जितेन्द्र सोनी/जालौन: उत्तर प्रदेश में कालपी का पौराणिक इतिहास रहा है. व्यापारिक नजरिए से यहां का कागज और कालीन की डिमांड विदेशों तक थी. लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते कालपी का कालीन उद्योग अब दम तोड़ रहा है. खरीददार न मिलने से कालीन डंप पड़ी हैं. हालात यह हैं कि कालीन के खरीददार न होने से 95 फीसदी व्यापार चौपट हो गया है. वहीं कालीन विक्रेता ने बताया कि 35 साल पहले काम अच्छा चलता था जिससे रोजी-रोटी चलती थी. 


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कालीन उद्योग से जुड़े कारीगरों का कहना है कि प्रशासन आर्थिक सहयोग की दरकार है. फिलहाल कालीन को तैयार होने में करीब एक से दो महीने लगते थे और तैयार होने के बाद माल ग्वालियर के रास्ते विदेशों तक जाता था. लेकिन अब लोग पूरी तरह बेरोजगार हो गए है. फिलहाल आज के दौर में विदेशों में बिकने वाली कालपी की कालीन मांग न होने से आखिरी सांसे गिन रही है. 
ग्वालियर में होती है प्रोसेसिंग
कालीन बनाने वाले कल्लू खान, सुलेमान, एहसान, अख्तर बानो, सलमा ने बताया कि निर्मित कालीन को ग्वालियर के प्लांटों में प्रोसेस कराया जाता है. इसके बाद बिक्री की जाती है. इसलिए ग्वालियर के बिचौलियों को कालीन कम दामों में बेचने को मजबूर होते हैं. अगर कालपी में प्रोसेस प्लांट लग जाए तो इस उद्योग के अच्छे दिन आ सकते हैं और लोगों के रोजगार मिल सकता है. 
निर्यात केंद्र से हो सकता है समाधान
जानकारों का मानना है कि प्रदेश में निर्यात के लिए कोई केंद्र स्थापित कर दिया जाए तो कालीन उद्योग में नई जान फूंकी जा सकती है. वहीं कालीन उद्योग से जुड़े कारीगरों को प्रदेश सरकार की सूक्ष्म और लघु उद्योगों के लिए चलाई जा रही योजनाओं से काफी उम्मीद है. दरअसल प्रदेश में ओडीओपी के तहत स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है.