प्रमोद कुमार/कुशीनगर: सोचिए अगर आपको अचानक यह पता चले कि कोई दूसरा शख्स आपके नाम से 25 साल से नौकरी कर रहा है तो आप पर क्या गुजरेगी. हैरान कर देने वाला यह वाकया कुशीनगर से आया है, जहां किसी दूसरे शख्स के नाम पर एक व्‍यक्ति 25 साल से सेना में नौकरी कर रहा था. 


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असम रायफल्‍स में कर रहा नौकरी 
हाथों में कागज का पुलिंदा लेकर दर-दर की ठोंकर खाने को मजबूर इस शख्स का नाम रामप्यारे है. जो अपने नाम को साबित करने के लिए हुक्मरानों की चौखट पर पिछले दस साल से माथा रगड़ रहा है, लेकिन नतीजा अब तक सिफर ही रहा है. इनके नाम का इस्तेमाल कर असम रायफल्स में नौकरी कर रहे राजेन्द्र नाम के शख्स की मौज है जो पिछले 25 साल से मलाई काट रहा है.


चचेरे भाई ने फर्जी कागजात बनवा कर रहा नौकरी 
दरअसल, कहानी 25 साल पहले से शुरू होती है...जब कुड़वा दिलीपनगर गांव के रहने वाले राजेन्द्र ने अपने चचेरे भाई रामप्यारे के दस्तावेजों को फर्जी तरीके से इस्‍तेमाल कर रामप्यारे बन गया. राजेन्द्र ने आधार कार्ड से लेकर तमाम दस्तावेजों में नाम रामप्यारे बन गया. इस बात की भनक रामप्यारे को दस साल पहले लगी. इसके बाद रामप्यारे ने असम रायफल्स के अधिकारियों से संपर्क किया. 


अभी तक नहीं कार्रवाई 
इसके बाद निदेशालय द्वारा सिविल वाद दायर करने का निर्देश दिया गया. इस मामले में जिले के कसया थाने में एफआईआर दर्ज कर ली गई, लेकिन पिछले साल सितंबर महीने में दर्ज एफआईआर के बाद भी अभी तक ना तो चार्जशीट फाइल हुई ना ही कोई गिरफ्तारी. एसपी कार्यालय कुशीनगर से असम रायफल्स को कई बार पत्र लिखा गया, लेकिन अब तक जवाब नहीं आया. मामला सेना से जुड़ा होने के चलते अधिकारी भी इस मसले पर बिना सेना का जवाब आए कोई कार्रवाई करने से बचते दिख रहे हैं. 


खुद को साबित करने के लिए 10 साल से भटक रहा 
हैरानी की बात ये है कि इस मामले में जिस राजेन्द्र के जरिए फर्जीवाड़ा किया गया है उसे गांव के प्रधान ने रामप्यारे होने का प्रमाण पत्र दिया है. जबकि ऐसा ही पत्र वास्तविक रामप्यारे को भी गांव के प्रधान ने दिया है. सवाल उठता है कि एक ही व्यक्ति के नाम पर दो लोगों को प्रमाण पत्र जारी करना क्या फर्जीवाड़े की श्रेणी में नहीं आता. फिलहाल इस मामले में इस शख्स को इंसाफ का इंतजार है, जो खुद के नाम को ही साबित करने के लिए दस साल से दर दर भटकने को मजबूर है.