सलमान आमिर/सिद्धार्थनगर: जिले में मछली पालन ने नया कीर्तिमान हासिल किया है. उत्तर प्रदेश के कुल मछली के करीब 30% हिस्से की सप्लाई अकेले सिद्धार्थ नगर से होती है. मछली उत्पाद में मिली इस कामयाबी से जिला प्रशासन के साथ स्थानीय लोग काफी उत्साहित हैं. हालत यह है कि इस व्यवसाय में जिले के डॉक्टर इंजीनियर की पढ़ाई करने के बाद बहुत से युवा इस कारोबार से जुड़कर लाखों कमा रहे हैं. जिले मे इस कारोबार को बढ़ावा देने के लिए सरकार से हर तरह की मदद की अपेक्षा कर रहे हैं. 


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अकरहरा गांव को जाता फिशरीज की कामयाबी का श्रेय
जिले में फिशरीज की यह कामयाबी एक दिन में ही नहीं मिली बल्कि इसका सारा श्रेय बढ़नी ब्लॉक के अकरहरा गांव को जाता है. इस गांव के अस्सी प्रतिशत लोग मौजूदा समय में मछली पालन के वयवसाय से जुड़े हैं. सिद्धार्थनगर ज़िले में करीब 4 हज़ार 4 सौ हेक्टेयर क्षेत्र में तालाब है. जिसमें 3 हज़ार 1 सौ 69 हेक्टेयर सरकारी, 670 हेक्टयर प्राइवेट और 561 हेक्टयर प्राइवेट कमर्शियल तालाब शामिल है. अकरहरा गांवों की बात करें तो करीब 282 एकड़ यहां कमर्शियल तालाब है. 


जिले का 40 हज़ार मीट्रिक टन है मछली प्रोडक्शन
बता दें सिद्धार्थ नगर जिले का कुल सालाना मछली का प्रोडक्शन करीब 40 हज़ार मीट्रिक टन है और सालाना टर्नओवर करीब 350 करोड़ के आसपास है. फिशरीज के इस काम में करीब 5 हज़ार से ऊपर लोग डायरेक्टली जुड़े हुए हैं.


मत्स्य पालन की शुरुआत यहां इस पिछड़े क्षेत्र में कैसे हुई इसके बारे में यहां के मछली के बड़े कारोबारियों में से एक वक़ार अहमद फ़ैज़ कहते हैं कि 2008 में उनके पिता ने छोटे से क्षेत्र में इसकी शुरुआत की. मुनाफा अच्छा मिला तो इस काम में रुचि बढ़ी और मौजूदा समय में उनके पांच भाई जो कि हाईली एजुकेटेड हैं अपनी नौकरियां छोड़कर इस काम में लग गए हैं. इनका टर्न ओवर 10 करोड़ सालाना से ऊपर है.


फ़ैज़ कहते हैं कि फिशरीज के क्षेत्र में सिद्धार्थनगर जिले में बहुत संभावनाएं हैं. उन्होंने कहा कि अगर सरकार अन्य प्रदेशों की तरह किसानों की बिजली के दाम कम कर दें और मछलियों के शीड के कारखाने यहां स्थापित करा दें तो इस व्यवसाय में मौजूदा समय के इनकम को 2 गुना से 3 गुना किया जा सकता है. 


उन्होंने कहा कि सिद्धार्थनगर जिले में अगर तालाबों तक आने के लिए रास्तों का निर्माण साथ ही मछली के बेचने के लिए एक अच्छे किस्म का बाजार भी उपलब्ध हो जाए तो पूरे सिद्धार्थनगर जिले में काफी लोगों को इस व्यवसाय से जोड़ा जा सकता है. उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में यहां पेंगेसिस, तिलापिया, आई एम सी मछलियों का कल्चर किया जा रहा है. 


सिद्धार्थनगर जिले की गिनती प्रदेश के पिछड़े जनपदों में होती है. यह जिला प्रधानमंत्री आकांक्षा जिले में से एक है. यहां कल कारखाने नहीं हैं, युवा नौकरी की तलाश में बड़े पैमाने पर शहरों में पलायन कर जाते हैं. रोजी रोटी का मात्र साधन यहां कृषि है. बाढ़ ग्रस्त इलाका होने की वजह से करीब 75 प्रतिशत जमीन पर सिर्फ एक ही फसल हो पाती है. हालांकि योगी सरकार ने ओडीओपी योजना के तहत काला नमक चावल को लिया है. इससे काला नमक के उत्पाद को लेकर किसान जागरूक भी हुए हैं लेकिन काला नमक चावल से किसानों को आर्थिक रूप से ज्यादा फायदा मिलने की संभावनाएं कम हैं.


इस बीच जिले में इतने बड़े पैमाने पर मछली उत्पादन और इससे आर्थिक संपन्नता की जानकारी वर्तमान जिला अधिकारी संजीव रंजन और सीडीओ जयंत कुमार को हुई तो उन्होंने मत्स्य पालने वाले क्षेत्रों का दौरा कर पूरा फोकस इस पर किया. ताकि इस व्यवसाय को बड़े पैमाने पर करते हुए पूरे जिले में इसे बढ़ाया जाए. 


मत्स्य पालकों से मिलने और तालाबों का जायजा लेने पहुंचे जिलाधिकारी संजीव रंजन ने ज़ी मीडिया से खास बातचीत में कहा कि सिद्धार्थनगर जिले में पानी की कोई कमी नहीं है. यहां पर फिशरीज को बढ़ावा देकर यहां के लोगों को बड़ी संख्या में इस व्यवसाय से जोड़ा जा सकता है. साथ ही इस क्षेत्र में इससे आर्थिक संपन्नता भी आने के बहुत अवसर हैं. तालाबों का दौरा करने आए जिलाधिकारी ने कहा कि अकरहरा गांव के लोग अपने संसाधनों से इस व्यवसाय में जो काम कर रहे हैं यह काबिले तारीफ है. 


उन्होंने कहा कि इनकी जो छोटी-छोटी समस्याएं हैं, इनको जल्द से जल्द दूर कर इस व्यवसाय को पूरे जिले में बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा. इसके लिए सरकारी स्तर पर जो भी मदद होगी वह जरूर की जाएगी. सिद्धार्थनगर जिले में मत्स्य पालन में बढ़ावे से ये उम्मीद जगी है कि इस कारोबार को अपनाकर लोग आर्थिक रूप से मजबूत हो सकते हैं. साथ ही इस काम से हजारों स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल सकता है. बस जरूरत है सरकार को जिले में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए विशेष पैकेज की.