लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच ओबीसी वोटरों को लुभाने की जंग तेज हो गई है. समाजवादी पार्टी पहले ही जहां जाति जनगणना की मांग कर नया सियासी दांव खेला है वहीं बीजेपी भी अब उसका तोड़ निकालने में जुटी है. भाजपा का ओबीसी मोर्चा हर जिले में सम्मेलन करेगा. जाति जनगणना के मुद्दे पर हो रही सियासत में सपा काफी आक्रामक है. पार्टी की ओर से शुक्रवार से जाति जनगणना को लेकर संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है. पार्टी एक तरफ संगोष्ठी करने जा रही है वहीं दूसरी ओर 25 फरवरी से 5 मार्च तक जाति जनगणना को लेकर आंदोलन चलाने का फैसला किया है. सपा संगोष्ठी और आंदोलन के जरिए लोगों को बताएगी कि जिसकी आबादी अधिक उसकी गिनती जरुरी है. दरअसल समाजवादी पार्टी बिहार में जाति जनगणना के मुद्दे पर जेडीयू की तरह आक्रामक रुख अख्तियार करना चाहती है. इसके लिए पार्टी के कई नेता सक्रिय हैं. इससे पहले सपा ने पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान जारी इलेक्शन मैनिफेस्टो में भी जाति जनगणना  का वादा किया था. हालांकि पार्टी को विधानसभा चुनाव में कामयाबी नहीं मिली. ऐसे में अब वह लोकसभा में इस मुद्दे के जरिए अपनी सियासी नाव को पार करना चाहती है.


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बजट सत्र में भी अखिलेश ने उठाया मुद्दा


गुरुवार को समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने विधानसभा के बजट सत्र में जातीय जनगणना कराने की मांग उठाकर एक बार फिर इस मुद्दे को हवा दे दी है. इसकी शुरुआत वाराणसी से हो रही है. यह पूरा कार्यक्रम तीन दिन तक चलेगा. इसमें समाजवादी पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ और समाजवादी बाबा साहब अम्बेडकर वाहिनी को शामिल किया गया है. संगोष्ठी को ‘जातीय जनगणना कराए सरकार, सबको सम्मान अधिकार’ नाम दिया गया है. 26 फरवरी को कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर होगा, जिसमें पार्टी के दलित वर्ग के कार्यकर्ता शिरकत करेंगे.


बीजेपी की सधी चाल


बीजेपी अभी जाति जनगणना के मुद्दे पर बहुत संभलकर खेल रही है. पार्टी का ओबीसी मोर्चा हर जिले में सम्मेलन भले शुरू कर रहा है, लेकन इसे सिर्फ सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी देने तक सीमित रखा गया है. हालांकि कुछ समय पहले उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा था कि जाति जनगणना राज्यों का विषय है. वह किसी भी तरह की जाति जनगणना के विरोधी नहीं हैं. यूपी की दूसरी पार्टियों में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जाति जनगणना की मांग कर रही है. पार्टी की ओर से इस मुद्दे पर जागरुकता अभियान भी शुरू किया गया है. 


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कुछ दिन पहले ही केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव और सपा पर निशाना साधते हुए ट्विट किया था कि ''जातीय जनगणना की बात केवल ढोंग है, जब सरकार में थे तब मौनी बाबा अब बाहर तब मांग केवल 2024 में चुनावी लाभ के लिए है... जो नहीं मिलेगा, पहले अखिलेश यादव समाप्त हो रही सपा को बचाने का अध्यक्ष पद किसी और को सौंप जातिगत न्याय की शुरुआत संगठन से करें फिर ये बात करें.''  उन्होंने ट्वीट में नीचे लिखा,'' 2024_फिर_से_मोदी .''
जाति जनगणना से क्यों बचती हैं सरकारें
जाति जनगणना का मुद्दे की जड़े काफी पुरानी हैं. 1931 तक भारत में जातिगत जनगणना होती थी. साल 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा एकत्रित भी किया गया, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया. 1951 से 2011 तक की जनगणना में हर बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं.


मोदी सरकार का स्टैंड
20 जुलाई 2021 को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में दिए जवाब में कहा था कि वर्तमान में केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा किसी और जाति की गिनती का कोई आदेश नहीं दिया है. पिछली बार की तरह ही इस बार भी एससी और एसटी को ही जनगणना में शामिल किया गया है. दरअसल ओबीसी की लिस्ट केंद्र और राज्यों में अलग है. कुछ जातियां ऐसी हैं जो राज्यों में ओबीसी में शामिल हैं. लेकिन केंद्र की लिस्ट में उनकी गिनती ओबीसी में नहीं होती. इसलिए केंद्र और राज्यों में बीजेपी की सरकार सधी हुई चाल चलना चाहती है.


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