Farmers News: अब पश्चिमी यूपी के किसानों की बढ़ेगी आय, पहली बार काला नमक चावल की खेती शुरू
भगवान गौतम बुद्ध के प्रसाद से मशहूर 2 हजार वर्ष पुराने काले नमक चावल की खेती कर किसान अपनी आय बढ़ाने के लिये अग्रसर हो रहे है. हापुड़ के गांव बाबूगढ़ में किसान सुधाकर कश्यप ने भगवान गौतम बुद्ध के जमाने से चलते हुए आ रहे काले नमक चावल की खेती करनी शुरू की है.
पीयूष गौड़/हापुड़: भगवान गौतम बुद्ध के प्रसाद से मशहूर 2 हजार वर्ष पुराने काले नमक चावल की खेती कर किसान अपनी आय बढ़ाने के लिये अग्रसर हो रहे है. हापुड़ के गांव बाबूगढ़ में किसान सुधाकर कश्यप ने भगवान गौतम बुद्ध के जमाने से चलते हुए आ रहे काले नमक चावल की खेती करनी शुरू की है. इस तरह के चावल की खेती पश्चिमी यूपी में पहली बार की जा रही है.
देश-विदेश में बढ़ रही है काला नमक चावल की मांग
किसकी लागत अन्य चावलों की तरह है लेकिन अन्य चावलों के मुक़ाबले इस चावल की मांग देश के साथ-साथ विदेश में भी काफी है, इसका छिलका एवं भूसी काले रंग की होती है. इसलिये इसका नाम काला नमक चावल होता है. वहीं, पहली बार किसान द्वारा इस चावल की खेती किये जाने पर जिले के कृषि अधिकारी और कृषि वैज्ञायानिको ने किसान के खेत पर पहुंचकर खाद और पानी की सही मात्रा के बारे में किसान को जागरूक किया.
तराई क्षेत्र में होती है पैदावार, अब पश्चिमी यूपी में उगाने का किया जा रहा प्रयास
आपको बता दें भारत में काला नमक चावल अभी तक तराई क्षेत्रों में ही पैदा किया जाता रहा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहली बार इसे उगाने का प्रयास किया जा रहा है. जिसके लिए किसानों को जागरूक किया जा रहा है. काला नमक चावल एक बेहतरीन खुशबू वाला चावल है. जो कि सफेद रंग का होता है. बताया जाता है बनने के बाद इसकी खुशबू इतनी अधिक होती है कि आसपास के इलाकों में दूर तक फैल जाती है.
सेहत के लिए भी माना जाता है फायदेमंद
गुणवत्ता की दृष्टि से भी यह चावल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है. इसके खाने से हृदय रोग से भी बचा जा सकता है क्योंकि इसमें एथॉसैमीन और एंटी ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं जो कि सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं. इस चावल की डिमांड भारत सहित दुनिया भर के अन्य देशों में भी हैं. लेकिन मांग के अनुरूप इसका उत्पादन नहीं हो रहा है, कहीं ना कहीं किसानों में नई फसल को लेकर और उसकी उत्पादन तकनीक को लेकर जो कशमकश रहती है. उस कारण से किसान नई फसल को नहीं अपना पाता है.
भारत से सिंगापुर को 500 क्विंटल दुबई को 20 क्विंटल और जर्मनी को मात्र 1 कुंटल चावल ही निर्यात किया जाता है, जबकि इसकी डिमांड और मूल्य काफी ज्यादा है. अगर मूल्य की बात की जाए तो इसका बाजार मूल्य लगभग 200 रुपये प्रति किलो से अधिक रेट पर मार्केट में बिक्री किया जाता है. जिससे किसानों को अच्छा लाभ हो सकता है.
120 दिनों में तैयार होती है फसल
काला चावल की फसल मात्र 120 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैस प्रति बीघा फसल उत्पादन भी इस चावल से ज्यादा लिया जा सकता है. जिससे किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कृषि अधिकारी भी नूतन प्रयोग को लेकर उत्साहित हैं और इसकी सफलता के लिए बोई गई फसल पर बारीकी से निगाह बनाए हुए हैं और किसानों के साथ लगातार बातचीत कर सहयोग कर रहे हैं.
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