कन्हैया लाल शर्मा/मथुरा: कहते हैं कृष्ण का कोई भक्त है, तो वह भोलेनाथ हैं. यही वजह है कि उन्हें सबसे बड़ा वैष्णव कहा जाता है. ब्रज में भगवान श्री कृष्ण ने अनेकों लीलाएं की हैं. इन लीलाओं के साक्षी बनने में देवी-देवताओं ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. कृष्ण की बाल लीलाओं के साक्षी बनने के लिए देवी-देवता भी रूप बदल-बदल कर ब्रज में आए और कान्हा की बाल लीलाओं में भाग लिया. वृंदावन में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां भोलेनाथ सुबह नर और शाम को नारी के रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं. इस मंदिर का नाम गोपेश्वरनाथ है.  


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द्वापर युग से जुड़ी है कहानी 
इसके पीछे एक द्वापर युग की कहानी है. मान्यता है कि जब द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण निधिवन में अपनी 1108 गोपियों के साथ महारास कर रहे थे. तभी भोलेनाथ के मन में भी इस महारास में शामिल होने की जिज्ञासा जगी. इस पर वह कैलाश पर्वत से ब्रज मंडल आ गए. लेकिन इस महारास में किसी भी पुरुष को शामिल होने की इजाजत नहीं थी. भोलेनाथ को भी वहां जाने की अनुमति नहीं मिली. इस महारास के दर्शन के मौके को भोलेनाथ छोड़ना नहीं चाहते थे. इसलिए उन्होंने गोपी का रूप धारण किया और महारास में शामिल हो गए. 


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गोपी बनकर महारास में पहुंचे थे भोलेनाथ 
जब कान्हा की भक्ति में सभी गोपीकाएं भावविभोर थीं, तभी भोलेनाथ गोपी रूप में कृष्ण के महारास का आनंद ले रहे थे. उसी समय भगवान कृष्ण की नजर भोलेनाथ पर पड़ी. उन्होंने भोलेनाथ को झट से पहचान लिया. इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें गोपेश्वर कहकर संबोधित किया. बस इतना ही सुनकर सभी गोपियों के पैर रुक गए. सभी कृष्ण से पूछने लगीं कि कान्हा आपने इस गोपी को गोपेश्वर क्यों कहा. तब उन्होंने बताया कि जो गोपियों में सबसे श्रेष्ठ है, उसे गोपेश्वर ही कहा जाएगा. श्रीकृष्ण ने गोपियों को बताया कि यह भोलेनाथ हैं, जो गोपी रूप धारण कर महारास में पधारे हैं. 



गोपियों के आग्रह पर ब्रज में बसे गोपेश्वर
महारास में गोपियों को भोलेनाथ के बारे में पता चलने के बाद सभी ने उनसे आग्रह किया कि वह गोपी रूप में ही वृंदावन वास करें. भोलेनाथ ने गोपियों और श्रीकृष्ण का आग्रह स्वीकार किया. उसके बाद से ही वे वृंदावन में गोपेश्वर के रूप में वास करने लगे. 


गोपेश्वर रूप में होती है भोलेनाथ की पूजा
द्वापर युग से ही वृंदावन में भोलेनाथ की पूजा गोपेश्वर के रूप में होती है. गोपी के रूप में भोलेनाथ का श्रृंगार किया जाता है. रोजाना शाम को भोलेनाथ को गोपी के रूप में ही सजाया जाता है. खास तौर पर महिलाएं गोपेश्वर महादेव के दर्शन और मनौती मांगने के लिए यहां पर आती हैं. 



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सावन के सोमवार पर होती है भीड़
यूं तो दर्शन करने आने वालों की संख्या हर रोज यहां पर देखने को मिलती है, लेकिन सावन के दिनों में यहां पर ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है. इसमें सबसे अधिक संख्या महिलाओं की रहती है. जो भोलेनाथ की सेवा पूजा करने के लिए यहां आती हैं. यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भोलेनाथ गोपी रूप में विराजमान हैं. गोपेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध इस प्राचीन मंदिर में वृंदावन और ब्रज के साथ-साथ दिल्ली, नोएडा और आगरा से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या अधिक रहती है. मान्यता है कि भक्त जो भी यहां पर मनोकामना लेकर आते हैं वह जरूर पूरी होती है. 


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