National Herald Money Laundering Case: जानें नेशनल हेरल्ड अखबार का पूरा इतिहास, जिसके अधिग्रहण को लेकर ईडी के निशाने पर हैं राहुल गांधी
नेशनल हेरल्ड मनी लॉन्ड्रिंग केस को समझने से पहले हमें नेशनल हेरल्ड के इतिहास में जाना होगा. दरअसल नेशनल हेरल्ड समाचार पत्र देश को आजादी मिलने से भी पहले का अखबार है. इस अखबार की शुरूआत इंदिरा गांधी के पिता और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1938 में की थी...
प्रदीप राघव/नई दिल्ली: नेशनल हेरल्ड मनी लॉन्ड्रिंग केस में राहुल गांधी से सोमवार को दिनभर चली पूछताछ के बाद आज फिर पूछताज हो रही है. ईडी के दफ्तर के बाहर बड़ी संख्या में कांग्रेस नेताओं का जमावड़ा है. राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के विरोध में कांग्रेस की तरफ से देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन किए जा रहे हैं. ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के इस मामले कांग्रेस नेता सोनिया गांधी को भी समन किया था लेकिन सोनिया गांधी कोविड पॉजिटिव होने की वजह से अभी अस्पताल में भर्ती हैं.
क्या है नेशनल हेरल्ड मनी लॉन्ड्रिंग केस
नेशनल हेरल्ड मनी लॉन्ड्रिंग का ये पूरा मामला 2010 में गांधी परिवार के स्वामित्व वाली एक कंपनी यंग इंडिया लिमिटेड से जुड़ा हुआ है. ये कंपनी करीब 5 लाख रुपये की संपत्ति से शुरू हुई लेकिन आज उसके पास करीब आठ सौ करोड़ रुपये की संपत्ति है. और वो भी तब जब कंपनी फिलहाल किसी तरह की व्यवसायिक गतिविधि में शामिल नहीं है और यंग इंडिया लिमिटेड की संपत्ति में यह इजाफा हुआ केवल एक सौदे की वजह से वो सौदा था नेशनल हेरल्ड का प्रकाशन करने वाली कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के अधिग्रहण का.
नेशनल हेरल्ड अखबार का इतिहास
नेशनल हेरल्ड मनी लॉन्ड्रिंग केस को समझने से पहले हमें नेशनल हेरल्ड के इतिहास में जाना होगा. दरअसल नेशनल हेरल्ड समाचार पत्र देश को आजादी मिलने से भी पहले का अखबार है. इस अखबार की शुरूआत इंदिरा गांधी के पिता और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1938 में की थी. उस वक्त जवाहर लाल नेहरू की नेतृत्व में सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों ने मिलकर एसोसिएटेड जनर्ल्स लिमिटेड कंपनी बनाई थी. इसका मकसद नेशनल हेरल्ड अखबार के जरिए अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई को तेज करना था.
एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड कंपनी किसी एक व्यक्ति के नाम नहीं थी, इसमें सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानी ही शेयर धारक थे और उस वक्त अंग्रेजी अखबार नेशनल हेरल्ड के अलावा यह कंपनी उर्दू में कौमी आवाज और हिंदी में नवजीवन नाम के अखबार भी निकालती थी.
2008 आते -आते AJL पर हो गया 90 करोड़ का कर्ज
आजादी के बाद यही तीनों अखबार कांग्रेस की नीतियों के प्रचार-प्रसार का मुख्य जरिया बन गए. इन अखबारों को निकालने वाली कंपनी AJL यानी असोसिएटेड जर्नल्स के पास दिल्ली, मुंबई, पंचकुला, लखनऊ और पटना जैसे बड़े शहरों में प्राइम लोकेशन पर प्रोपर्टी थीं, लेकिन फिर भी 2008 तक इसकी माली हालत इतनी खराब हो गई कि उसने नेशनल हेरल्ड अखबार निकालना बंद कर दिया. उस पर कांग्रेस पार्टी का 90 करोड़ रुपये का कर्ज था. वर्ष 2010 में असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के एक हजार सत्तावन शेयर होल्डर थे. और 2011 में इसे यंग इंडिया नाम की कंपनी ने खरीद लिया.
यंग इंडिया कंपनी की पूरी ABC
दरअसल यंग इंडिया कंपनी 2010 में एसोसिएटिड जर्नल्स को खरीदने के तीन महीने पहले ही आस्तित्व में आई थी, और मात्र 5 लाख रुपये से इसकी शुरूआत हुई थी. उस समय के कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी इसके डायरेक्टर थे. राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी दोनों के पास यंग इंडिया कंपनी के 38-38 फीसदी शेयर थे और बाकी के 24 फीसदी शेयर कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडीज पत्रकार सुमन दुबे और कुछ दूसरे लोगों के पास थे. असोसिएटिड जर्नल्स के 99 फीसदी शेयर यंग इंडिया को स्थानांतरित हो गए, लेकिन असोसिएटेड जर्नल्स के शेयरधारकों को इस बात का पता भी नहीं था. यह बात तब सामने आई जब शेयर धारकों ने इस सौदे पर सवाल उठाए. शेयर धारकों में पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण और इलाहाबाद व मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस मार्केंडेय काट्जू जैसे लोग भी थे.
साल 2012-13 में सुब्रह्मण्यम स्वामी YIL के खिलाफ कोर्ट पहुंचे
साल 2012-13 में भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी इस पूरे मामले को लेकर कोर्ट चले गए. उन्होंने आरोप लगाया कि यंग इंडिया लिमिटेड ने गलत तरीके से असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड का अधिग्रहण किया है. स्वामी के मुताबिक यंग इंडिया लिमिटेड का मकसद असोसिएटेड जर्नल्स की तथाकथित 2000 करोड़ रुपये की संपत्ति पर कब्जा करना था.
यंग इंडिया लिमिटेड की इनसाइड स्टोरी
बता दें कि 2008 में असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड ने घाटे की वजह से नेशनल हेरल्ड अखबार का प्रकाशन बंद कर दिया था. उस वक्त एसोसिएटेड जर्नल्स पर कांग्रेस का 90 करोड़ रुपये का कर्ज था. ये कर्ज अखबार का संचालन करने के लिए दिया गया था. इससे अखबार का संचालन भी दोबारा नहीं हुआ और असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड इसे कांग्रेस को भी नहीं चुका पाई.
90 करोड़ की वसूली के लिए AJL से 50 लाख में हुआ सौदा
सुब्रमण्यम स्वामी का आरोप है कि इस 90 करोड़ की वसूली का अधिकार प्राप्त करने के लिए एजेएल को यंग इंडिया ने मात्र 50 लाख रुपये दिए थे जो कि एसोसिएटिड जर्नल्स लिमिटेड पर कांग्रेस का बकाया था. 2010 में यंग इंडिया ने इसी 50 लाख के बदले 90 करोड़ का कर्ज माफ कर दिया और एसोसिएटिड जर्नल्स लिमिटेड पर यंग इंडिया लिमिटेड का कब्जा हो गया, यानी स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा बनाई गई एक कंपनी में मेजोरिटी शेयर एक ही परिवार के पास हैं और एक तरह से उसी का इस कंपनी पर कब्जा है. सुब्रमण्यम स्वामी ने आरोप लगाया था कि एजेएल पर मालिकाना हक लेने के बाद यंग इंडिया लिमिटेड ने दिल्ली, एनसीआर और दूसरे शहरों में स्थित एजेएल की संपत्तियों को भी अपने कब्जे में ले लिया. एक अनुमान के मुताबिक ये संपत्तियां करीब दो हजार करोड़ रुपये की बताई जाती हैं.
5 लाख रु. से शुरू हुई YILके पास अब 800 करोड़ की संपत्ति
ईडी के मुताबिक 2010 में जब यंग इंडिया लिमिटेड आस्तित्व में आई थी तब उसका शेयर कैपिटल मात्र 5 लाख रुपये था. जल्द ही उसे कथित रुप से कोलकाता से चलने वाली एक शैल कंपनी यानी केवल कागजों पर चलने वाली कंपनी से एक करोड़ रुपये को लोन मिला, ताकि वह असोसिएटिड जर्नल्स और उसकी संपत्ति पर अधिग्रहण के लिए कांग्रेस के साथ सौदा कर सके. इसी एक करोड़ रुपये में से यंग इंडिया ने कांग्रेस को 50 लाख रुपये दिये और एजेएल से 90 करोड़ की वसूली का अधिकार प्राप्त किया. और आखिर में एजेएल की सारी संपत्तियों का अधिग्रहण कर लिया. ईडी के मुताबिक मात्र 5 लाख रुपये से 2010 में शुरु हुई यंग इंडिया लिमिटेड के पास आज 800 करोड़ से ज्यादा की संपत्तियां है. इन संपत्तियों में दिल्ली में ITO के नजदीक बहादुर शाह जफर मार्ग पर प्राइम लोकेशन पर स्थित हेरल्ड हाउस भी शामिल है.
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