कुलदीप नेगी/देहरादून : दिसंबर का महीना गुजरने को है, लेकिन प्रदेश में इस बार दिसंबर का पूरा महीना शुष्क रहा है. न तो बारिश हुई और न ही बर्फबारी. सर्दियों का ड्राई सीजन मौसम वैज्ञानिकों के लिए भी चिंता की वजह बना हुआ है. चाहे बात खेती-किसानी के लिहाज से करें या फिर ग्लेशियर की सेहत से इसे जोड़कर देखें तो दोनों ही लिहाज से ऐसा होना नुकसान का सौदा है.


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सर्दियों में हिमालय क्षेत्र में बर्फबारी जरूरी 
उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट का कहना है कि बर्फबारी ग्लेशियर के लिए फीडिंग का काम करती है. इतना ही नहीं अगर सर्दियों के मौसम में ग्लेशियर को बर्फबारी नहीं मिलेगी तो इसका असर ग्लेशियर की सेहत पर भी पड़ेगा. हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों के लिए बर्फबारी जरूरी है और कहीं न कहीं यह भी देखने को मिल रहा है कि ग्लेशियर पिघलते चले जा रहे हैं. साथ ही स्नोलाइन भी पीछे हटती चली जा रही है.


ग्‍लेशियर की सेहत पर विपरीत असर 
डॉ. एमपीएस बिष्ट की मानें तो खुद उनके द्वारा की गई रिसर्च में भी कुछ ग्लेशियर में स्नोलाइन पीछे खिसकना पाया गया है. अगर ग्लेशियर के पिघलने की दर यही रहती है तो इससे उनकी सेहत पर विपरीत असर पड़ेगा. हिमालय क्षेत्र की अधिकांश नदियां ग्लेशियर से ही निकलती हैं इन सभी प्रमुख नदियों का उद्गम श्रोत भी ग्लेशियर ही है. 


कितना पड़ रहा असर, यह स्‍पष्‍ट नहीं 
अगर ग्लेशियर पिघलते हैं तो इनका असर नदियों में पानी की मात्रा पर भी पड़ना लाजमी है. हालांकि, अभी यह कह पाना बेहद मुश्किल है कि कितना असर पड़ रहा है. साफ है कि यह वैज्ञानिकों के लिए भी चिंता की बात है कि अगर सर्दियों के मौसम में बर्फबारी नहीं मिलती है तो इसका सीधा असर ग्लेशियर की सेहत पर पड़ना लाजमी है. 


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