थिति बदलेगी तो कारोबार और बढ़ेगा और लोकल को वोकल बनाने का प्रयास भी जरूर एक दिन पूरा होगा. साथ ही काम भी आगे बढ़ेगा तो सफलता भी निश्चित ही मिलेगी. आज के समय में पूनम जैसी महिलाए समाज के लिए एक दर्पण की तरह है जो महिलाओं को आगे बढ़ने की नई मिसाल पेश करती है.