Navratri 2022: शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri 2022) 26 सितंबर यानी अगले सोमवार से शुरू हो रहे हैं. ऐसे में देशभर में देवी माता के सभी प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिरों में भक्तों का तांता लगना शुरू हो जाएगा. माता रानी के मंदिर कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैले हुए हैं. हर मंदिर की अपनी मान्यताएं हैं, देवी मां का ऐसा ही एक मंदिर संगम नगरी प्रयागराज में है. खास बात यह है कि इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है. जी हां, आस्था के इस अनूठे केंद्र में लोग मूर्ति की नहीं बल्कि एक पालने की पूजा करते हैं. इस मंदिर का नाम है अलोप शंकरी. आइये इस मंदिर की मान्यता के बारे में जानते हैं...


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क्या है पौराणिक मान्यता?
देशभर में 51 शक्तिपीठ है, जिनमें में से एक अलोप शंकरी देवी मंदिर भी है. शक्तिपीठ होने की वजह से आम दिन हो या फिर नवरात्रि, यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. संगमनगरी प्रयागराज में यह मंदिर संगम नदी के नजदीक स्थित है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, प्रयागराज में इसी जगह पर माता सती के दाहिने हाथ का पंजा कुंड में गिरकर अदृश्य हो गया था. पंजे के अलोप होने की वजह से ही इस जगह को सिद्ध पीठ मानकर इसे अलोप शंकरी मंदिर का नाम दिया गया. माता सती के शरीर के अलोप होने की वजह से ही यहां कोई मूर्ति नहीं है.  


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श्रद्धालु पालने की करते हैं पूजा 
यहां माता की मूर्ति न होने के बाद भी रोजाना देश के कोने-कोने से हजारों श्रद्धालुओं का जमावाड़ा लगता है. यहां मूर्ति के बजाय  पालने (झूला) को प्रतीक के रूप में रखा गया है. श्रद्धालु इसी पालने का दर्शन करते हैं. मंदिर में लोग कुंड से जल लेकर पालने में चढ़ाते हैं. उसकी पूजा और परिक्रमा करते हैं. इसी पालने में देवी का स्वरूप देखकर उनसे सुख-समृधि और वैभव का आशीर्वाद लेते हैं. यहां नारियल और चुनरी के साथ जल और सिंदूर चढ़ाये जाने का भी खास महत्व है. 


रक्षा धागा बांधने की है खास मान्यता
मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु देवी के पालने के सामने हाथों मे रक्षा सूत्र बांधते हैं, माता रानी उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. हाथों मे रक्षा सूत्र रहने तक उसकी रक्षा भी करती हैं. 


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