Shri Krishna Janmashtami 2023: जन्माष्टमी से पहले खिले कारोबारियों के चेहरे, इस बार ऐसे बनेंगी माखन चोर की मूर्तियां
Krishna Janmashtami: यूपी का अलीगढ़ दुनियाभर में तालों के साथ-साथ मूर्तियों के लिए भी फेमस है. श्री कृष्ण जन्माष्टमी से पहले यहां के मूर्ति कारोबारियों के चेहरे खिल चुके हैं. इस साल कारोबारी दस करोड़ से अधिक ऑर्डर आने का अनुमान लगा रहे हैं. आइए आपको बताते हैं यहां की मूर्तियों में क्या है खास.
प्रमोद कुमार/अलीगढ़: उत्तर प्रदेश का अलीगढ़ शहर देश और दुनिया में अपने तालों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन तालों के साथ-साथ यहां कॉपर, पीतल और जस्ता मिक्स निर्मित मूर्तियां भी बड़े पैमाने पर तैयार की जाती हैं. इन मूर्तियों की मांग देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. दरअसल, सावन महीने के साथ बाजार में त्योहारी भी शुरू हो चुकी हैं. अलीगढ़ के मूर्ति कारोबारीयों ने श्री कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारी शुरू कर दी है. विदेशी मांग को ध्यान में रखते हुए मूर्ति कारोबारी लड्डू गोपाल की मूर्ति बना रहे हैं. इस साल कारोबारी 10 करोड़ से अधिक मूर्तियों के ऑर्डर आने का अनुमान लगा रहे हैं. डिजिटल इंडिया के दौर में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी मूर्तियों की सप्लाई की जाती है. अलीगढ़ में बनने वाली श्री कृष्ण की मूर्तियों की दिल्ली, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक समेत कई राज्यों में डिमांड है.
पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा कारोबार
आजादी से पहले अलीगढ़ में ढलाई के जरिए पीतल की मूर्तियों को तैयार किया जाता था. पहले मूर्ति कारोबारी मूर्तियां तैयार कर दिल्ली और मुंबई में बेचा करते थे, मगर पिछले कुछ वर्षों से यहां का कारोबार बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है. कारोबारियों के चेहरे पर खुशी की लहर भी देखने को मिल रही है. मूर्तियों का कारोबार अलीगढ़ के कई इलाकों में किया जाता है. हजारों की तादात में लोग इस कारोबार से अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. इस कारोबार में कई मुस्लिम परिवार भी शामिल हैं.
लड्डू गोपाल की मूर्ति बनाने वाले कारोबारी कपिल कुमार वार्ष्णेय बताते हैं कि जन्माष्टमी को पूरे देश में मनाया जाता है. लड्डू गोपाल की मूर्ति की मैन्युफैक्चरिंग अलीगढ़ में की जाती है. इन मूर्तियों की डिमांड देश-विदेश में होती है. इस व्यापार से सभी समुदाय के लोग जुड़े हुए हैं. मूर्तियां बनाने के लिए सबसे पहले मिट्टी पीस कर तैयार की जाती है. फिर मूर्तियों का पैटर्न बनाया जाता हैं. मूर्तियां बनाने के बाद उनकी कास्टिंग, पॉलिश आदि की जाती है.
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पांच हजार परिवारों को मिलता है रोजगार
इस कारोबार से करीब पांच हजार परिवारों को रोजगार मिलता है. सबसे बड़ी बात यह है कि यह एक हैंडमेड काम है, जिसे सभी समुदाय के लोग मिलकर एक साथ करते हैं. यह पूरी तरह हैंडीक्राफ्ट वर्क है. इन मूर्तियों की विदेशी मुल्कों में से सबसे ज्यादा डिमांड यूएसए में है. सिंगापुर, वियतनाम, नेपाल जैसे देशों में भी डिमांड रहती है. जन्माष्टमी के समय इसकी डिमांड बढ़ जाती है. इन मूर्तियों की कीमत तीन सौ रुपये से शुरू होकर कई हजार रुपये तक होती है.
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