`गाज़ियों` की नहीं भगवान विष्णु की धरती है संभल, ओवैसी और AIMIM को पसंद हैं मुस्लिम आक्रांता
संभल में ओवैसी की पार्टी की ओर से लगाए गए बैनर पर बवाल मचा है. दरअसल, AIMIM ने अपने बैनर में संभल को `गाज़ियों की धरती` बताया है.
लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे राज्य में सियासी तपिश बढ़ती जा रही है. नेताओं की उलूल-जुलूल बयानबाजी शुरू हो गई है. बैनरों-पोस्टरों के जरिए सियासत साधने का दौर चल निकला है. हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) भी उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में कूद पड़ी है. पार्टी प्रमुख ओवैसी राज्य के मुस्लिम बाहुल्य जिलों और विधानसभा क्षेत्रों में अपने लिए मौके तलाश रहे हैं. इस दौरान दिए जा रहे उनके भाषण में काफी तल्खी होती है.
उनकी पार्टी AIMIM भी बैनरों और पोस्टरों के जरिए मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण का भरपूर प्रयास कर रही है. AIMIM ने कुछ दिन पहले अपने पोस्टरों में अयोध्या की फैजाबाद लिखा था, जिस पर संत समाज ने काफी तीखी प्रक्रिया दी थी. भाजपा ने भी इसका विरोध किया था. अब संभल में ओवैसी की पार्टी की ओर से लगाए गए बैनर पर बवाल मचा है. दरअसल, AIMIM ने अपने बैनर में संभल को 'गाज़ियों की धरती' बताया है. ओवैसी ने संभल में बुधवार को एक जनसभा को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री योगी के 'अब्बाजान' वाले बयान पर पलटवार करते हुए खुद को सबका अब्बा बता डाला.
AIMIM ने 'गाज़ियों की धरती' कहा क्यों?
भाजपा ने AIMIM द्वारा संभल को 'गाज़ियों की धरती' बताने पर सख्त ऐतराज जताया है. उसका कहना है कि ओवैसी और उनकी पार्टी इस तरह की पोस्टरबाजी से उत्तर प्रदेश का माहौल बिगाड़ना चाहती है. यह AIMIM द्वारा मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश है. लेकिन संभल को AIMIM ने 'गाज़ियों की धरती' कहा क्यों? गाज़ी का मतलब क्या होता? संभल से इसका शब्द का क्या जुड़ाव है? ऐसे प्रश्न आपके मन में भी उठ रहे होंगे जिसका उत्तर देने की कोशिश हमने की है. संभल जिले की आधिकारिक वेबसाइट पर यहां का संक्षिप्त इतिहास दिया है.
पृथ्वीराज चौहान ने गजनी से लड़े दो युद्ध
इन सवालों के जवाब जानने के लिए हमें इतिहास में करीब 2500 साल पीछे जाना होगा. जिले की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में संभल पांचाल शासकों का गढ़ था और बाद में सम्राट अशोक के साम्राज्य का हिस्सा बना. अशोक के बाद संभल पर कई शासकों का शासन रहा. पृथ्वीराज चौहान ने गाजी सैय्यद सालार मसूद के खिलाफ 12वीं शताब्दी में यहां दो भयंकर युद्ध किए लड़े. सैय्यद सालार मसूद गजनी साम्राज्य के शासक महमूद गजनी का भतीजा था.
पृथ्वीराज चौहान ने पहले युद्ध में सैय्यद सालार मसूद गजनी को हराया, लेकिन दूसरे युद्ध में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. हालांकि पृथ्वीराज चौहान और सैय्यद सालार मसूद गजनी के बीच हुए दोनों युद्धों को साबित करने के लिए कोई परिस्थितिजन्य साक्ष्य नहीं मौजूद नहीं हैं और इसे एक किंवदंती के रूप में माना जाता है. 14वीं शताब्दी में दिल्ली के पहले मुस्लिम सुल्तान कुतुब-उद-दीन ऐबक ने संभल पर कब्जा कर लिया और इसे अपने साम्राज्य का हिस्सा बना लिया. दिल्ली के एक अन्य सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने संभल कूच किया क्योंकि वहां के हिंदू शासकों में से एक उसके कई आदमियों की हत्या के लिए जिम्मेदार था.
चार वर्षों तक सिकंदर लोदी का कब्जा
फिरोज शाह तुगलक ने संभल में मुस्लिम शासन स्थापित किया और सभी हिंदू शासकों को हराकर उन्हें जीवन भर के लिए गुलाम बना लिया. 15वीं शताब्दी ईसा पूर्व में, लोदी साम्राज्य के दूसरे शासक सिकंदर लोदी ने संभल को अपने विशाल साम्राज्य की राजधानियों में से एक घोषित किया. संभल 4 वर्षों तक सिकंदर लोदी के साम्राज्य की राजधानियों में से एक रहा. पहले बताए गए साम्राज्यों के ढह जाने के बाद, मुगलों की बारी थी कि वे संभल पर दावा करें, जो उनके साम्राज्य की राजधानी होने के लिए सबसे उपयुक्त था.
मुस्लिम शासकों को क्यों भाया था संभल
पहले मुगल शासक बाबर ने संभल में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया. यह मस्जिद आज भी एक ऐतिहासिक स्मारक के रूप में संभल में मौजूद है. बाबर ने अपने बेटे हुमायूँ को संभल का गवर्नर बनाया और हुमायूँ ने अपने बेटे अकबर को यहां का शासन सौंप दिया. कहा जाता है कि संभल अकबर के शासन में फला-फूला लेकिन बाद में जब अकबर के बेटे शाहजहाँ को संभल की सत्ता सौंपी गई तो इस शहर की लोकप्रियता में भारी गिरावट आई. अब आप सोच रहे होंगे कि कालांतर में मुस्लिम शासकों के लिए संभल इतना महत्वपूर्ण क्यों रहा?
संभल रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण था. इस जगह से कोई भी बादशाह पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर शासन कर सकता था. अब आप पूछेंगे कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम शासकों को दिलचस्पी क्यों रही होगी? तो आपके सवाल का जवाब यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश दिल्ली से नजदीक है, दिल्ली के शासकों के साम्राज्य का विस्तार करने के लिए वर्तमान पश्चिमी यूपी काफी मुफीद था. इस क्षेत्र में दिलचस्पी का कारण यहां की भूमि का हद उपजाऊ होना था, क्योंकि यह दोआब यानी दो नदियों के बीच का क्षेत्र है. दिल्ली में बैठे शासक के लिए यह इलाका आर्थिक तौर पर काफी हितकर था.
मुस्लिम शासकों ने धर्म परिवर्तन कराया
इतिहासकारों के मुताबिक मुस्लिम शासकों ने इस इलाके में बहुत बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन कराया. संभल का जामा मस्जिद इसका सबसे बड़ा केंद्र रहा. इसीलिए आज भी कट्टर मुसलमान और उनके नेता संभल को गाज़ियों की धरती कहते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि उन्होंने और उनके पूर्वजों ने यहां धर्म की लड़ाई जीती. गाज़ी अरबी का शब्द है जिसका मतलब होता है धर्मयोद्धा, जिसने अपने धर्म को स्थापित करने के लिए युद्ध लड़े हों, लोगों को अपना धर्म कुबूल करवाया हो. संभल का इस्लामिक हिस्ट्री में बहुत प्रभाव है. इस्लाम के प्रसार में संभल का अहम योगदान माना जाता है.
भगवान विष्णु के दसवें अवतार की भूमि
अब इतिहास से हटकर पुराणों की ओर जाएं तो संभल का हिंदुओं के लिए काफी महत्व है. और पुराण तो वैसे भी मध्यकालीन इतिहास से काफी पुराने हैं. इसलिए पुराणों में जिस बात का जिक्र है उससे सत्य कुछ नहीं हो सकता. पुराणों में कलियुग में भगवान श्रीहरि विष्णु के दसवें और अंतिम अवतार श्रीकल्कि के संभल में होने का जिक्र मिलता है. भगवान के श्रीकल्कि अवतार का संभल के एक ब्राह्मण परिवार में होना बताया गया है. इसका जिक्र सिखों के दसवें गुरु श्री गुरुगोविंद सिंह ने भी दशम ग्रंथ में किया है.
संभल कभी गाज़ियों की धरती नहीं रहा
संभल में कल्कि पीठ भी स्थापित है और हर साल श्रीकल्कि महोत्सव का आयोजन किया जाता है. संभल की पौराणिक महत्ता को देखते हुए ही महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने यहां कल्कि विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया. असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी आक्रांताओं के किए पर गौरवान्वित हो सकती है, उन्हें अपना पूर्वज मान सकती है. भारतवासियों और यूपी वालों के लिए संभल की पहचान उसके पौराणिक महत्व से ही है. क्रूर मुस्लिम आक्रांताओं ने संभल पर जबरदस्ती अपना कब्जा जरूर स्थापित किया. लेकिन संभल कभी गाज़ियों की धरती नहीं रहा. भगवान विष्णु की धरती रहा है.
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