राजेश मिश्र/मीरजापुर: माता कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है. इनका वर्ण अंधकार की तरह काला है. केश बिखरे हुए हैं और गले में बिजली की तरह चमकती माला है. मां कालरात्रि के तीन नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल और गोल हैं. उनकी आंख से बिजली की भांति किरणें निकलती हैं. उनकी नासिका से श्वास और नि:श्वास से अग्नि की ज्वालाएं निकलती हैं. माता का ये भय पैदा करने वाला रूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है. दरअसल, मां कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल देती हैं. इस वजह से उन्हें शुभंकरी देवी भी कहा जाता है.


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बता दें कि दुर्गा पूजा के सप्तम के दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में अवस्थित होता है. भक्तों को अभय प्रदान करने वाली माता, गर्दभ यानी गदहे पर सवार 4 भुजा धारण किए आती हैं. दुष्टों के लिए माता का रूप भयंकर है. वहीं, भक्तों के लिए बहुत ही कल्याणकारी हैं.. मां की महिमा अपरम्पार है. उनके गुणों का बखान देवताओं ने भी किया है. माता का दर्शन पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.


आपको बता दें कि नवरात्र में मां शक्ति के नौ रूपों की आराधना की जाती है. विंध्य पर्वत पर त्रिकोण पथ पर स्थित मां काली आकाश की तरफ अपने खुले मुख से असुरों का रक्तपान करते हुए, भक्तो को अभय प्रदान करती हैं. माता ने ये रूप दुष्टों के विनाश के लिए बनाया. बता दें कि मधु-कैटभ नाम के महापराक्रमी असुरों से जीवन की रक्षा हेतु भगवान विष्णु को निंद्रा से जगाने के लिए ब्रह्मा जी ने इसी मंत्र से मां की स्तुति की थी. यह देवी काल रात्रि ही महामाया हैं. यही भगवान विष्णु की योगनिद्रा हैं. इन्होंने ही सृष्टि को एक दूसरे से जोड़ रखा है. 


दरअसल, देवी काल रात्रि का वर्ण काजल की तरह काले रंग का हो जाता है, जो अमावस की रत से भी अधिक काला है. मां कालरात्रि के 3 बड़े-बड़े उभरे हुए नेत्र हैं, जिनसे मां अपने भक्तों पर अनुकम्पा की दृष्टि रखती हैं. देवी की 4 भुजाएं हैं. दायीं तरफ की उपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं. वहीं, नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान करती हैं. देवी बायीं भुजा में क्रमश: तलवार और खड्ग धारण किए हैं. देवी कालरात्रि के बाल खुले हुए हैं और हवाओं में लहरा रहे हैं. देवी काल रात्रि गर्दभ पर सवार होती हैं, उनका काला वर्ण कांतिमय और अद्भुत दिखाई देता है. 


माता कालरात्रि का ये विचित्र रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है. इसलिए देवी को शुभंकरी भी कहा जाता है. कालरात्रि भगवती का स्वरूप बहुत ही विकराल है, काल का शमन कर देने वाली माता माया से आच्छादित है. मां के इस रूप में तरह-तरह के व्यंजनों का भोग लगता है. विशेष रूप से मधु और महुआ के रस के साथ गुड़ का भोग लगता है. देवी सभी पापों का नाश कर, अभय प्रदान करने वाली हैं. जगत जननी माता के दरबार में पहुंचने वाले भक्त मां के भव्य रूप का दर्शन कर परम शांति का अनुभव करते हैं.


आपको बता दें कि विंध्य पर्वत पर विराजमान मां काली त्रिकोण पथ पर अवस्थित होकर सभी भक्तों का कल्याण कर रही हैं. दूर-दूर से आए भक्तों का कहना है कि माता सभी मनोकामना पूर्ण कर देती हैं. इस बार मेला में बहुत अच्छी व्यवस्था है. देवी का ये रूप ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करने वाला है. नवरात्र का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए भी अति महत्वपूर्ण है. सप्तमी पूजा के दिन तंत्र साधना करने वाले साधक मध्य रात्रि में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं. 


भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन हेतु पूजा स्थल पर जुटने लगते हैं. शास्त्रों में जैसा वर्णित हैं, उसके अनुसार पहले कलश की पूजा करनी चाहिए फिर नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए, फिर मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए, देवी की पूजा से पहले उनका ध्यान करना चाहिए.