राजेंद्र तिवारी/महोबा: पूरे देश में रक्षा बंधन का पर्व सावन की पूर्णमासी के दिन मनाया जाता है लेकिन बुंदेलखंड के महोबा जिले में यह पर्व परवा (यानी पूर्णमासी के एक दिन बाद) के दिन मनाया जाता है क्योंकि पूर्णमासी के दिन यहां दिल्ली के राजा प्रथ्वीराज चौहान और महोबा के शूरवीरों के बीच घनघोर युद्ध चल रहा था और विजय उपरांत दूसरे दिन रक्षा बंधन का पर्व मनाया गया. तभी से यह परम्परा चली आ रही है. 


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भाई-बहन का प्यार रक्षा बंधन का त्योहार पूरे देश में पूर्णमासी मनाया जाता है. लेकिन महोबा जनपद में रक्षा बंधन का त्योहार पूर्णमासी के एक दिन बाद परवा के दिन मनाया जाता है, क्योंकि 832 ईसा पूर्व में दिल्ली के राजा प्रथ्वीराज चौहान ने अपने सात लाख सैनिकों के साथ महोबा के राजा परमाल पर आक्रमण कर पांच शर्त रख युद्ध न करने की बात कही थी लेकिन राज परमाल ने पांचों शर्तों को ठुकरा दिया. जिससे प्रथिवराज चौहान ने महोबा पर आक्रमण कर दिया था.  


इतिहासकार तारा पाटकर ने बताया कि राज परमाल के वीर योद्धा आल्हा-उदल ने पूर्णमासी के दिन प्रथ्वीराज चौहान को धूल चटाकर यहां से भगा दिया. पूरे दिन युद्ध चलने के कारण पूर्णमासी के दिन रक्षाबंधन का त्योहार नहीं हो पाया और विजय उपरांत परवा के दिन बहनों ने कजली विसर्जित कर बड़े धूमधाम से अपने भाइयों के कलाइयों में राखी बांधी. तभी से यह परम्परा चली आ रही है और महोबा में रक्षा बंधन पर्व परवा के दिन कजली महोत्सव के रूप में मनाया जाता है. आज के दिन विशाल जलूस निकाला जाता है और सात दिनों तक यह कजली महोत्सव के रूप में चलता है, जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं और कजली महोत्सव का लुप्त उठाते हैं. 


भाई-बहन के प्यार रक्षाबंधन का हर बहन को इंतजार रहता है कि कब वह समय आये कि अपने भाइयों की कलाई में राखी बांधे. भाई भी अपनी बहनो को राखी के बदले उपहार भेट कर उनकी रक्षा का वचन देते हैं. 



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