विशाल सिंह/लखनऊ: लोकसभा चुनाव में भले ही अभी डेढ़ साल का वक्त बाकी हो, लेकिन सियासी समीकरण गढ़े जाने लगे हैं. ऐसे में विपक्ष के मजबूत वोटबैंक माने जाने वाले मुस्लिम समाज के बीच बीजेपी अपनी जगह बनाने की कवायद कर रही है, लेकिन उसकी नजर पसमांदा मुस्लिमों पर है. यह संदेश देने की कोशिश हो रही है कि बीजेपी मुसलमान विरोधी नहीं है, बल्कि वह खुले दिल से इस समुदाय को गले लगाने के लिए तैयार है. वहीं बसपा भी इस वोट बैंक पर फोकस रखी हुई है. अपने जन्मदिन के मौके पर बसपा सुप्रीमो ने भाजपा को पासमान्दा विरोधी करार दे चुकी हैं.


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विपक्षी पार्टियां बना रहीं दलित-मुस्लिम समीकरण


मुस्लिम और जाट असर वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी के सहारे समाजवादी पार्टी 2024 के चुनाव में बीजेपी को चुनौती देने की रणनीति पर काम कर रही है. बीएसपी इस बार अकेले दल पर दलित-मुस्लिम समीकरण बना रही है, जिससे पश्चिमी यूपी में अपनी सीटें बरकरार रख सके. ऐसे में बीजेपी ने पसमांदा मुस्लिम सियासी प्रयोग करने का दांव चला है ताकि पश्चिम यूपी के किले को ठीक किया जा सके. इसी वजह से अब बीएसपी भी पासमान्दा ट्रैक पर आ गयी है. बीजेपी इस बात को समझती है कि बिना मुस्लिमों को साथ लिए यह लक्ष्य हासिल नहीं हो सकता है और यही बात बसपा को भी समझ आ गयी है कि अगर पासमन्दा भाजपा की तरफ रुख कर गए तो बसपा के लिए खतरा है.


41 जातियां शामिल


पसमांदा यानी मुस्लिमों के पिछड़े वर्गों की उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की कुल आबादी में 85 फीसदी हिस्सेदारी है. यहां मुसलमानों की 41 जातियां इस समाज में शामिल हैं. इनमें कुरैशी, अंसारी, सलमानी, शाह, राईन, मंसूरी, तेली, सैफी, अब्बासी, घाड़े और सिद्दीकी प्रमुख हैं, बीजेपी इन्हीं मुस्लिम समाज के इस बड़े वर्ग को अपने पाले में लाने के प्रयास के तहत जगह-जगह पसमांदा सम्मेलन आयोजित कर रही है. पश्चिमी यूपी के मुस्लिम बहुल जिलों में पसमांदा मुस्लिम के दिल में जगह बनाने  के लिए भाजपा और बसपा दोनों कवायद कर रहे हैं. ऐसे में देखना है दिलचस्प होगा कि इस पसमांदा कार्ड के जरिए क्या सियासी गुल खिलता है.


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